श्रमिकों का संकट

आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों के ठप पड़ने के कारण शहरों से बड़ी संख्यामें श्रमिकों का पलायन जारी है. बेरोजगारी, वेतन कटौती और मजदूरी नहींमिलने से कामगार बदहाल हैं. उन्हें अपने गांव-घर में ही सुरक्षा कीउम्मीद दिख रही है.

By संपादकीय | May 6, 2020 7:39 AM

आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों के ठप पड़ने के कारण शहरों से बड़ी संख्यामें श्रमिकों का पलायन जारी है. बेरोजगारी, वेतन कटौती और मजदूरी नहींमिलने से कामगार बदहाल हैं. उन्हें अपने गांव-घर में ही सुरक्षा कीउम्मीद दिख रही है. यह स्थिति कमोबेश लॉकडाउन के पहले दिन से ही है. अबजब धीरे-धीरे कारोबार और उत्पादन को फिर से शुरू करने का सिलसिला शुरूहुआ है, तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उद्योगों और अन्य तरह केकामकाज के लिए समुचित संख्या में कामगार उपलब्ध हो सकेंगे. यह सवालसंगठित क्षेत्र के लिए भी उतना ही गंभीर है, जितना कि असंगठित क्षेत्र केलिए.

आकलनों के मुताबिक, हमारे देश में 46.5 करोड़ कामगार हैं, जिनमें से41.5 करोड़ असंगठित क्षेत्र में हैं. ये कामगार मुख्य रूप से अपनीअनियमित कमाई पर निर्भर होते हैं और उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा का आवरणउपलब्ध नहीं है. इनके काम का सीधा जुड़ाव संगठित उद्योगों से है, सो उनकीकमी का असर समूची अर्थव्यवस्था पर होना स्वाभाविक है. ये कामगार अपनीकमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने गांव में परिवार के लिए भेजते हैं, जोग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा आधार है. उत्तर और पूर्वी भारत केपिछड़े राज्यों के लिए यह कमाई बहुत अहमियत रखती है. करोड़ों श्रमिकों कीवापसी गांवों के लिए भी सुखद नहीं कही जा सकती है.

इससे समझा जा सकता हैकि शहरी और औद्योगिक केंद्रों से कामगारों का यह व्यापक पलायन कई स्तरोंपर हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. कोरोना वायरसके संक्रमण का खतरा अभी भी चिंताजनक स्तर पर है. इस कारण उत्पादन औरकारोबार को शुरू करने की छूट के साथ कई तरह की सावधानियां बरतने के भीनिर्देश दिये जा रहे हैं. ऐसे में कुछ समय तक इन गतिविधियों को पहले कीतरह चला पाना संभव नहीं है, सो कामगारों की भी उतनी जरूरत फिलहाल नहींहोगी. अर्थव्यवस्था में मंदी और कमाई कम होने से मध्य आय वर्ग और उच्च आयवर्ग को भी कामगारों और सेवाओं में कटौती करने की मजबूरी है. इन वजहों सेरोजगार की अनिश्चितता बनी रहेगी.

कामगारों को वापस शहरों का रुख करने मेंयह बहुत बड़ी बाधा हो सकती है, क्योंकि उनके पास इतनी बचत नहीं है कि वेशहरों में बिना काम के कुछ समय तक हालात सुधरने का इंतजार कर सकें. डूबतीअर्थव्यवस्था और कोरोना संक्रमण की रोकथाम की कोशिशों ने सरकारी राजस्वके स्रोतों को भी कुंद कर दिया है, जिसके कारण उन्हें उधार लेना पड़ रहाहै. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, उनके पास अभी मोहलत नहीं है कि वेअर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुत बड़ा निवेश कर सकें. उनकीप्राथमिकता में राहत, सामाजिक कल्याण और सामान्य शासन से संबंधित खर्चहैं. लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के जारी रहने के बारे में भी निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता है.

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