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एक संगीन अपराध है पर्चा लीक करना

जब आप प्रतिरोधात्मक कार्रवाई को गति नहीं देंगे और यह सब चलता रहेगा, तो हमारे बच्चों का क्या होगा! वे दूर-दूर परीक्षा देने जाते हैं, महीनों तैयारी करते हैं, मुश्किल से उनका आना-जाना होता है

बरसों पहले उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री और राजनाथ सिंह शिक्षा मंत्री हुआ करते थे, तब परीक्षाओं में कदाचार रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश लाया गया था. उसके लागू होने से बोर्ड परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या में बड़ी गिरावट आयी थी. मुझे याद आता है कि मैंने राज्य के गांवों में नारे लिखे देखे थे. उनमें से एक यह था- गुरुजन तुम्हें पढ़ाना होगा, रोज स्कूल में आना होगा. एक आंदोलन-सा चल गया था. लोग कहने लगे थे कि अध्यापक समय से आएं और अपना काम ठीक से करें.

दुर्भाग्य यह है कि हमारे देश में राजनीति की पैठ ऐसी गहरी हो चुकी है कि भविष्य का भी ध्यान नहीं रखा जाता. तब समाजवादी पार्टी ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है, तो तुरंत ही नकल-विरोधी कानून को रद्द किया जायेगा. उन्होंने ऐसा किया भी. इसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा. शिक्षा में सुधार होना चाहिए, यह विमर्श ही रुक गया. अब नकल से कहीं बहुत बड़ी समस्या है प्रश्न-पत्र का लीक होना. आज देश में ऐसी कोई परीक्षा नहीं हो रही है, जिसे लेकर कुछ आशंका न हो.

अपने जीवन में मैंने बड़ी-बड़ी परीक्षाओं का आयोजन करवाया है. मेरी नजर में प्रश्न-पत्र लीक होना बेहद गंभीर मामला है. इस मुद्दे पर सभी राज्यों को एक साथ बैठ कर चर्चा करनी चाहिए. सभी शिक्षा मंत्रियों को अपनी राजनीति को परे रख कर इसके समाधान का साझा प्रयास करना चाहिए. देश के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस पर तो एकमत होना चाहिए कि नकल माफिया पर लगाम लगायी जाए. यह माफिया साल-दर-साल सक्रिय रहता है और उसे कोई सजा नहीं होती.

मीडिया भी इस बात का पता नहीं करता है कि जो लोग नकल या पर्चा लीक होने के आरोप में पांच साल पहले पकड़े गये थे, उनका क्या हुआ? अभी मैंने सुना है कि राजस्थान में पिछले 11 साल में हर साल कम-से-कम 150 प्राथमिकी दर्ज होती हैं, लेकिन किसी को सजा नहीं हो सकी है. इतने साल में आप किसी को दंडित नहीं करेंगे, तो क्या उम्मीद रहेगी! अन्य राज्यों में भी कमोबेश यही हाल है. यह अपने युवाओं को हतोत्साहित करने और परीक्षाओं की साख घटाने के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण कृत्य देश में हो रहा है.

इस समस्या का समाधान तब होगा, जब संस्थाओं के प्रशासक-प्रबंधक इस बात का ध्यान रखेंगे कि नियमित रूप से पढ़ाई हो और कोचिंग पर बच्चों की निर्भरता कम-से-कम हो. दूसरी बात, सरकारें कोचिंग संस्थानों पर कड़ी निगरानी रखें. ऐसा बार-बार कहा जाता है कि बड़े कोचिंग संस्थान कर्मचारियों और अधिकारियों के मार्फत पर्चा लीक कराते हैं. मेरे पास इसका प्रमाण नहीं है, पर इस बात को सही मानता हूं. होना यह चाहिए कि अगर कोई नकल या पर्चा लीक का मामला होता है, तो सरकार को यह घोषित करना चाहिए कि तीन या छह माह में इसकी जांच पूरी की जायेगी.

सभी लंबित मामलों का निपटारा भी तुरंत किया जाना चाहिए. इस पर अगर पूरा देश सहमत हो जाए, तो इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा. सभी राज्यों के शिक्षा और गृह मंत्रियों एवं अधिकारियों की एक राष्ट्रीय बैठक हो तथा उसमें यह तय किया जाए कि पर्चा लीक होना देश के युवाओं के विरुद्ध एक बेहद संगीन अपराध है. जो संस्था परीक्षा लीक की सही जांच नहीं करा पाती है, उसे अक्षम माना जाए. आवश्यक हो, तो बड़े अधिकारियों को भी दंडित किया जाना चाहिए. आज ऐसा नहीं हो रहा है.

कुछ साल पहले बिहार में एक लड़की के बोर्ड की परीक्षा में टॉप करने का मामला बहुत चर्चित हुआ था. उस लड़की ने पूछताछ में एक हृदयविदारक बात कही थी. उसने कहा था कि वह केवल द्वितीय श्रेणी में पास होना चाहती थी, पर उसके चाचा ने उसे टॉप करा दिया. यह बात मुझे कभी नहीं भूलती. इसमें लड़की की क्या गलती थी? उस आयु में किसी बच्चे को अगर पर्चा मिलेगा या नकल का इंतजाम मिलेगा, तो वह उसे लेगा ही. दोष तो माता-पिता का है. जो अपने बच्चे से 15 लाख रुपये का पर्चा खरीदवाता है, उसे जेल में होना चाहिए.

जब आप प्रतिरोधात्मक कार्रवाई को गति नहीं देंगे और यह सब चलता रहेगा, तो हमारे बच्चों का क्या होगा! वे परीक्षा देने दूर-दूर जाते हैं, महीनों तैयारी करते हैं, मुश्किल से उनका आना-जाना होता है, रहने-खाने की व्यवस्था नहीं होती और फिर उन्हें इसलिए वापस चले जाने के लिए कह दिया जाता है कि पर्चा लीक हो गया. परिणाम घोषित होने के चार साल बाद तक नियुक्तियां नहीं होतीं.

इस समय युवाओं के साथ घोर अन्याय हो रहा है. मीडिया को इन मामलों को जोर-शोर से उठाना चाहिए. उत्तराखंड और कुछ अन्य राज्यों में जो कानूनी पहलें हो रही हैं, मैंने उनका अध्ययन नहीं किया है, पर मेरा मानना है कि नकल, पर्चा लीक आदि अपराधों में कड़ी सजा मिले. कानून सभी राज्यों को बनाना चाहिए. जिन संस्थानों के पर्चे लीक हों, उनके प्रमुखों को नैतिकता के आधार पर पद छोड़ देना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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