महाराष्ट्र में शरद पवार की आखिरी लड़ाई, पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला का खास आलेख
Maharashtra Elections : महाराष्ट्र चुनाव शरद पवार और नरेंद्र मोदी के बीच सीधी लड़ाई है. पूरी संभावना है कि पवार की यह आखिरी लड़ाई होगी. मोदी के करिश्मे की पूर्ण वैधता के लिए भी यह महत्वपूर्ण परीक्षा होगी. पवार को यह साबित करना कि वे सर्वश्रेष्ठ और ताकतवर मराठा हैं.
Maharashtra Elections : महाविकास अगाड़ी और महायुति के बीच महाराष्ट्र का अनोखा महाभारत तीन प्रमुख दलों के बीच अवसरवाद, विश्वासघात, और राजनीतिक भ्रातृहत्या के युद्ध के मैदान पर लड़ा जा रहा है. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले अगाड़ी में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कमान वाली महायुति है, जिसमें भाजपा और अजीत पवार की अलग हुई एनसीपी शामिल है. जो भी जीते, फैसला उन दो दिग्गजों के लिए बेहद अहम होगा, जिनकी राजनीति पर अमिट छाप है. वे परिस्थितियों के चलते दुश्मन हैं और आपसी सम्मान के कारण दोस्त हैं.
महाराष्ट्र चुनाव शरद पवार और नरेंद्र मोदी के बीच सीधी लड़ाई है. पूरी संभावना है कि पवार की यह आखिरी लड़ाई होगी. मोदी के करिश्मे की पूर्ण वैधता के लिए भी यह महत्वपूर्ण परीक्षा होगी. पवार को यह साबित करना कि वे सर्वश्रेष्ठ और ताकतवर मराठा हैं. अपने रिश्तेदारों और भरोसेमंद चाटुकारों द्वारा धोखा दिये जाने के बाद पवार का प्रतिशोध 26 साल पहले उनके द्वारा स्थापित एनसीपी के प्रभाव को बहाल करने के लिए है. वे एक घायल बाघ हैं, जो नियति पर गुर्रा रहा है और अपनी गुफा से बाहर आने के लिए तैयार है. शिकारी बताते हैं कि घायल शेर से ज्यादा खतरनाक कुछ नहीं होता. पवार अपने घावों को चाट नहीं रहे हैं, बल्कि अपने दुश्मनों को धूल चटाने की रणनीति बना रहे हैं. मूलत: कांग्रेसी और पसंद से वंशवादी पवार इस उम्मीद में प्रभावी उत्तराधिकारी तैयार नहीं कर पाये कि बेटी सुप्रिया सुले इस काम के लिए सक्षम होंगी. सुप्रिया के भविष्य को बचाये रखने के लिए उन्हें एमवीए को फिर से सत्ता में लाना होगा. उन्होंने कुछ समय पहले 30 सांसदों को जीताकर अपना जनाधार साबित किया है. वे लगातार सभाएं और बैठकें कर रहे हैं. उन्होंने गठबंधन को एकजुट रखा है और अपने खेमे में दलबदल को रोका है.
आज सबसे साधन-संपन्न नेता माने जाने वाले पवार के सामने 288 सदस्यों की विधानसभा में 150 से ज्यादा सीटें जीतने की बड़ी चुनौती है. उन्होंने एमवीए सहयोगियों के लिए लगभग बराबर सीटें हासिल कर पहला दौर जीत लिया है. चुनाव में किंग-मेकर की उनकी हैसियत दांव पर है. पवार एक दुर्लभ राजनीतिक प्रजाति हैं. उनके छह दशक लंबे करियर के अंतिम चरण में भी उन्हें परिभाषित नहीं किया जा सकता. उम्र और तकलीफों ने उन्हें धीमा कर दिया है, पर उनका तेज दिमाग पहले की तरह ही है. वे भारत के सबसे समृद्ध राज्य में मोदी की बढ़त रोकने और भाजपा को विंध्य के उत्तर में वापस धकेलने के लिए पूरे विपक्ष का नेतृत्व कर रहे हैं. पवार जन्म से मराठा और आस्था से असली कांग्रेसी हैं. उन्होंने भले ही अपने राजनीतिक साथियों को आधा दर्जन से ज्यादा बार बदला हो, पर महाराष्ट्र के अति-विभाजनकारी और ध्रुवीकृत परिदृश्य में वे अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जो सबको एक सूत्र में पिरोते हैं. खराब स्वास्थ्य के कारण उनकी आवाज कमजोर हो गयी है, फिर भी उनकी फुसफुसाहट शेर की दहाड़ से ज्यादा तेज होती है.
