चुनाव के दौरान नकदी और नशीली चीजों की जब्ती
एक पखवाड़े पहले चुनाव आयोग ने बताया था कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने मार्च और पांचवें चरण के बीच नौ हजार करोड़ रुपये मूल्य की नगदी, आभूषण, शराब और नशीले पदार्थ जब्त किया.
कार्ल मार्क्स ने 1843 में लिखा था कि लोगों के लिए धर्म अफीम है. उन्होंने रेखांकित किया है कि यह उत्पीड़ितों की आह है, हृदयहीन दुनिया का हृदय है और आत्महीन परिस्थितियों की आत्मा है. उस दौर में उपचार में महत्व के कारण अफीम बहुत कीमती होता था. आज वे अफीम और उसके आधुनिक रूपों के बारे में क्या कहते, जिनका चुनावी इस्तेमाल पीड़ितों को नियंत्रित करने के लिए हो रहा है? उसके लिए उन्हें भारत आना पड़ता, जिसके बारे में उनकी धारणा थी कि यहां ब्रिटिश शासन ने तबाही मचायी, पर यह ‘एशिया के एकमात्र सामाजिक क्रांति के लिए’ जरूरी कीमत थी.
पर उन्हें यहां अब यह दिखता कि चुनावी जीत सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी तरीका मतदाताओं को विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थ देकर अपने पाले में लाना बन गया है. एक पखवाड़े पहले चुनाव आयोग ने बताया था कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने मार्च और पांचवें चरण के बीच नौ हजार करोड़ रुपये मूल्य की नकदी, आभूषण, शराब और नशीले पदार्थ जब्त किया. एजेंसियों ने हर दिन औसतन सौ करोड़ रुपये काला धन पकड़ा है, जिसे नोटबंदी के बाद खत्म हो जाना था. सातवें चरण तक 10 हजार करोड़ रुपये बरामद होने का अनुमान है, जबकि यह आंकड़ा 2019 में साढ़े तीन हजार और 2014 में लगभग एक हजार करोड़ रुपये रहा था.
अगर लोकतंत्र सबसे बड़ा उत्सव है, तो राजनीतिक दल इसे सबसे अधिक मनाते हैं. आयोग के आंकड़े बताते हैं कि बरामद नगदी केवल 850 करोड़ रुपये है, पर जब्त नशीले पदार्थों का मूल्य चार हजार करोड़ रुपये है. बरामद शराब का दाम भी आठ सौ करोड़ रुपये से अधिक है. यदि जांच एजेंसियों के आधिकारिक पैमानों को मानें, तो 80 हजार करोड़ रुपये की नगदी और अन्य चीजें उनकी निगाह से बच गयीं. संख्याएं राज्यों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान के बारे में बहुत सी कहानियां बता रही हैं.
सर्वाधिक नकदी- 377 करोड़ रुपये- चार दक्षिणी राज्यों- तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश- में बरामद हुई है. महंगे धातुओं की बरामदगी में भी दक्षिण आगे रहा है. एजेंसियों ने चुनाव के दौरान 1,260 करोड़ रुपये के आभूषण पकड़े हैं, जिसमें इन राज्यों का हिस्सा 441 करोड़ रुपये का है. लेकिन राजनीति के प्रेरक संभावित मतदाताओं को नशे में लाने के लिए कुछ आगे ही बढ़ गये. इन चार राज्यों में 337 करोड़ रुपये की शराब जब्त की गयी है. तमिलनाडु में 330 करोड़ रुपये के नशीले पदार्थ बरामद हुए है. गुजरात, पंजाब, बिहार से अचरज भरी कहानी सामने आ रही है. गुजरात और बिहार में आधिकारिक रूप से पूर्ण शराबबंदी है और शराब एवं अन्य नशीले पदार्थ बेचना आपराधिक है.
गुजरात में एजेंसियों ने मात्र 8.61 करोड़ रुपये की नकदी बरामद की है, लेकिन जब्त शराब की कीमत लगभग 30 करोड़ रुपये है. राज्य में लगभग 1,200 करोड़ रुपये मूल्य के नशीले पदार्थ बरामद हुए, जो पूरे देश में जब्त नशीले पदार्थों की कीमत (4,000 करोड़ रुपये) का लगभग 30 प्रतिशत है. गुजरात उन पांच राज्यों में भी एक है, जहां सबसे अधिक 128.50 करोड़ मूल्य के आभूषण बरामद किये गये. लेकिन नकदी के मामले में बिहार गरीब राज्य निकला, जहां चुनाव आयोग के दूतों को मात्र 14 करोड़ रुपये ही मिल सके. लेकिन राज्य के शराब माफिया से 48 करोड़ रुपये मूल्य की शराब जब्त की गयी. पंजाब में भारी मात्रा में नशीले पदार्थों और शराब के बरामद किये जाने से इस धारणा को भी बल मिला है कि राज्य एक ताकतवर नशा माफिया के चंगुल में है, जिसने चुनाव में भी भागीदारी की है.
