Loading election data...

जब शास्त्री जी ने अयोध्या जेल को प्रतिरोध का केंद्र बनाया

शास्त्री जी की जयंती पर बता रहे हैं कृष्ण प्रताप सिंह

By कृष्ण प्रताप सिंह | October 1, 2024 11:20 PM
an image

इतिहास गवाह है, 19 दिसंबर, 1927 को शहीद हुए काकोरी ट्रेन एक्शन के नायक अशफाकउल्लाह खां ने फैजाबाद (अब अयोध्या) जेल में गोरी हुकूमत के जुल्मों के प्रति अपनी वेदना व्यक्त करते हुए कहा था- तंग आकर जालिमों के जुल्म से बेदाद से, चल दिये सू-ए-अदम जिन्दान-ए-फैजाबाद से! उनकी यह वेदना आगे चलकर इस रूप में रंग लायी कि आजादी के जो भी दीवाने इस जेल में लाये जाते, गोरों के प्रति बदले की भावना से भर उठते और बेबसी में कुछ नहीं कर पाते तो जेल के अधिकारियों की ही नाक में दम करने लग जाते.
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने अपनी पुस्तक ‘उत्तर प्रदेश : स्वाधीनता संग्राम की एक झांकी’ में लिखा है कि इसका नतीजा यह हुआ कि अगले कई वर्षों तक आजादी के दीवानों को फैजाबाद जेल दूसरी जेलों के मुकाबले स्वर्ग जैसी लगती थी. कारण यह कि दूसरी जेलों में उनको ढेर सारी यातनाएं झेलनी पड़ती थीं, जबकि इस जेल में उनकी सामूहिक उग्रता खुद अधिकारियों के त्रास का कारण बन जाती थी. अलबत्ता, कभी-कभी इसका उल्टा भी होता था. उन्हीं दिनों लाल बहादुर शास्त्री को इस जेल में लाया गया तो जुल्मों का यह प्रतिरोध न सिर्फ और बढ़ गया, बल्कि और उग्र भी हो गया. जानकारों के अनुसार, उन दिनों इस जेल में शास्त्री के साथ कर्मवीर पंडित सुंदरलाल, फिरोज गांधी, कृष्णदत्त पालीवाल, मंजर अली सोख्ता तथा बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ आदि कोई तीन सौ राजनीतिक बंदी (गोरी सरकार आजादी के दीवानों को राजनीतिक बंदी कहती थी) बंद थे और उन सभी को बी श्रेणी मिली हुई थी. उन सबमें ज्यादा से ज्यादा अध्ययन-मनन, साथ ही जेल के नियम-कायदों का तिरस्कार करने, तोड़ने और अफसरों का रौब-दाब घटाने की होड़ सी लगी रहती थी. चूंकि पूरे संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के बी श्रेणी के राजनीतिक बंदी इसी जेल में रखे जाते थे, उन्होंने खुद पर लगायी जाने वाली पाबंदियों व खुद से की जाने वाली ज्यादतियों के निर्णायक सामूहिक प्रतिरोध की परंपरा व प्रणाली विकसित कर ली थी. वे जब भी कोई प्रतिरोध शुरू करते, उन पर कितने भी जुल्म ढाये जाते, झुकना या समझौता करना जैसे भूल जाते और तभी शांत होते जब जेल के अधिकारी झुककर उनकी मांग स्वीकार कर लेते. इसलिए 1932 में लार्ड विलिंगटन का लाठी-गोली वाला कुख्यात तानाशाही दौर आया तो भी इस जेल में सात-आठ महीने इन बंदियों का जलवा कायम रहा.
इस बीच जेल में कई सख्त सुपरिंटेंडेट आये, परंतु उन्हें बंदियों के हाथों तंग होकर जाना पड़ा और वे अनुशासन नहीं ही कायम कर सके. एक दिन बंदियों को पता चला कि अंग्रेज इंस्पेक्टर जनरल, जनरल पामर और होम मेंबर नवाब छतारी जेल के मुआयने के लिए आ रहे हैं, तो उन्होंने उनके समक्ष उग्र प्रदर्शन किया. स्वाभाविक ही, इससे जेल के अधिकारियों की खूब किरकिरी हुई और पामर ने उनमें से कई का तबादला कर दिया. पर ये बंदी अपनी इस जीत की खुशी मना पाते, इससे पहले ही जनरल पामर द्वारा उनको सबक सिखाने की कवायदें भी आरंभ कर दी गयीं. इसके लिए उसने अपने एक लाडले अफसर को सुपरिंटेंडेंट बनाकर भेजा, जिसने आते ही ज्यादातर ‘उग्र’ बंदियों के ‘टिकट’ मंगा कर उन पर ढेर सारी सजाएं लिख दीं. इन सजाओं में तीन महीनों तक टाट के कपड़े पहनने, तीन महीने तन्हाई में रहने और तीन महीने डंडा-बेड़ी जैसी सजाएं भी शामिल थीं. इतना ही नहीं, बी से सी श्रेणी में डाल देने की भी. तीन बंदियों के टिकटों पर तो उसने कड़ी सजाएं लिखकर ‘टीप’ लगा दी कि ये सारी सजाएं किसी और जेल में स्थानांतरित करके दी जाएं. पर तीनों को प्रतापगढ़ जेल ले जाया जाने लगा, तो उन्होंने नया प्रतिरोध शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत बेड़ियां पहनने से साफ इनकार कर देने से हुई. मान-मनौव्वल के बीच उन्होंने शास्त्री और सोख्ता के कहने पर बेड़ियां पहन लीं, तो जेल के अधिकारियों को लगा कि अब उन्हें कितना भी झुकाया जा सकता है. इसलिए उन्होंने उन्हें बेड़ियां पहने-पहने रेलवे स्टेशन तक पैदल चलने का हुक्म सुना दिया. तीनों ने बिफरकर इससे साफ इनकार कर दिया तो अफसर क्रोध में उबले जरूर, पर बंदियों के हुजूम का रोष देखकर संयम बरतने में ही भलाई समझी.
तनातनी के बीच प्रतापगढ़ जाने वाली ट्रेन छूट गयी, तो तीनों को जेल के फाटक के पास की ही एक कोठरी में बंद कर सुबह की ट्रेन से ले जाने का फैसला किया गया. परंतु रात के दो भी नहीं बजे थे कि बेदर्दी से तीनों को निकालकर पिटाई शुरू कर दी गयी. एक-एक बंदी को चार-चार सिपाही घसीटने लगे. इसके बावजूद उन्होंने रेलवे स्टेशन तक पैदल न जाने का अपना संकल्प कमजोर नहीं पड़ने दिया. ऐसे बेइंतहा जुल्मों के बावजूद फैजाबाद जेल में आजादी के दीवानों का प्रतिरोध तब तक कमजोर नहीं पड़ा, जब तक आजादी की आहट नहीं सुनाई पड़ने लगी.

Exit mobile version