फिर देख बहारें होली की

भागमभाग भरी जिंदगी में यह त्योहार सुकून देता है. यह अकेला ऐसा त्योहार है, जो समतामूलक समाज की परिकल्पना को भी साकार करता है. यह त्योहार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी है.

By Ashutosh Chaturvedi | March 12, 2020 1:01 PM
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आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in भारत में होली का अपना पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्व है. यह रंगों और खुशियों का त्योहार है. पूरा माहौल मस्ती से झूम उठता है. हमारे सारे त्योहार किसी-न-किसी मौसम से जुड़े हुए हैं. रंगों का यह त्योहार वसंत का संदेशवाहक भी है. संगीत और मस्ती इसके मुख्य तत्व हैं. इस दौरान गाने-बजाने की लंबी परंपरा रही है. भागमभाग भरी जिंदगी में यह त्योहार सुकून देता है. यह अकेला ऐसा त्योहार है, जो समतामूलक समाज की परिकल्पना को भी साकार करता है. इस त्योहार में जाति-धर्म या अमीरी-गरीबी की कोई खाई नहीं होती. सब मिलजुल कर इस त्योहार को मनाते हैं, एक दूसरे पर अबीर-गुलाल डालते हैं.

हालांकि इस बार इस त्योहार पर कोरोना वायरस का साया पड़ गया है. इससे होली मिलन के अनेक कार्यक्रम रद्द कर हो हैं. इसका असर मथुरा-वृंदावन की होली पर भी पड़ा है. यहां की होली की धूम दुनियाभर में है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोरोना के प्रसार को देखते हुए होली मिलन कार्यक्रमों में हिस्सा न लेने का फैसला किया है, लेकिन रंगों का त्योहार फीका तो हो सकता है, बेरंग नहीं हो सकता.

संगीत और रंग होली के मुख्य तत्व हैं. बिहार-झारखंड में फगवा गाने की परंपरा है. यह होली के कई दिन पहले शुरू हो जाता है. एक दौर था, जब कोई भी फिल्म बिना होली के गीत के पूरी नहीं होती थी. आज भी होली के गाने गाये जाएं और सिलसिला का यह गीत- रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे, न बजे, ऐसा हो नहीं सकता है. शास्त्रीय और लोकगीत परंपराओं में भी होली का विशेष महत्व है. ध्रुपद, धमार और उपशास्त्रीय संगीत में चैती, दादरा और ठुमरी में अनेक प्रसिद्ध होलियां हैं.

लोकगीतों में हमारे अलग-अलग अाराध्य और प्रांतों की माटी की सोंधी खुशबू इन गीतों से आती है. ब्रज में राधा-कृष्ण और गोपियां इसके केंद्र में रहते हैं और ‘आज बिरज में होरी रे रसिया…’, खूब गाया जाता है. राम और सीता की होली का एक अलग रंग- होली खेलें रघुवीरा अवध में…, नजर आता है. बाबा भोलेनाथ के भक्त- खेलैं मसाने में होरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी… का गायन करते नजर आते हैं. दूसरी ओर अमीर खुसरो- आज रंग है री मन रंग है, अपने महबूब के घर रंग है री… जैसी आध्यात्मिक होली का रंग पेश करते हैं.

रंग व गुलाल के साथ गुझिया की मिठास इस त्योहार को और रंगीन बना देती है. भारत के अधिकांश त्योहार नयी फसल से जुड़े हुए हैं. होली के अवसर पर भी होलिका में गेहूं की बाली और चने के होला को अर्पित किया जाता है. प्राचीन समय से ही खेत के अधपके अन्न को होली में अर्पित करने का विधान है. इस अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा.

होली को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं. कहा जाता है, पहली होली भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ खेली थी. यही वजह है कि ब्रज में होली भारी धूमधाम से मनायी जाती है. एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के प्रति आस्था प्रदर्शित करने के लिए होली खेली जाती है. होलिका और प्रह्लाद की कथा होली की महत्वपूर्ण कथाओं में से एक है. कहा जाता है कि एक समय पूरी दुनिया पर हिरण्यकश्यप नामक राक्षस का राज था.

