टिड्डियों की चुनौती
टिड्डियों को भगाने के लिए ड्रोन और संगीत यंत्रों का असरदार इस्तेमाल हो रहा है. कीटनाशकों के प्रयोग के बारे में भी जल्दी ही निर्देश जारी होंगे.
उत्तर और पश्चिम भारत के कई इलाकों में जारी टिड्डियों के हमलों के जल्दी थमने के आसार नहीं हैं. प्रभावित क्षेत्रों में राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के कई जिले हैं. स्थानीय प्रशासन और किसान कीटनाशकों तथा तेज आवाज के सहारे टिड्डियों को भगाने में जुटे हैं. टिड्डी दल एक झटके में किसानों की मेहनत चट कर जा रहे हैं. ये इतने खतरनाक होते हैं कि अपने रास्ते में सारी हरियाली को चौपट कर देते हैं तथा एक दिन में मीलों का सफर तय कर लेते हैं.
तेज गति से प्रजनन करने के कारण इनकी संख्या भी बढ़ती जाती है. मॉनसून पूर्व बारिश से भी इन्हें प्रजनन के लिए अनुकूल मौसम मिल रहा है. हाल में राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में सर्दियों में इनके हमले हुए थे. आम तौर पर सर्दियों में टिड्डियोंका हमला नहीं होता है, लेकिन अफ्रीका, ईरान और पाकिस्तान से होते हुए भारत में इनकी आमद का जो रास्ता है, वह जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवातों और बेमौसम की बरसात से प्रभावित रहा है. मौजूदा हमलों का एक बड़ा कारण उनका सर्दियों में आना था और उन्हें रेगिस्तानी इलाकों में प्रजनन का अवसर मिल गया था.
यदि ये हमले जुलाई में भी जारी रहते हैं, तो फिर बरसात के मौसम में उन्हें रोका पाना असंभव हो जायेगा. टिड्डियों के हमले से खाद्यान्न की सामान्य आपूर्ति पर तो असर होगा ही है, इससे बड़ी संख्या में किसानों के जीवनयापन का संकट भी पैदा हो सकता है. हमारे किसान कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन से पैदा हुई स्थितियों से भी जूझ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ संबोधन में प्रभावित राज्यों को हरसंभव मदद का भरोसा दिया है.
उन्होंने यह भी उम्मीद जतायी है कि नयी तकनीक और तरीकों से इस संकट का समाधान हो जायेगा. उल्लेखनीय है कि टिड्डियों को भगाने के लिए ड्रोन और संगीत यंत्रों का असरदार इस्तेमाल हो रहा है. कीटनाशकों के प्रयोग के बारे में भी जल्दी ही निर्देश जारी होंगे. सर्दियों की घटनाओं के समय ही फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ने ऐसे हमलों के बारे में भारत को आगाह कर दिया था, लेकिन जब हमला इस कदर बड़ा हो, तो पहले से की गयीं तैयारियों का बहुत फ़ायदा नहीं मिल पाता है.
स्वतंत्रता से कुछ समय पहले और बाद के दशकों में ऐसे हमले अक्सर होते थे. इस वजह से तब टिड्डियों के बारे में विस्तृत शोध भी होता था. इसे रेखांकित करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने बताया है कि 1997 के बाद इस समस्या की गंभीरता बहुत कम हो जाने के कारण शोध का काम भी लगभग रूक गया था.
पर, मौजूदा घटनाओं को देखते हुए अनुसंधान कार्य को फिर से शुरू करने की जरूरत बढ़ गयी है. हमारी संस्थाओं को तुरंत इस दिशा में प्रयासरत होना चाहिए ताकि भविष्य में फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.