लोकसभा में चंद सीटें होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें बहुत प्रभावशाली माना जाता है. वे एकमात्र क्षेत्रीय नेता हैं, जिनकी छवि राष्ट्रीय नेता की है. वे प्रभावी प्रशासक हैं. उनका कोई विरोधी किसी भी प्रतिकूल स्थिति को अवसर में बदलने की उनकी क्षमता और समझ पर सवाल नहीं उठा सकता. साल 2019 में पवार ने एक असंभव गठबंधन बनाकर भगवा जबड़े से जीत छीन ली थी. भाजपा और शिवसेना ने साथ चुनाव लड़ कर पूर्ण बहुमत हासिल किया था. पर पवार ने उनके बीच दरार का फायदा उठा कर ऐसी सरकार बनायी, जिसमें एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस शामिल थे.
पवार की खासियत यह है कि वे कट्टर दुश्मनों को भी गले लगाने की क्षमता रखते हैं क्योंकि उनके सौम्य राजनीतिक आचरण और गरिमापूर्ण विनम्रता से विश्वसनीयता और प्रशंसा पैदा होती है. वे अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते, न ही सार्वजनिक रूप से गुस्सा करते हैं. पवार के फॉर्मूले को न तो दोस्त समझ पाये हैं और न विरोधी. साल 2015 में नयी दिल्ली में उनके 75वें जन्मदिन समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, मोदी और सोनिया गांधी मुंबई के बेताज बादशाह की अगवानी करने के लिए मौजूद थे. मोदी ने पवार की पार्टी को कभी ‘नेचुरली करप्ट पार्टी’ कहा था. उस दिन उन्होंने कहा, ‘शरद पवार एक ऐसे राजनेता हैं, जिनका जन्म रचनात्मक राजनीति के युग में हुआ.
वे अपना अधिकांश समय रचनात्मक कार्यों में बिताते हैं… उन्होंने सहकारी आंदोलन और अपने राजनीतिक जीवन के बीच संतुलन बनाया… एक दशक ऐसा था, जब मुंबई अंडरवर्ल्ड ने महाराष्ट्र में निराशावाद ला दिया था, पर शरद पवार ने मुंबई को बचा लिया… उनमें एक किसान के गुण हैं, जो मौसम के बदलने पर उसे पहचान लेता है. वे राजनीति में इस गुण का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं.’ मोदी सरकार ने पवार को पद्म विभूषण से सम्मानित किया. सोनिया गांधी, जिन्हें 1998 में पवार ने प्रधानमंत्री बनने से रोका था, ने भी उनकी तारीफ की, ‘अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ उनकी दोस्ती लाजवाब है. आइटी की आधुनिक भाषा में कहें, तो उनके नेटवर्किंग कौशल कमाल के हैं और जब राजनीति में कटु पक्षपातपूर्ण माहौल बनता है, जो अक्सर होता है, तो उन कौशलों की बहुत जरूरत होती है. वे इस शब्द के सर्वश्रेष्ठ अर्थ में एक राजनेता हैं.’
राजनीति के इस प्रमुख चेहरे ने 1978 में महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार को गिराने और 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनने के बाद से एक लंबा सफर तय किया है. साल 1996 में उन्होंने शीर्ष पद के लिए नरसिम्हा राव को चुनौती दी. जब सीताराम केसरी को हटाने के बाद उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनाया गया, तो उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल पर सवाल उठाते हुए पार्टी छोड़ दी. फिर भी वे 2004 में केंद्रीय मंत्री बने और उन्हें यूपीए अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया. कांग्रेस ने भी उन्हें महाराष्ट्र में गठबंधन के निर्विवाद नेता के रूप में स्वीकार किया है. एमवीए पूरी तरह से उनके संगठनात्मक कौशल और लोगों से जुड़ाव पर निर्भर है. एकमात्र विडंबना यह है कि पवार, जो हाल में प्रधानमंत्री पद को दौड़ में आगे चल रहे थे, अपनी छोटी सी जागीर को बचाने में जुटे हैं. यह उनकी विरासत और वंशवाद की रक्षा के लिए उनकी आखिरी लड़ाई भी है. क्या मोदी की दिल्ली का रास्ता पवार की मुंबई से होकर जाता है, यह एक बड़ा सवाल है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)