चुनाव आयोग और अन्य एजेंसियों ने राज्य में 650 करोड़ रुपये से अधिक के मूल्य के नशीले पदार्थ जब्त किया है. पर कृषि के क्षेत्र में समृद्ध पंजाब के राजनीतिक बाजार में आयोग को केवल 15.50 करोड़ रुपये ही हाथ लग सके. महाराष्ट्र व दिल्ली ने राजनीतिक और वित्तीय रूप से एक पैमाना ही स्थापित कर दिया. चुनाव की घोषणा के बाद से ही आयोग और अन्य एजेंसियों की नजरें इन दो राज्यों में पैसे और अन्य चीजों की आवाजाही पर टिकी हुई थीं. इन दो राज्यों से 300 करोड़ रुपये मूल्य के आभूषण बरामद किये गये, जो समूचे देश में जब्त महंगे धातुओं का लगभग 25 प्रतिशत है.
यह बड़े आश्चर्य की बात है कि आभूषणों की सबसे अधिक बरामदगी दिल्ली में हुई. यहां 195 करोड़ रुपये के महंगे धातु पकड़े गये. दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र रहा, जहां जब्त आभूषणों की कीमत 188 करोड़ आंकी गयी. दिल्ली और महाराष्ट्र में एजेंसियों ने क्रमशः 90.79 तथा 75 करोड़ से अधिक की नकदी पकड़ी. जैसे-जैसे सोने और अन्य आभूषणों की मांग में भारी बढ़ोतरी होती गयी, राजस्व इंटेलिजेंस से जुड़ी एजेंसियों तथा चुनाव आयोग की निगाह आभूषण विक्रेताओं पर लगातार बनी रही. उल्लेखनीय है कि दिल्ली से बरामद प्रतिबंधित नशीले पदार्थों की बाजार कीमत 350 करोड़ से अधिक आंकी गयी.
पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और झारखंड में कहानी कुछ अलग है. चुनाव से पहले राजनेताओं के यहां से बड़ी मात्रा में नकदी पकड़ी गयी, पर चुनाव के दौरान आयोग अवैध नकदी तक नहीं पहुंच सका. उसे पश्चिम बंगाल में 31, ओडिशा में 17, झारखंड में 45.53 और असम में महज 6.75 करोड़ रुपये ही नकद मिल पाये. लेकिन पश्चिम बंगाल में जहां 90 करोड़ रुपये की अवैध शराब पकड़ी गयी, वहीं यह आंकड़ा ओडिशा में 35 करोड़ रुपये रहा. झारखंड में 56 करोड़ रुपये मूल्य के नशीले पदार्थ बरामद किये गये. पश्चिम बंगाल उन शीर्षस्थ राज्यों में एक रहा, जहां 60 करोड़ रुपये मूल्य की महंगे धातुओं से बनी चीजें जब्त की गयीं.
यह विडंबना ही है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे अन्य उत्तर भारतीय राज्य बड़े शरीफ दिखे. इन राज्यों में देशभर से बरामद नकदी और आभूषणों का 10 प्रतिशत से कम हिस्सा जब्त किया गया. हिमाचल प्रदेश में 50 लाख रुपये बरामद हुए, तो पूर्वोत्तर के अधिकतर छोटे राज्यों में यह राशि एक करोड़ रुपये से भी कम रही.
यहां तक कि 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में जांच एजेंसियों को केवल 35 करोड़ रुपये नकद ही हाथ लग सके. अधिकतर मतदाताओं के लिए चुनाव में तीन विकल्प ही थे- पैसा, जहरीली बातें और नशीली चीजें. अब यह उन पर है कि वे उनका वोट चाहने वालों से अधिक परिपक्वता दिखायें. किताब की जगह अवैध चीजें अब लोकतांत्रिक निर्णयों को अधिक प्रभावित कर रही हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)