अदाणी के शेयरों में गिरावट के सबक
बड़ी गिरावट बहुत से लोगों, विशेषकर छोटे निवेशकों, में बेचैनी पैदा कर सकती है और इसकी प्रतिक्रिया कुछ भी हो सकती है तथा पूरा बाजार इससे प्रभावित हो सकता है. इसके कई और नतीजे भी हो सकते हैं.
अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों के भाव में अचानक हुई तेज गिरावट ने केंद्रीय बजट की सुर्खियों की चमक फीकी कर दी. समूह के बाजार मूल्य में 24 जनवरी से तीन फरवरी के बीच 100 अरब डॉलर से अधिक की कमी आयी. यह प्रस्तावित बजट के 20 प्रतिशत हिस्से के बराबर है. यह गिरावट लगभग 50 फीसदी रही है, जिसका मतलब है कि आधा मूल्य अभी बचा हुआ है.
भारत की विकास गाथा में इंफ्रास्ट्रक्चर एक बेहद अहम निर्धारक है. अगले दो दशकों तक यह एक ताकतवर इंजन बना रहेगा, जब तक इस क्षेत्र में सरकारी या निजी स्रोतों से निवेश होता रहेगा. भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण से जुड़ी कोई भी कंपनी, उद्योग या कारोबार मुनाफे का सौदा ही होगा. फिर भी निवेशकों, नीति-निर्माताओं और सबसे अहम नियामकों के लिए अदानी समूह के शेयरों में नाटकीय गिरावट से कई सबक निकलते हैं.
पहली बात यह रेखांकित की जानी चाहिए कि जब भी शेयर गिरते हैं, तो खबरों में बताया जाता है कि तेज बिकवाली हो रही है. इससे ऐसा लगता है कि हर कोई अपना शेयर बेच ही रहा है. पर याद रहे कि बिना खरीदार के एक भी शेयर नहीं बेचा जा सकता है. अदानी प्रकरण में भी यह हुआ है. लेकिन कीमत गिर रही थी.
आप यह कह सकते हैं कि खूब बिकवाली हो रही थी, पर इसके साथ खरीद भी खूब हो रही थी. क्या ये खरीदार शॉर्ट सेलर थे, जिन्होंने पहले वैसे शेयरों को बेच दिया था, जिनके वे मालिक नहीं थे (यही उनका तरीका होता है), और वे असली मालिक को अब शेयर वापस देने के लिए कम दाम पर खरीद कर रहे थे?
इसकी जांच करना नियामकों का काम है, पर आम तौर पर लुढ़कते शेयरों के दाम में तोल-मोल करने में कुछ भी अवैध नहीं है. ध्यान देने योग्य दूसरी बात यह है कि दामों में तेज उछाल या कमी तब भी होती है, जब अचल संपत्ति की थोड़ी लेन-देन भी होती है.
बीते दिनों खबरें छपीं कि मुंबई में 1238 करोड़ रुपये में 28 फ्लैटों की मजबूरन बिक्री हुई, जिन्हें एक ही परिवार के लोगों ने खरीदा. इस सौदे में प्रति वर्ग फुट का दाम 65 से 70 हजार रुपया रहा. तो, क्या हाल के दिनों के 90 हजार रुपये रहे दाम में बड़ी कमी आ गयी? इसका मतलब यह है कि हजारों महंगे फ्लैटों के बाजार में दर्जन भर फ्लैटों की बिक्री भी बाकी हजारों फ्लैटों के दाम पर असर डाल सकती है.
शेयर बाजार के साथ भी यही होता है. यदि बाजार में हर समय ढेर सारे बेचने और खरीदने वाले होंगे, तो लेन-देन की मात्रा दामों को तेजी से और अचानक नहीं बढ़ा सकती. इसीलिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) का जोर रहता है कि सूचीबद्ध कंपनियों के कम-से-कम 25 फीसदी शेयर लोगों, खासकर छोटे निवेशकों, में व्यापक रूप से बंटे होने चाहिए.
ऐसे में किसी शेयर के बारे में भिन्न राय रखने वाले लोग होते हैं और दाम पर इनका संतुलित दबाव रहता है. अदाणी प्रकरण में एक पक्ष तो बिकवाली कर रहा था, पर दूसरी तरफ उससे अलग भावना भी सक्रिय थी, जो भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को लेकर बहुत अधिक आशावादी है.
