मकर संक्रांति पर विशेष : तिल और उसके व्यंजनों की दुनिया, पढ़ें रविशंकर उपाध्याय का खास लेख

Makar Sankranti : यह पहला बीज है जिससे तेल निकाला गया, इससे ही इसका नाम तैल पड़ा. तैल यानी तिल से निकाला हुआ. हिंदी में यही तेल हो गया. तिल का इतना महत्व है कि पूरे तिलहन का नाम इस पर पड़ गया. अथर्ववेद में तिल के दैनिक के साथ आध्यात्मिक प्रयोग का वर्णन मिलता है. तिल हवन में प्रयोग में आता है, तो तर्पण में भी.

By रविशंकर उपाध्याय | January 14, 2025 7:42 AM

Makar Sankranti : सर्दियां अपने शबाब पर हैं, तो हमारे भोज्य पदार्थों में तिल से बने व्यंजनों की बहुलता हो गयी है. तिल प्रकृति से मधुर, भारी, स्वादिष्ट, स्निग्ध, गर्म तासीर वाला, कफ तथा पित्त को कम करने वाला और बलदायक माना जाता है. उपनिषदों में देश में उपजायी जाने वाली दस फसलों का जिक्र आता है- चावल, गेहूं, जौ, तिल, मसूर, कुल्थी आदि. उत्तर वैदिक काल में भी तिलहन में तिल, रेड़ी और सरसो का जिक्र है. अनाज में जौ, गेहूं, ज्वार, चना, मूंग, मटर, मसूर, कुल्थी का. तिल शब्द का संस्कृत में व्यापक प्रयोग है.

कहते हैं कि यह पहला बीज है जिससे तेल निकाला गया, इससे ही इसका नाम तैल पड़ा. तैल यानी तिल से निकाला हुआ. हिंदी में यही तेल हो गया. तिल का इतना महत्व है कि पूरे तिलहन का नाम इस पर पड़ गया. अथर्ववेद में तिल के दैनिक के साथ आध्यात्मिक प्रयोग का वर्णन मिलता है. तिल हवन में प्रयोग में आता है, तो तर्पण में भी.


भारतवर्ष में तिल की प्रचुर मात्रा में खेती होती है. बालों के लिए हितकारी, स्पर्श में शीतल, त्वचा के लिए लाभकारी, घाव भरने में लाभकारी, दांतों को उत्तम करने वाला, मूत्र का प्रवाह कम करने वाला होता है तिल. आयुर्वेद में तिल के जड़, पत्ते, बीज एवं तेल का औषधि के रूप में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. आधुनिक विज्ञान की मानें, तो तिल के बीज में उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, विटामिन ए, बी-1, बी-2, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, पोटैशियम पाया जाता है. तिल के दुष्प्रभाव भी हैं.

कुष्ठ, सूजन होने पर तथा प्रमेह, यानी डायबिटीज के रोगियों को भोजन आदि में तिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. तिल (बीज) एवं तिल का तेल भारतवर्ष के प्रसिद्ध व्यावसायिक द्रव्य हैं. भारत में तिल की कुल तेल में हिस्सेदारी 40 से 50 प्रतिशत है. गुजरात, राजस्थान, एमपी, यूपी और पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां इसकी सर्वाधिक खेती होती है. भारत जितना तेल निर्यात करता है उसमें सर्वाधिक हिस्सेदारी तिल की होती है. केंद्र सरकार का आंकड़ा कहता है कि 2020-2021 में गुजरात को इसके निर्यात से सर्वाधिक आय हुई.

भले ही गुजरात और राजस्थान में तिल की सर्वाधिक खेती होती है पर बिहार ने तिल पर सर्वाधिक प्रयोग किये हैं. धार्मिक नगरी गया यूं तो देश में हिंदू धर्म की सबसे बड़ी तीर्थस्थली में से एक है, जहां न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि भगवान विष्णु के पदचिह्न भी यहीं मिले हैं. कहते हैं विष्णु यहां गयासुर राक्षस का वध करने पहुंचे थे, उसी वक्त उनके पदचिह्न उत्कीर्ण हो गये थे. पर गया की पहचान तिल पर सर्वाधिक प्रयोग से जुड़ी हुई है. इसका कारण है कि तिल का प्रयोग यहां पितरों के तर्पण के लिए भी किया जाता है. इसी तिल से यहां बनने वाला तिलकुट सर्दियों में बिहार का खास व्यंजन हो जाता है. तिलकुट, तिलपापड़ी, तिलछड़ी, तिलौरी, तिलवा-मस्का और अनरसा, ये सब तिल के प्रयोग से जुड़े स्वाद हैं.


गया एक तरह से तिल से बने व्यंजनों का पर्याय है तो उसके ऐतिहासिक कारण भी हैं. महर्षि पाणिनी ने अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में पलल नामक सुस्वादु मिष्ठान्न का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि इसमें तिल का चूर्ण, शर्करा या गुड़ मिलाकर बनाया जाता है. प्राचीन मगध में इसका पर्याप्त प्रचार रहा होगा तभी तो आज भी गया के तिलकुट की शान न केवल देश, बल्कि विदेश तक है. तिलवा या मस्का के भी कई स्वाद गया में मौजूद हैं. दिसंबर, जनवरी व फरवरी महीने में गया या बोधगया आने वाला कोई भी पर्यटक गया का तिलकुट ले जाना नहीं भूलता.

तिलकुट बिहार-झारखंड के सभी शहरों में तो मिलता ही है, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भी तिल से बने व्यंजन बहुत ही आसानी से मिल जाते हैं. तिल के कारोबार ने रोजगार और समृद्धि का एक नया द्वार भी खोला है. गया के सबसे बड़े करदाता में एक तिलकुट व्यवसायी ही हैं. बिहार के गया शहर के प्रसिद्ध कारोबारी प्रमोद कुमार भदानी ने सिर्फ 2500 रुपये से शुरू किये गये ठेले पर लड्डू बेचने के कारोबार को 50 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर तक पहुंचा दिया है. उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें हल्दीराम और बिकानो जैसे बड़े ब्रांड का मुकाबला करने वाला कारोबारी बना दिया है. प्रमोद ने न सिर्फ बिहार और झारखंड, बल्कि आसपास के राज्यों में भी अपनी मिठाई के व्यवसाय का विस्तार किया है.

उनकी सफलता की कहानी युवाओं के लिए प्रेरणा है कि कैसे छोटे प्रयासों से बड़े सपने साकार किये जा सकते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, इस व्यवसाय से गया जिले में करीब 10 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हैं. बिहार और झारखंड के सभी शहरों को जोड़ लें, तो यह आंकड़ा जनवरी माह में 50 हजार से ज्यादा हो जाता है. स्थानीय व्यवसायियों के अनुसार, तिलकुट व्यवसाय के साथ तीन और व्यवसाय- जिसमें ताड़ के पत्ते का दोना, बांस की बनी डलिया व लकड़ी का बक्सा और कागज व गत्ते का बॉक्स शामिल हैं- को विस्तार मिला है. तिलकुट के साथ इन चीजों को इसलिए जोड़ा गया था, क्योंकि तिलकुट पर थोड़ा भी दबाव पड़ने पर वह चूर हो जाता था, इसलिए इसकी बेहतर पैकिंग बहुत ही आवश्यक होती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version