वह क्रूर शासक था और सभी से अपनी पूजा करवाना चाहता था, पर उसके बेटे प्रह्लाद ने उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया. प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था. इस बात को लेकर हिरण्यकश्यप बहुत नाराज रहता था. उसने कई बार प्रह्लाद को मरवाने की कोशिश की, पर भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर बार बच जाता था. जब बात बहुत बढ़ गयी, तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता मांगी.

होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती है. होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गयी. यह भूल गयी कि आग तब तक उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती है, जब तक कि वह आग में अकेले जाती है. हुआ यह कि होलिका तो जल गयी और प्रह्लाद विष्णु के आशीर्वाद से सकुशल आग से बाहर आ गया. इसलिए होली को भगवान विष्णु के प्रति आस्था व्यक्त करने के रूप में भी देखा जाता है.

यह त्योहार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी है. यही वजह है कि होली से नजीर अकराबादी जैसे शायर भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहे. उन्होंने अनेक होलियां लिखीं. आगरा और उसके आसपास आज भी ये होलियां गायी जाती हैं. बानगी देखिए-

मुंह लाल गुलाबी आंखें हों

और हाथों में पिचकारी हो

उस रंग भरी पिचकारी को

अंगिया पर तक कर मारी हो

सीनों से रंग ढलकते हों

तब देख बहारें होली की.

नजीर का जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल माना जाता है. उन्होंने न केवल होली, बल्कि लगभग सभी हिंदू त्योहारों पर अपनी कलम चलायी है. नजीर लिखते हैं-

तुम रंग इधर लाओ और हम भी उधर आवें

कर ऐश की तय्यारी धुन होली की बर लावें

और रंग के छीटों की आपस में जो ठहरावें

जब खेल चुकें होली फिर सीनों से लग जावें

भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में अलग तरह से मनाया जाता है. बरसाने की लट्ठमार होली खासी प्रसिद्ध है. इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें लाठियों से प्रतीकात्मक रूप से पीटती हैं. महाराष्ट्र में रंग पंचमी की परंपरा है, तो पंजाब में होला मोहल्ला में शक्ति प्रदर्शन किया जाता है. बिहार में फगुआ की धूम रहती है, लेकिन भागमभाग भरी जिंदगी ने हमारे त्योहारों और परंपराओं में परिवर्तन ला दिया है.

रही सही कसर टेक्नोलॉजी ने पूरी कर दी है. होली के सांस्कृतिक स्वरूप के समक्ष संकट खड़ा हो गया है. होली के दौरान सूखी लकड़ियां एकत्रित कर होलिका जलाने की परंपरा रही है, पर अब हरे-भरे पेड़ काटे जाने लगे हैं. पहले होली चंदन, गुलाब जल, टेसू के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी. भांग ठंडाई की मस्ती का स्थान शराब ने ले लिया है. पहले लोग होली के अवसर गले मिल कर एक दूसरे को बधाई देते थे. आपस में एक संवाद होता था.

अब हम सब व्हाट्सएप संदेशों से काम चला लेते हैं. मस्ती का स्थान औपचारिकता ने ले लिया है. यह त्योहार आपसी भाईचारे और पुरानी अदावत को समाप्त करने का है, लेकिन कुछ लोग इस त्योहार की आड़ में अपनी पुरानी रंजिश का हिसाब किताब भी चुकाने लगे हैं. हम सब की कोशिश होनी चाहिए कि होली का सांस्कृतिक स्वरूप बचा रहे और प्रकृति के प्रति हमारी चेतना बनी रहनी चाहिए. बुरा न मानो होली के साथ सभी को होली की शुभकामनाएं.

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