स्तनपान से जीवनभर लाभ
जीवन में अच्छी शुरुआत के लिए सही पोषण और उचित देखभाल से बढ़ कर बच्चों के लिए और कुछ हो नहीं सकता.
स्तनपान बच्चों को जीवन में अच्छी शुरुआत प्रदान करता है. यह पोषण का सबसे अच्छा स्रोत है, जो जीवनभर लाभ देने के साथ बच्चे के मानसिक विकास में भी सहायक है. यह मां के साथ अपनत्व की भावना का विकास करता है. अगस्त माह के पहले सप्ताह में विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत करने तथा पहले छह महीने में बच्चे को सिर्फ मां का दूध देना बच्चे के लिए फायदेमंद होता है.
छह महीने के बाद पूरक आहार शुरू करने और दो साल या उससे अधिक उम्र तक लगातार स्तनपान कराने से संक्रमण के खिलाफ एक शक्तिशाली कवच तैयार होता है. इससे कुपोषण से बचाव और बच्चे के मस्तिष्क का विकास होता है. जो बच्चे ढंग से स्तनपान नहीं करते हैं, उनमें दस्त और अन्य संक्रमणों का खतरा अधिक होता है. ऐसे बच्चों के कुपोषण से पीड़ित होने और शिशुकाल में मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है. मां का दूध विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है.
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद प्राप्त होने वाला मां का गाढ़ा पीला दूध जिसे कोलोस्ट्रम भी कहा जाता है, नवजात शिशु के लिए आदर्श पोषण है. पोषक तत्वों एवं एंटीबॉडी से भरपूर, यह दूध बच्चे के लिए पहले टीके का काम करता है. यह बीमारियों के जोखिम को कम करता है, जिसमें कान के संक्रमण, अस्थमा, श्वसन संक्रमण, दस्त, उल्टी, बचपन का मोटापा और शिशुओं की अचानक मृत्यु सिंड्रोम भी शामिल है. स्तनपान बच्चे की बौद्धिक क्षमता में भी तीन से चार अंक तक की वृद्धि करता है.
बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान माताओं को पूर्व शारीरिक आकार प्राप्त करने में मददगार होता है. साथ ही, स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर तथा टाइप-2 मधुमेह के जोखिम को कम करता है. यह बच्चे के जन्म के अंतर को बनाये रखता है. अध्ययन से पता चलता है कि स्तनपान में निवेश किया गया प्रत्येक डॉलर अनुमानित तौर पर 35 डॉलर का आर्थिक लाभ प्रदान करता है.
स्तनपान सभी रूपों में कुपोषण को रोकने में मदद करता है. मां का दूध प्राकृतिक, नवीकरणीय और टिकाऊ संसाधन है, जो न तो कचरा पैदा करता है और न ही प्रदूषण. नवजात शिशु का जीवित रहना प्रारंभिक स्तनपान और जन्म के तुरंत बाद मां के साथ त्वचा से त्वचा के संपर्क पर निर्भर करता है. यह मां के ऑक्सीटोसिन के स्तर को भी बढ़ाता है, जो मां के दूध को बढ़ाने में मदद करता है.
एनएफएचएस-5 (2019-21) तथा एनएफएचएस-4 (2015-16) के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो झारखंड पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की दर को कम करने में सफल रहा है. इस आयु वर्ग के बच्चों में बौनेपन में लगभग 22 प्रतिशत की तथा स्टंटिंग में लगभग 12 प्रतिशत की कमी आयी है. छह महीने से कम उम्र के बच्चों में विशेष स्तनपान दर में भी सुधार हुआ है.
एनएफएचएस-4 में यह 65 प्रतिशत था, जो कि एनएफएचएस-5 में बढ़ कर 76 प्रतिशत हो गया है. 2015-16 में 62 प्रतिशत की तुलना में अब लगभग 76 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होता है. हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अभी भी काम होना बाकी है. चार में से तीन महिलाओं का प्रसव स्वास्थ्य केंद्रों में कराया जाता है, लेकिन पांच में से केवल एक बच्चे को ही घंटे भर के भीतर मां का दूध मिल पाता है.
छह महीने में शिशु के पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पूरक खाद्य पदार्थ की आवश्यकता होती है, लेकिन झारखंड में 6-8 महीने के 61 प्रतिशत बच्चों को ठोस/ अर्ध ठोस भोजन और मां का दूध नहीं मिलता है. ज्ञान और जानकारी की कमी, पारंपरिक प्रथाएं तथा देखभाल सुविधाओं के अभाव के चलते जन्म के बाद प्रारंभिक स्तनपान का पर्याप्त चलन नहीं हो पाया. शुरुआती दिनों में कई माताएं स्तनपान के तरीके सीखने के लिए भी संघर्ष करती हैं.
सफल स्तनपान अभ्यास को बढ़ावा देने के लिए उचित परिवेश और विशेषज्ञ निर्देश की आवश्यकता होती है. बच्चों को जीवन में सर्वोत्तम संभव शुरुआत देने के लिए माताओं को अपने परिवारों, स्वास्थ्य पेशेवरों, नियोक्ताओं और सरकार से सहयोग व प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है. स्वास्थ्य पेशेवरों, जैसे कि परामर्शदाता, नर्स तथा डॉक्टर, माताओं एवं बच्चों को स्तनपान कराने में मदद कर सकते हैं.
महिलाओं को सटीक जानकारी, परामर्श, घरों में एवं चिकित्सा केंद्रों तथा कार्यस्थल पर सहयोग प्रदान करने की जरूरत है, ताकि वे आत्मविश्वास के साथ कहीं भी बच्चे को स्तनपान करा सकें. हमें एक सक्षम वातावरण को बढ़ावा देना चाहिए तथा घर एवं कार्यस्थल दोनों जगहों पर उनकी सहायता करनी चाहिए.
इसमें पिता की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वे स्तनपान की प्रारंभिक शुरुआत तथा उसे जारी रखने में मदद कर सकते हैं. सभी स्वास्थ्य सेवाओं को स्तनपान को बढ़ावा देने तथा मां एवं नवजात के बेहतर देखभाल को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. स्तनपान एक मां के द्वारा खुद को, अपने बच्चे को और दुनिया को दिया जाने वाला एक सर्वोत्तम उपहार है. इसकी तुलना बच्चों को दी जाने वाली किसी भी दूसरी सुविधा और उपहार से नहीं की जा सकती है, क्योंकि यह अनमोल है.