हादसे के सबक
रोजगार के बाजार में अंग्रेजी की मांग अधिक है, किंतु यह भी सत्य है कि व्यवस्था ने अन्य भाषाओं के ढांचे को ऐसा नहीं बनाया कि उन्हें भी बाजार में ऐसी ही पैठ प्राप्त हो.
गुजरात के मोरबी शहर में पुल टूटने से 141 लोगों की मौत और सैकड़ों लोगों का घायल होना बेहद दुखद त्रासदी है. शुरुआती जांच प्रशासनिक और प्रबंधकीय लापरवाही की ओर इंगित करती है. हमारे देश में लापरवाही के कारण ऐसे हादसों का लगातार होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है. यह समझ से परे है कि झूला पुल के मरम्मत और संचालन के लिए जिम्मेदार कंपनी ने स्थानीय प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली और पुल को जनता के लिए खोल दिया गया.
यह भी अजीब है कि इस ओर प्रशासन ने भी तुरंत ध्यान नहीं दिया. मोरबी पुल पर सप्ताहांत में बड़ी संख्या में लोगों का आना आम है, फिर भी संचालन कंपनी ने भीड़ को नियंत्रित रखने की कोई व्यवस्था नहीं की थी. चूंकि पुल पर जाने के लिए टिकट लगता है, तो कर्मचारियों को भीड़ की संख्या की जानकारी निश्चित रूप से रही होगी. बहरहाल, हादसे की जांच हो रही है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दौरा भी किया है तथा सर्वोच्च न्यायालय में भी इस पर सुनवाई होनी है.
ऐसे में यह आशा की जा सकती है कि दोषियों पर समुचित कार्रवाई होगी तथा देशभर में ऐसी जगहों के प्रबंधन के बारे में नये सिरे से सबक लिये जायेंगे. मोरबी की घटना ऐसी पहली घटना नहीं है और अगर इससे सीख नहीं ली गयी, तो ऐसे हादसे होते रहेंगे. भीड़ का समुचित प्रबंधन का न होना एक राष्ट्रव्यापी समस्या है. अवकाश के दिनों में, त्योहारों में, बड़े मेलों और धार्मिक आयोजनों में भीड़ का जुटना स्वाभाविक होता है. भगदड़ की घटनाएं भी अक्सर पुलों या संकरे रास्तों पर घटती हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में 1977 से 2017 तक 21 सौ अधिक पुल अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं आ सके हैं. निर्माणाधीन पुलों का ढहना तो छोड़ दें, उद्घाटन के कुछ ही दिनों के भीतर भी पुल ढहते रहे हैं, जैसा मोरबी में हुआ. देश का शायद ही कोई राज्य होगा, जहां पुल ढहने और लोगों को मारे जाने की घटनाएं न हुई हों. अक्सर यह होता है कि कुछ छोटे कर्मचारियों और ठेकेदारों पर मामला दर्ज कर और मामूली सजाएं देकर जांच और दंड का कर्मकांड पूरा कर लिया जाता है.
निर्माण कार्यों और प्रबंधन में लापरवाही एवं भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी रहते हैं. चाहे निर्माण कार्य हों, सार्वजनिक स्थानों पर व्यवस्था बनाये रखने का मामला हो या भीड़ को नियंत्रित करने का प्रश्न हो, गुणवत्ता तथा प्रबंधन के मानक निर्धारित हैं. ये मानक लागू हों, इसकी जिम्मेदारी प्रशासन के बड़े अधिकारियों और संबंधित मंत्रालयों का है. मोरबी और ऐसी अन्य दुर्घटनाओं में मारे गये लोगों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि आगे से वे गलतियां न हों, जो ऐसे हादसों की वजह बनती हैं.