देश की आजादी की यह शताब्दी सतत विकास से जुड़े राष्ट्रीय प्रयासों को एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल करने का मौका प्रदान करती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबके लिए बुनियादी सुविधाओं से लैस विकास के लक्ष्य को पाने के लिए ‘सबका प्रयास’ का आह्वान किया है. अब जब मोदी सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को विस्तारित करने की कोशिश कर रही है, जलवायु परिवर्तन कई चुनौतियों में से एक है.
जलवायु विज्ञान ने यह तथ्य स्थापित किया है कि वैश्विक सतह के तापमान में वृद्धि संचयी उत्सर्जन की समानुपाती होती है और इस वृद्धि को सीमित करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन को एक खास सीमा के भीतर रखने की जरूरत है. इस सीमा को वैश्विक कार्बन बजट कहा जाता है. यह कोई रहस्य नहीं है कि विकसित देशों द्वारा बेहद असंगत तरीके से इस बजट के बड़े हिस्से का उपयोग किया गया है.
ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिकीकरण के पूर्व के स्तर के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की 50 प्रतिशत संभावना के लिए 2020 से दुनिया के पास 500 गीगाटन और ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि तक सीमित करने की 50 प्रतिशत संभावना के लिए 1350 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य का शेष कार्बन बजट है.
भारत की जलवायु नीति को इंगित करने वाला प्रमुख सिद्धांत कम कार्बन उत्सर्जन आधारित विकास के रास्ते लक्ष्यों को हासिल करना है. प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा है कि भारत का विकास प्रतिमान स्पष्ट तौर पर विकास और जलवायु कार्रवाई को एक-दूसरे के विरोधाभासी के बजाय पूरक के रूप में देखता है. भारत राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप कम कार्बन उत्सर्जन आधारित विकास की दिशा में प्रयासरत है.
एक लंबी तटीयरेखा वाले विकासशील देश के रूप में, मानसून में व्यवधान की नाजुकता, आजीविका के लिए कृषि पर अत्यधिक निर्भरता और जल निकायों पर संभावित प्रभाव, जलवायु की चरम स्थितियों और परिणामी खतरों के अन्य किस्म के जोखिमों के बीच भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण संभावित रूप से विकास का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा.
फिर भी अपनी जिम्मेदारियों, परंपराओं एवं संस्कृति को ध्यान में रखते हुए भारत ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती का सामना करने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत की दीर्घकालिक रणनीति सात प्रमुख बदलावों पर टिकी हुई है. भारत ने पहले ही विभिन्न नीतियों, कार्यक्रमों और पहलों के जरिये इन बदलावों को अपनाना शुरू कर दिया है.
इनमें पहला है बिजली प्रणालियों द्वारा कम कार्बन उत्सर्जन. औद्योगिक विस्तार को संभव बनाने, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए बिजली क्षेत्र का विकास बेहद महत्वपूर्ण है. भारत नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार कर रहा है और ग्रिड को मजबूत कर रहा है. वह कम कार्बन उत्सर्जन वाली अन्य प्रौद्योगिकियों की खोज और/ या उन्हें सहायता प्रदान कर रहा है, जीवाश्म ईंधन संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग की ओर बढ़ रहा है. दूसरा बदलाव परिवहन प्रणाली से संबंधित है.
जीडीपी में परिवहन का बड़ा योगदान है. देश बेहतर ईंधन दक्षता को प्रोत्साहित कर रहा है, स्वच्छ ईंधन को अपनाने की दिशा में एक चरणबद्ध बदलाव को बढ़ावा दे रहा है, सार्वजनिक और परिवहन के कम प्रदूषणकारी साधनों की ओर बहुआयामी बदलाव, परिवहन के विभिन्न साधनों का विद्युतीकरण, मांग पक्ष, यातायात प्रबंधन और कुशल परिवहन प्रणालियों को मजबूत कर रहा है. टिकाऊ शहरीकरण तीसरा अहम आयाम है.
भारत शहरी नियोजन से संबंधित दिशानिर्देशों, नीतियों एवं उपनियमों में संसाधन दक्षता को बढ़ावा दे रहा है, इमारतों तथा शहरी प्रणालियों में जलवायु के अनुकूल और लचीले भवन डिजाइन, निर्माण और कार्यान्वयन को बढ़ावा दे रहा है. पानी व कचरा प्रबंधन के जरिये कम उत्सर्जन वाली नगरपालिका सेवा को बढ़ावा दे रहा है.
विकास प्रक्रिया का उत्सर्जन से अलगाव चौथी अहम रणनीति है. जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने वाली निर्देशित नीतियों के साथ औद्योगिक विकास हमारा एक प्रमुख उद्देश्य है. मोदी सरकार अनौपचारिक क्षेत्र को मान्यता देने और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के विकास के लिए समुचित प्रयास कर रही है. इनमें कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकल्पों का पता लगाया जा रहा है. भारत का ध्यान विनिर्माण क्षेत्र में प्राकृतिक और जैव-आधारित सामग्रियों के उपयोग,
प्रसंस्करण एवं ईंधन स्विचिंग और विद्युतीकरण के प्रयासों को बढ़ाकर ऊर्जा एवं संसाधन दक्षता में सुधार लाने, सामग्री दक्षता बढ़ाने और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने, चक्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने, कम उत्सर्जन और उद्यमों के सतत विकास आदि पर है. कार्बन डाइऑक्साइड हटाने और अन्य इंजीनियरिंग संबंधी समाधान पर जोर पांचवा आयाम है. कार्बन डाइऑक्साइड हटाना एक नया क्षेत्र है.
इसके लिए नवाचार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, जलवायु-विशिष्ट वित्त और क्षमता निर्माण के माध्यम से पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत है. सामाजिक-आर्थिक और इकोसिस्टम संबंधी विचारों के अनुरूप वन एवं वनस्पति के आवरण को बढ़ाना प्रमुख रणनीति है. प्राकृतिक संसाधनों की वृद्धि, संसाधनों की विरासत के संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देने के प्रति भारत की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता इस रणनीति को संचालित कर रही है.
यह आजीविका, सामाजिक और सांस्कृतिक निर्भरता को ध्यान में रखते हुए एक समावेशी दृष्टिकोण भी होगा. सातवीं रणनीति कम उत्सर्जन वाले विकास के आर्थिक एवं वित्तीय पहलू से संबद्ध है. गरीबी उन्मूलन, रोजगार एवं आय में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने और समृद्धि के एक नये स्तर तक पहुंचने की प्राथमिकताओं को देखते हुए, कम लागत वाला अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त आवश्यक है.
भारत वित्तीय आवश्यकताओं का आकलन कर रहा है, जलवायु विशिष्ट वित्त को जुटा रहा है और जलवायु वित्त की मुख्य धारा को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के साथ-साथ नये बहुपक्षीय तंत्र को नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास का समर्थन करने के लिए जोड़ रहा है. प्रधानमंत्री ने अपने कार्यों और नीतियों से सुनिश्चित किया है कि भारत एक राष्ट्र के रूप में धरती को बचाने के लिए जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है. भारत अंतरराष्ट्रीय सहयोग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और वैश्विक जलवायु व्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्रिय रहा है तथा हम जलवायु परिवर्तन पर विभिन्न समझौतों पर सामूहिक रूप से सहमत हुए हैं.