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शुरू हो चुका है रंगमंच का महाकुंभ ‘भारंगम’

Bharat Rang Mahotsav : भारंगम का प्रमुख केंद्र दिल्ली ही रहेगा, पर देश के 10 अन्य शहरों- रांची, भोपाल, अहमदाबाद, बेंगलुरु, जयपुर, अगरतला, गोवा, भटिंडा, खैरागढ़ और गोरखपुर- में भी विभिन्न नाटकों का मंचन होगा.

Bharat Rang Mahotsav : इन दिनों प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन से पूरा देश ही नहीं, विश्व के बहुत से देश भी अभिभूत हैं. उधर अब देश में 28 जनवरी से रंगमंच का महाकुंभ ‘भारत रंग महोत्सव’ भी आरंभ हो चुका है. अट्ठाईस जनवरी से 16 फरवरी तक, यानी 20 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में विश्व के करीब 200 नाटकों का मंचन होगा. इसमें देशभर के विभिन्न नाट्य समूहों के साथ रूस, जर्मनी, इटली, स्पेन, नेपाल, श्रीलंका, नॉर्वे, ताइवान और चेक गणराज्य जैसे नौ देश भी सम्मिलित हो रहे हैं.

वैसे तो भारंगम का प्रमुख केंद्र दिल्ली ही रहेगा, पर देश के 10 अन्य शहरों- रांची, भोपाल, अहमदाबाद, बेंगलुरु, जयपुर, अगरतला, गोवा, भटिंडा, खैरागढ़ और गोरखपुर- में भी विभिन्न नाटकों का मंचन होगा. इस महोत्सव में जहां नाटकों का मंचन हिंदी, संस्कृत, मराठी, गुजराती, बांग्ला, पंजाबी, असमिया, तमिल, तेलुगू, मणिपुरी, उड़िया और कन्नड भाषाओं में होगा, वहीं अंग्रेजी, रूसी, इटैलियन, नेपाली और स्पेनिश जैसी विदेशी भाषाओं में भी कुछेक नाटक मंचित होंगे.


विदित हो कि भारंगम का आयोजन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी रामगोपाल बजाज के निदेशक काल में ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ ने 1999 में शुरू किया था. पिछले 25 बरसों में भारंगम ने कई उड़ानें भरीं. पर इस बार भारंगम के नाटकों का मंचन भारत के साथ-साथ नेपाल और श्रीलंका में भी होने जा रहा है. इससे जहां इसका स्वरूप अंतरराष्ट्रीय हो गया है, वहीं अब यह विश्व का सबसे बड़ा नाट्योत्सव भी बन गया है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (रानावि) ने अपने पूर्व छात्र और प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता राजपाल यादव को इस वर्ष के उत्सव का रंगदूत बनाया है. इस बार ‘विश्व जन रंग’ नामक नयी पहल भी की जा रही है. इसके अंतर्गत विश्व के सातों महाद्वीपों में रहने वाले भारत के युवा कलाकार अपने-अपने नाटकों का ऑनलाइन प्रदर्शन करेंगे.

बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर उत्सव के दौरान एक ‘समावेशी रंगमंच’ का आयोजन भी होगा. भारंगम की टैग लाइन ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की तर्ज पर ‘एक रंग-श्रेष्ठ रंग’ रखी गयी है. चूंकि इस वर्ष रानावि अपनी स्थापना का 65वां और रानावि का रंगमंडल अपनी स्थापना का 60वां वर्ष मना रहा है. इसलिए रंग मंडल देशभर में अपने पुराने नाटकों का ‘रंग षष्ठी’ नाम से रंग उत्सव का आयोजन भी कर रहा है. दिल्ली में भारंगम के विभिन्न नाटकों और अन्य गतिविधियों का आयोजन मंडी हाउस क्षेत्र में रानावि परिसर के अभिमंच और बहुमुख थिएटर के साथ ही संगीत नाटक विद्यालय के ‘मेघदूत’ में तो होगा ही, कमानी, श्रीराम केंद्र और एलटीजी सभागार में भी होगा.


इस महोत्सव के दौरान देश-विदेश के कुल 13 मंचों पर कई प्रसिद्ध लेखकों और रंगकर्मियों के नाटकों का मंचन होगा, जिनमें मोहन राकेश लिखित और त्रिपुरारी शर्मा निर्देशित सुप्रसिद्ध नाटक ‘आधे अधूरे’ भी शामिल है. यह नाटक, नाट्य प्रेमियों के लिए प्रमुख आकर्षण होगा. ‘आधे अधूरे’ को अब तक हजार बार मंचित किया जा चुका है. चूंकि यह वर्ष मोहन राकेश का जन्म शताब्दी वर्ष भी है, ऐसे में इस नाटक का मंचन दर्शकों के लिए विशिष्ट होगा. इसके अलावा महाकवि भवभूति का ‘उत्तर रामचरित’, चंद्रशेखर कंबार का ‘शिवरात्रि’, सादत हसन मंटो का ‘तमाशा’, हबीब तनवीर का ‘आगरा बाजार’, नादिरा बब्बर का ‘फरीदा’ और सुष्मिता मुखर्जी का ‘नारीबाई’ जैसे कई नाटक भी दर्शकों को सम्मोहित करेंगे.

इतना ही नहीं, कालजयी लेखकों में शामिल शेक्सपियर और चेखव के ‘मैकबेथ’ और ‘अंकल वान्या’ जैसे नाटकों की गूंज भी उत्सव में रहेगी. रांची की यदि बात करें, तो यहां झारखंड सरकार के सहयोग से कुल सात नाटकों का मंचन होगा. इसकी शुरुआत दो फरवरी को रांची के शौर्य सभागार में, जीत राय हंसदा निर्देशित नाटक ‘बीर बिरसा’ से होगी, जबकि समापन सात फरवरी को आसिफ अली के नाटक ‘राग विराग’ से होगा. यह दिलचस्प है कि भारंगम में नाटकों के साथ-साथ निर्देशक-दर्शक संवाद, सेमिनार, व्याख्यान, मास्टर क्लास, पुस्तक विमोचन और ‘रंग हाट’ तथा ‘फूड बाजार’ का आयोजन भी होगा.


विदित हो कि ‘रानावि के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी भारंगम’ को नया शिखर देने के लिए अपने सहयोगियों के साथ चार महीने से जुटे हैं. त्रिपाठी के अनुसार, ‘भारंगम विश्व मंच पर अग्रणी होकर उभरा है. इस कारण अब ‘भारंगम’ का नाम विश्व के सबसे बड़े नाट्य उत्सव के रूप में ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में दर्ज होगा. साथ ही, अगले वर्ष से इस उत्सव को विश्व के और अधिक देशों में ले जाया जायेगा, ताकि भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की विचारधारा रंगमंच के माध्यम से भी विश्वभर में पहुंच सके.’ रंगमंच विश्व में मनोरंजन और संवाद का सबसे प्राचीन माध्यम रहा है और इसका उल्लेख वेदों में भी है. भरत मुनि लिखित ‘नाट्य शास्त्र’ को तो पंचम वेद भी कहा जाता है. ऐसे में यह बात चिंतित करने वाली है कि आधुनिक युग में नाटकों के प्रति दर्शकों की उदासीनता बढ़ रही है. इसे देखते हुए भारंगम यदि कुछ प्रतिशत लोगों में भी नाट्य प्रेम जगा सके, तो यह इस महोत्सव की बड़ी सफलता होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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