महाकुंभ में भारत की विराट संस्कृति के दर्शन, पढ़ें अवधेश कुमार का खास लेख
Maha Kumbh : जरा सोचिए, हमारे महान ऋषि-मुनियों ने किस तरह समय-समय पर इन सबको समन्वित करते हुए संपूर्ण विश्व और ब्रह्मांड, मानव, जीव-जंतु सबके कल्याण का भाव पैदा करने के लिए दिव्य परंपराएं स्थापित कीं. जिस तरह गंगा-यमुना और अमूर्त सरस्वती का संगम है, उसी को साकार करता अलग-अलग विचारधाराओं, पंथों, मतों, भाषाओं, क्षेत्रों, रंग-रूपों, जातियों, संप्रदायों से जुड़े जनसमूह, सब वहां जाकर वाकई एक हो जा रहे हैं.
Maha Kumbh : प्रयागराज के त्रिवेणी संगम से निकल कर आ रहे महाकुंभ के दृश्य पूरे देश को आह्लादित कर रहे हैं. तेरह जनवरी को बुधादित्य महायोग के दिन का आंकड़ा एक करोड़, पचहत्तर लाख, तो 14 जनवरी को लगभग साढ़े तीन करोड़ श्रद्धालुओं के संगम स्नान करने का आया है. संपूर्ण विश्व आश्चर्यचकित हो इसके पीछे की शक्ति और भावना को समझने की कोशिश कर रहा है. आप कल्पना कीजिए की 12 फरवरी तक कितने जनसमूह वहां पहुंचेंगे. मोटा-मोटी आकलन है कि लगभग 40 करोड़ लोग देश-विदेश से प्रयागराज महाकुंभ पहुंचेंगे.
भगवा की बहुतायत, परंतु प्रकृति में उपस्थिति हर रंगों की लहराती ध्वजाएं, पताकाएं और अपने विशिष्ट वेशभूषा में साधु-संत समेत देशी-विदेशी जनों ने ऐसा विहंगम दृश्य प्रस्तुत किया है, जिसका वर्णन आसान नहीं है. लगातार बजते घड़ी-घंटाल, शंखों की गूंजती ध्वनि, मंत्रोच्चार, 24 घंटे पवित्र गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम में स्नान करते असंख्य लोग, यज्ञशालाओं से निकलती हवन कुंड की अग्नि. भजन-कीर्तन के साथ प्रवचनों और हेलीकॉप्टरों द्वारा की जा रही पुष्प वर्षा से निर्मित वातावरण और वहां जाने वालों के चेहरों पर दिख रहे भाव अद्भुत.
नरेंद्र मोदी सरकार और योगी आदित्यनाथ सरकार ने लोगों की रिकॉर्ड उपस्थिति का आकलन करते हुए हर संभव व्यवस्था करने की कोशिश की है. इसलिए पूरे कुंभ नगर का विस्तार 4000 हेक्टेयर करके उसे 25 सेक्टरों में बांटा गया, डेढ़ लाख से अधिक टेंट लगाये गये, 44 घाटों पर स्नान की व्यवस्था हुई, जो 12 किलोमीटर लंबाई में फैली हुई है. इसी तरह 102 पार्किंग बनाये गये हैं जिनमें साढ़े पांच लाख गाड़ियां खड़ी हो सकती हैं. कुल 45 दिनों के लिए रेलवे, हवाई जहाज, राज्य सरकार की बसें, शटल बसें आदि विस्तारित की गयी हैं. समाज में विचार, व्यवहार, कर्मकांड आदि के बीच विरोधाभास, विविधताएं या विभाजन आज से नहीं, शताब्दियों से है.
जरा सोचिए, हमारे महान ऋषि-मुनियों ने किस तरह समय-समय पर इन सबको समन्वित करते हुए संपूर्ण विश्व और ब्रह्मांड, मानव, जीव-जंतु सबके कल्याण का भाव पैदा करने के लिए दिव्य परंपराएं स्थापित कीं. जिस तरह गंगा-यमुना और अमूर्त सरस्वती का संगम है, उसी को साकार करता अलग-अलग विचारधाराओं, पंथों, मतों, भाषाओं, क्षेत्रों, रंग-रूपों, जातियों, संप्रदायों से जुड़े जनसमूह, सब वहां जाकर वाकई एक हो जा रहे हैं. न कोई भेद न कोई दूरी.
इस तरह से देखा जाए, तो महाकुंभ पर्व संपूर्ण विश्व के जन-जन को एक करने, यानी ‘मातृभूमि पुत्रो अहम पृथिव्या’ की अथर्ववेद की अवधारणा को साकार करने का पर्व है.
