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प्रभु वर्ग को मानसिकता बदलनी होगी

आजादी के 75 साल बाद भी हमारे समाज का एक वर्ग अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हो पाया है. यह वर्ग हिंदी भाषी लोगों को बिहारी कह कर बेइज्जत करने की लगातार कोशिश करता है.

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने को प्रभु वर्ग का दिखाने के लिए समाज के एक तबके में बिहार-झारखंड-उत्तर प्रदेश के लोगों को गाली देने का चलन बढ़ गया है. हाल में दिल्ली से सटे नोएडा में एक महिला ने सोसाइटी के गार्ड के साथ बदसलूकी की और उसने अपनी बकवास का अंत गार्ड को बिहारी कह कर किया. वजह यह बतायी जा रही है कि गेट खोलने में गार्ड से थोड़ी देरी हो गयी, क्योंकि वह कार का नंबर नोट कर रहा था.

इस पर महिला भड़क गयी और उसने गार्ड को भद्दी-भद्दी गालियां दीं. वीडियो में महिला सुपरवाइजर को कहती हुई सुनाई दे रही थी- संभाल लो इन बिहारियों को. वहां मौजूद एक गार्ड ने इस पूरी घटना का वीडियो बना लिया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इसके आधार पर महिला की गिरफ्तारी हुई और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया. हमारे देश के प्रभु वर्ग ने बिहारी को गाली बना दिया है और उन्होंने मान लिया है कि अंग्रेज उन्हें यह अधिकार दे गये हैं कि वे बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के मेहनतकश लोगों को कभी भी गाली दे सकते हैं.

दूसरी ओर वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि गार्ड का व्यवहार बेहद संयत था. उसने बदले में कोई अभद्रता नहीं की. अगर वह चाहता, तो दो हाथ जड़ कर महिला को उसकी औकात दिखा सकता था. मेरा मानना है कि यह एक घटना मात्र नहीं है, बल्कि मानसिकता का मामला है. आजादी के 75 साल बाद भी समाज का एक वर्ग अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हो पाया है. वह अपने आपको आज भी सामंत और प्रभु वर्ग का मानता है. यह वर्ग हिंदी भाषी लोगों को बिहारी कह कर बेइज्जत करने की लगातार कोशिश करता है.

महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब व हरियाणा में बिहार, झारखंड और यूपी के कामगार बड़ी संख्या में हैं. अक्सर यह होता है कि कानून व्यवस्था से जुड़ी कोई घटना होने पर बिना तथ्यों की जांच किये सारा दोष इन कामगारों के मत्थे मढ़ दिया जाता है. पिछले कुछ दशकों में पंजाब की सियासत में बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों का प्रभाव बढ़ा है. प्रभु वर्ग को यह पसंद नहीं है.

याद करें, पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बयान दिया था कि यूपी, बिहार और दिल्ली के भइये अब पंजाब पर राज करना चाहते हैं. बाद में उन्होंने सफाई दी थी. उनका आशय कुछ भी रहा हो, पंजाब चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह पिट गयी. माना जाता है कि इसमें एक कारण उनका यह बयान भी था.

अब उनसे कोई पूछे कि गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पटना साहिब में हुआ था और आप कहते हैं कि बिहार के लोगों को घुसने नहीं देंगे! विभिन्न राज्यों से यदा-कदा बिहार व झारखंड के मजदूरों के साथ मारपीट और उन्हें अपमानित करने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में एक पनबिजली परियोजना में काम कर रहे झारखंड के मजदूरों के साथ मारपीट की गयी.

मजदूरों की गुहार पर झारखंड सरकार के हस्तक्षेप के बाद चार जत्थों में कुल 61 मजदूरों की वापसी सुनिश्चित हुई. कुछ अरसा पहले महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम, जम्मू, तमिलनाडु और केरल से भी हिंदी भाषियों के साथ अभद्रता की खबरें आती रही हैं.

देखने में आया है कि अधिकतर मामलों में स्थानीय स्वार्थों के लिए हिंदी भाषियों को निशाना बनाया गया. मैं पहले भी कहता आया हूं कि लोग अक्सर इस बात को भूल जाते हैं कि गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की जो आभा और चमक-दमक है, उसमें बिहार, झारखंड और यूपी के लोगों का भारी योगदान है. यह आभा और चमक-दमक उनके बिना खो भी सकती है. इन राज्यों की विकास की कहानी बिना बिहारियों के योगदान के नहीं लिखी जा सकती है.

बावजूद इसके, उन्हें निशाना बनाया जाता है. इसमें सोशल मीडिया की बेहद खराब भूमिका रही है. ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जब सोशल मीडिया के जरिये बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ नफरत भरे संदेश फैलाये गये हैं. मुझे याद है कि कुछ अरसा पहले गुजरात के साबरकांठा जिले में एक बच्ची से दुष्कर्म हुआ था, जिसका सारा दोष बिहारी समाज पर मढ़ दिया गया था. इसके बाद सोशल मीडिया पर हिंदी भाषी समाज के खिलाफ अभियान चला और पूरे समाज को कठघरे में खड़ा कर दिया गया.

हम सबको जानने की जरूरत है कि बिहार का इतिहास हजारों साल पुराना है. बिहार से गौतम बुद्ध का नाता रहा है. उनके उपदेशों को मानने वाले आज पूरी दुनिया में हैं. यहीं से महावीर जैसे विचारक आते हैं, जिनके द्वारा स्थापित जैन संप्रदाय देश का एक प्रमुख धर्म है. बिहार 24 जैन तीर्थंकरों की कर्मभूमि रहा है. सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हुआ था. आज भी देश-विदेश से बड़ी संख्या में सिख धर्मावलंबी उनके जन्म स्थान पर मत्था टेकने आते हैं.

यहां चाणक्य, वात्स्यायन, आर्यभट्ट और चरक जैसे विद्वानों ने जन्म लिया और देश व दुनिया को अपने विचारों से दिशा दी है. बिहार की माटी के सपूत डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने. जयप्रकाश नारायण ने यहीं से इमरजेंसी के खिलाफ बिगुल फूंका. देश को बड़े-बड़े लेखक, विचारक, प्रशासक और मेधावी युवक उपलब्ध कराने का यह सिलसिला आज भी जारी है. हर बिहारवासी उस परंपरा का वाहक है.

इस बात में तो कोई दो राय नहीं है कि बिहार-झारखंड के लोग मेहनतकश हैं, लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा दौर में बिहार के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं और हम अब भी बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं. अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने के बावजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में पिछड़ा हुआ है तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहा है.

कोसी और सीमांचल के इलाके को बाढ़ से आज भी मुक्ति नहीं मिल पायी है. अगर इससे मुक्ति मिल जाए, तो पूरे इलाके की तस्वीर बदल सकती है. हर साल दिल्ली और दक्षिण के राज्यों में उच्च शिक्षा के लिए बिहार-झारखंड के हजारों बच्चे जाते हैं. राजस्थान के कोटा में इन राज्यों से हजारों छात्र कोचिंग के लिए जाते हैं. हमें बिहार को शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित करने की जरूरत है, ताकि हमारे बच्चों को पढ़ाई और कोचिंग के लिए बाहर जाने की जरूरत न पड़े. इसी तरह रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे, जिससे बाहर जाने की मजबूरी न रहे.

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