समस्या समुचित नकदी की थी. इस कारण शेयरों पर भारी गिरावट का खतरा पैदा हुआ. सेबी और स्टॉक एक्सचेंज के लिए सबक है कि वे समुचित नकदी पर कड़ी नजर रखें और लोगों में शेयरों के वितरण के निर्देश का पालन सुनिश्चित करें. नकदी के अभाव में शेयरों के दाम तेजी से बढ़ भी सकते हैं और गिर भी सकते हैं.
इस तरह आय के अनुपात में दाम भी बहुत अधिक बढ़ सकते हैं. पिछले साल नयी कंपनी नायका के साथ ऐसा ही हुआ था, जबकि उसका मुनाफा मामूली था. ऐसे अनुपातों को समझना तो दूर की बात, सही ठहराना भी मुश्किल है. तीसरी बात, भारतीय पूंजी बाजार में शेयर या बॉन्ड की शॉर्ट सेलिंग करना बेहद मुश्किल है. शॉर्ट सेलिंग से पहले ऐसे सेलर को पहले शेयरों को उधार लेना पड़ता है. किसी भी खुलेआम शॉर्ट सेलिंग की अनुमति नहीं है.
दाम में उथल-पुथल के कारण शेयर को उधार लेना बहुत महंगा सौदा हो सकता है. विदेशों में सूचीबद्ध भारतीय शेयर या बॉन्ड की शॉर्ट सेलिंग उन बाजारों में हो सकती है, पर भारतीय नियामक उसके बारे में बहुत कुछ नहीं कर सकते. शॉर्ट सेलर भारी जोखिम उठाते हैं और बड़ी रकम दांव पर लगाते हैं. वे बाजार में ‘सूचना’ के तत्व के विस्तार में भी उपयोगी योगदान देते हैं.
ऐसे कई उदाहरण हैं, जब ऐसे विक्रेताओं ने उपलब्ध शेयरों से अधिक की बिक्री कर दी और उन्हें महंगे दाम पर खरीद कर इसकी भरपाई करनी पड़ी. इसमें वे बर्बाद भी हुए. कानून का पालन सुनिश्चित करना सेबी की जिम्मेदारी है. कुछ देशों में शॉर्ट सेलिंग पर पूरी तरह पाबंदी है. लेकिन ऐसी पाबंदी किसी कंपनी के बारे में नकारात्मक जानकारियों पर रोक लगाने के बराबर है.
चौथी बात इंडेक्स फंड और सेंसेक्स की चक्रीयता के बारे में है. सेंसेक्स केवल 30 स्टॉक का औसत भर होता है. यदि उनमें से एक या दो बड़े स्टॉक ऊपर जा रहे हैं, तो सेंसेक्स बढ़ सकता है, भले ही बाकी स्टॉक नीचे जा रहे हों. सेंसेक्स के अनुसार चलने वाले इंडेक्स फंड ऐसे में खुदरा निवेशकों के पैसे बढ़ते स्टॉक में लगाते हैं, जिससे उनमें और तेजी आती है.
यह चक्रीयता खतरनाक हो सकती है और अस्थिरता पैदा कर सकती है तथा अंत में भारी गिरावट का कारण भी बन सकती है. इसलिए, एक्सचेंजों और सेबी को बहुत सावधानी से इंडेक्स स्टॉक का चयन करना चाहिए. वर्ष 2022 में, सौ स्टॉक वाला नास्डैक 34 फीसदी और 500 स्टॉक वाला एस एंड पी 20 फीसदी नीचे थे, पर भारतीय इंडेक्स पांच प्रतिशत ऊपर थे. कोई संदेह नहीं कि इसकी एक वजह भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती भी है.
अंत में, स्टॉक मार्केट की भावना सामूहिक मानसिकता के अनुरूप होती है. इसलिए बड़ी गिरावट बहुत से लोगों, विशेषकर छोटे निवेशकों, में बेचैनी पैदा कर सकती है और इसकी प्रतिक्रिया कुछ भी हो सकती है तथा पूरा बाजार इससे प्रभावित हो सकता है. इसके कई और नतीजे भी हो सकते हैं. अदाणी समूह इस स्थिति से उबरने के लिए निश्चित ही हर संभव प्रयास करेगा, पर नियामकों और नीति-निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बाजार में निवेशकों के भरोसे पर आंच न आये.