प्रयागराज को तीर्थराज कहा गया है और यह निर्वाण की भूमि मानी गयी है. पुरुषार्थ चातुष्ट्य- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों का विपुल भंडार. माना गया है कि यहां आने से सब पाप धुल जाते हैं और त्रिवेणी के तट से अंतर्मन के सारे विकार, क्लेश, दोष मिट जाते हैं. मूल बात है संगम और कुंभ के भाव को समाहित करने का. वह यहां साकार दिखता है. हमारे देश में अंग्रेज काल से तथाकथित इतिहासकारों ने भारत और सनातन की सारी परंपराओं, प्रथाओं, पर्व-त्योहारों, पावन अवसरों के अतीत की तिथियां को देखने और अपनी अज्ञानता प्रदर्शन करने की ऐसी नींव डाली कि अकादमिक क्षेत्र में कोई भी विषय अविवादित रहा ही नहीं. किसी की तिथि मान्य नहीं, उद्गम मान्य नहीं. किंतु आम जनमानस के लिए संगम का आरंभ कब से हुआ, किसने किया, किस काल में था, इनके न कोई अर्थ थे, न हैं और न आगे होंगे. यह हमारे महान पूर्वजों के दिये गये संस्कार और चरित्र हैं जिसने राजनीतिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक, आर्थिक व्यवस्थाओं और ढांचों की प्रतिकूलताओं से परे किसी न किसी रूप में आज तक ऐसी मौलिकता के साथ इन सबको कायम रखा है. यही हमारी अंत:शक्ति है जिस पर भारत विश्व के लिए आदर्श व दिशा देने वाला देश बन सकता है.
संसदीय लोकतंत्र में राजनीतिक नेतृत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका हो गयी है. ऐसा नहीं है कि राजनीतिक सत्ता हमारे धर्म व कर्मकांड आदि के रास्ते निर्धारित करते हैं, किंतु यदि उन्हें इसकी समझ है या वे ज्ञानियों से समझने की कोशिश करते हैं, तो अनुकूलताएं निर्मित होतीं हैं, व्यवस्थाएं खड़ी होतीं हैं, उसके अनुरूप आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराते हैं, तो इनसे महाकुंभ जैसे आयोजन अपनी संपूर्णता में प्रकट होते हैं. इसी मायने में केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पूर्व की सरकारों से गुणात्मक रूप से भिन्न प्रमाणित हो रही है. इतने विशाल और व्यापक जनसमूह वाले लंबे आयोजन की दृष्टि से कोई भी व्यवस्था संपूर्ण या आदर्श नहीं हो सकती. बावजूद आप संघ, भाजपा, मोदी, योगी या उनकी सरकारों के विरोधी हों या समर्थक, निष्पक्षता से विचार कीजिए और निष्कर्ष निकालिए कि क्या पूर्व की सरकारें ऐसे धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व के आयोजनों को इनकी मौलिकता के अनुरूप स्वरूप देने के लिए इतनी सूक्ष्मता से विचार एवं व्यवस्थाएं करती रहीं हैं?
अभी तक के अधिकतर राजनीतिक नेतृत्व ने भारत की मूल आध्यात्मिक शक्ति और विविधता के बीच एकता स्थापित करने वाली इन महान स्थापित परंपराओं को ठीक से समझने की कोशिश नहीं की. भारतीय मनीषियों ने यदि दावा किया कि एकमात्र यही भूमि है जिसमें संपूर्ण विश्व को प्रेरणा देकर सुख, शांति, समृद्धि के रास्ते पर लाने की क्षमता है, तो उसे साकार करने का दायित्व हमारा ही था. महाकुंभ जैसे आयोजन में बगैर कुछ बोले संपूर्ण विश्व में यह संदेश जा रहा है कि कैसे एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अलग-अलग पंथों, संप्रदायों, जिनके बीच घोर मतभेद और कुछ के मध्य संघर्ष रहे हैं, सब एकत्र होकर आत्मोद्धार, समाज और विश्व कल्याण के भाव से संगम में स्नान-यज्ञ आदि कर रहे हैं.
यदि आधुनिक संदर्भ में कहें, तो यह भारत की देश में और बाहर जबरदस्त ब्रांडिंग है. इन सबसे न केवल यह धारणा खंडित हो रही है कि भारत को पश्चिम द्वारा एक राष्ट्र राज्य का स्वरूप दिया गया, इसकी कोई प्राचीन सभ्यता और ज्ञात इतिहास नहीं, बल्कि यह भी स्थापित हो रहा है कि यह प्राचीन सभ्यता व महान विरासत के ठोस आधारों पर खड़ा आधुनिकतम सोच व व्यवस्थाओं से सामंजस्य बिठाने वाला परिपूर्ण देश है. ऐसे ही समग्र चरित्र वाले देश की महत्ता और नेतृत्व क्षमता स्वीकृत हो सकती है. राजनीतिक नेतृत्व की यही भूमिका होनी चाहिए थी जो आज केंद्र से राज्य तक दिख रही है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)