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महात्मा गांधी : शांतिपूर्ण संघर्ष के शक्तिशाली प्रतीक

गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों, जैसे कि सत्याग्रह (सत्य बल) ने दिखाया कि रक्तपात का सहारा लिये बिना भी सबसे शक्तिशाली उत्पीड़कों का सामना करना संभव था. गांधी के जीवन के सबसे प्रतिष्ठित क्षणों में से एक 1930 का नमक मार्च (अवज्ञा का प्रतीक) था.

बिशन नेहवाल, आर्थिक चिंतक

विश्व के इतिहास में ऐसी गिनी-चुनी शख्सियतें हैं, जिनकी विरासत समय के साथ और उज्ज्वल हुई है. ऐसी ही एक शख्सियत हैं अहिंसा के दूत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी. दशकों से दुनिया ने गांधी को शांति के प्रतीक, उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक और नैतिक गुणों के प्रतिमान के रूप में रखा है. उनका जीवन और सिद्धांत दुनियाभर के अनगिनत व्यक्तियों और आंदोलनों के लिए आशा की किरण और प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करते हैं. पिछले कुछ वर्षों में आलोचनाएं होती रही हैं, परंतु तमाम आलोचनाओं से परे हमें शांति, स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा के सच्चे नायक के रूप में महात्मा गांधी का उत्साहपूर्वक जश्न मनाने की आवश्यकता है. गांधी के दर्शन का हृदय है- अहिंसा यानी अहिंसा का सिद्धांत. उनके इस दर्शन ने दुनियाभर में अनगिनत व्यक्तियों और आंदोलनों को प्रेरित किया. गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि हिंसा से और अधिक हिंसा पैदा होती है और सच्चा परिवर्तन केवल शांतिपूर्ण तरीकों से ही प्राप्त किया जा सकता है.

गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों, जैसे कि सत्याग्रह (सत्य बल) ने दिखाया कि रक्तपात का सहारा लिये बिना भी सबसे शक्तिशाली उत्पीड़कों का सामना करना संभव था. गांधी के जीवन के सबसे प्रतिष्ठित क्षणों में से एक 1930 का नमक मार्च (अवज्ञा का प्रतीक) था. यह केवल समुद्र तट पर एक इत्मीनान से की गयी सैर नहीं थी, बल्कि ब्रिटिश नमक एकाधिकार और दमनकारी नमक कर के खिलाफ अवज्ञा का एक सोचा-समझा कार्य था. गांधी और उनके अनुयायियों का एक समूह ब्रिटिश कानून की अवहेलना करते हुए 240 मील से अधिक पैदल चल कर अरब सागर तक गया और रास्ते में नमक इकट्ठा किया. नमक मार्च सविनय अवज्ञा का एक कार्य था, जिसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी. यह प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक था, जिसने दुनिया का ध्यान खींचा. गांधीजी का प्रभाव भारत की सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ था. अहिंसा और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता दुनियाभर के नेताओं और आंदोलनों में गूंजती रही.

अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर और दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला जैसी हस्तियों ने नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए अपने स्वयं के संघर्षों में गांधी के अहिंसा के दर्शन से प्रेरणा ली. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने प्रसिद्ध घोषणा की- ‘मसीह ने हमें लक्ष्य दिये और महात्मा गांधी ने रणनीतियां.’ अहिंसक प्रतिरोध पर गांधी की शिक्षाओं ने अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए एक खाके का काम किया, जिससे अंततः नस्लीय अलगाव और भेदभाव समाप्त हो गया. ऐसे ही दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के दौरान 27 साल जेल में बितानेवाले नेल्सन मंडेला ने भी गांधी के अहिंसा और सुलह के सिद्धांतों से प्रेरणा ली.

न्याय के प्रति गांधी की प्रतिबद्धता राजनीतिक स्वतंत्रता से भी आगे तक फैली हुई थी. इसमें सामाजिक और आर्थिक न्याय भी शामिल था. उनका मानना था कि भारत की आजादी से न केवल देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति मिलनी चाहिए, बल्कि हाशिये पर पड़े और उत्पीड़ित लोगों का उत्थान भी होना चाहिए. उन्होंने अछूतों या दलितों के हितों की वकालत की और गहरे स्तरीकृत समाज में उनके अधिकारों और सम्मान की वकालत की. उनकी स्वराज की परिकल्पना, कुटीर उद्योगों और चरखे के प्रति उनका समर्थन केवल प्रतीकात्मक नहीं था, यह आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण था, जिससे सबसे कमजोर लोगों को लाभ होगा. गांधीजी का व्यक्तिगत जीवन सादगी और मितव्ययिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. वह साधारण कपड़े पहनते थे और संयमित जीवन जीते थे. यह दिखावा नहीं था, बल्कि जनता से जुड़ने और सत्ता और विशेषाधिकार के प्रलोभन को अस्वीकार करने का एक जानबूझकर किया गया विकल्प था.

यह स्वीकार करना आवश्यक है कि गांधीजी अपूर्णताओं से रहित नहीं थे. नस्ल पर उनके विचार, विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका में अपने शुरुआती वर्षों के दौरान, नस्लीय पूर्वाग्रह और रूढ़ियां निहित थीं. हालांकि, गांधी अपने अनुभवों से सीखते रहे और अपने सिद्धांतों को लगातार परिष्कृत करते रहे. अपनी गलतियों को स्वीकार करने और व्यक्तिगत विकास के लिए प्रयास करने की गांधी की इच्छा उनकी मानवता का प्रमाण है. बदलने और अनुकूलन करने की उनकी क्षमता दर्शाती है कि वह एक कठोर विचारक नहीं, बल्कि एक गतिशील नेता थे, जिन्होंने निरंतर आत्म-सुधार की आवश्यकता को पहचाना. गांधीजी का जीवन और शिक्षाएं आशा और संभावना का एक कालातीत संदेश देते हैं. वे हमें दिखाते हैं कि दुर्गम बाधाओं के बावजूद, शांतिपूर्ण तरीकों से परिवर्तन संभव है. आज गोडसे बनने के लिए एक लम्हा काफी है, जबकि गांधी बनने में पूरी सदियां लग जाती हैं. इतिहास गवाह है कि आज तक कोई दूसरा गांधी नहीं हुआ. गोडसे की विचारधारा मानने वालों के लिए गांधी रोज परेशान करने वाला एक दुःस्वप्न है. यह तब तक पीछा नहीं छोड़ेगा, जब तक अन्याय, हिंसा, द्वेष रहेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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