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ऐतिहासिक धरोहर सबके लिए सुलभ हों

यह हम सभी का अधिकार है कि हम स्मारक को देखें. केवल ऑनलाइन बुकिंग का विकल्प रखना या क्यूआर कोड के जरिये टिकट लेने की व्यवस्था करना मेरी राय में हमारे उस अधिकार का उल्लंघन है.

निश्चित रूप से यह समाचार निराशाजनक है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) दुनियाभर में प्रसिद्ध ताजमहल में टिकट खिड़कियों को बंद करने जा रहा है. अगर यह लागू हो जाता है, तो इस स्मारक को देखने के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया से टिकट लेने का ही विकल्प रह जायेगा. सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि कोई ऐतिहासिक इमारत या स्मारक कारोबार भर नहीं है, यह एक सार्वजनिक स्मारक है.

यह हम सभी की धरोहर है. यह हम सभी का अधिकार है कि हम स्मारक को देखें. केवल ऑनलाइन बुकिंग का विकल्प रखना या क्यूआर कोड के जरिये टिकट लेने की व्यवस्था करना मेरी राय में हमारे उस अधिकार का उल्लंघन है. ताजमहल हो या कोई और विख्यात इमारत हो, उसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उनमें से ऐसे बहुत से लोग हो सकते हैं, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं हो, जिन्हें डिजिटल भुगतान के बारे में जानकारी नहीं हो, जिन्हें मोबाइल चलाना नहीं आता हो, वैसे लोगों के लिए यह भेदभाव है.

ताजमहल को देखने के लिए हर साल लाखों लोग आते हैं, जिनमें बहुत बड़ी संख्या देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले घरेलू पर्यटकों की होती है. एएसआइ ऑनलाइन बुकिंग या क्यूआर कोड स्कैनिंग की व्यवस्था रखे, पर स्मारक के दरवाजे पर टिकट खिड़की भी रखे. कुछ इमारतों पर ये दोनों व्यवस्थाएं हैं, लेकिन एक विसंगति यह भी है कि नगद टिकट का शुल्क डिजिटल शुल्क से अधिक है. इस तरह का अंतर भी नहीं रखा जाना चाहिए.

कुछ दिन पहले दिल्ली के हौज खास में स्थित इमारतों में मेरा जाना हुआ. वहां पर तैनात सुरक्षाकर्मी ने मुझे बताया कि क्यूआर कोड स्कैन कर टिकट लेना होगा, क्योंकि नगद देकर टिकट लेने की व्यवस्था नहीं है, जबकि वहां पहले चलती रही टिकट खिड़की थी. यहां भी टिकट खिड़की पर अधिक राशि लिखी हुई थी, पर डिजिटल में टिकट सस्ता था.

इसका सीधा मतलब है कि जिनके पास डिजिटल भुगतान के माध्यम नहीं हैं, उन्हीं से अधिक पैसे लिये जा रहे हैं. देश में कितने लोग ऐसे माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं, इसका आंकड़ा और आकलन देखा जाना चाहिए. हम किसी को भी राष्ट्रीय धरोहर देखने से न तो रोक सकते हैं और न ही हमें ऐसी कोई पहल करनी चाहिए, जिससे लोगों को असुविधा हो.

ऐसे उपायों से घरेलू पर्यटन पर असर पड़ सकता है, पर इस मामले में पर्यटन का सवाल प्राथमिक नहीं है. मुख्य बात यह है कि किसी को परेशानी या बाधा नहीं होनी चाहिए. घरेलू पर्यटक ही नहीं, कई विदेशी पर्यटकों को भी ऑनलाइन प्रक्रिया से मुश्किल आ सकती है. जब आप किसी दूसरे देश में जाते हैं, तो कई बार आपके डिजिटल भुगतान के तरीके ठीक से काम नहीं करते.

मोबाइल कनेक्शन को लेकर भी समस्याएं आती हैं. कई विदेशी पर्यटक बहुत मामूली सुविधाओं व संसाधनों के साथ यात्रा करते हैं. ऐसे में यह कहना ठीक नहीं है कि ऑनलाइन प्रक्रिया से उनके लिए आसानी हो जायेगी. अगर पर्यटन पर ऐसे उपायों से प्रभाव न भी पड़ रहा हो, तो भी मेरे हिसाब से यह करना गलत है. वैसे भी कोविड महामारी के दौर में पर्यटन को बहुत नुकसान हो चुका है, तो अब ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे और हानि हो.

अब जो ताजमहल में करने की कोशिश हो रही है, वह कई स्मारकों के साथ पहले ही किया जा चुका है. मेरा सुझाव यही है कि पुरानी व्यवस्था को बहाल किया जाए और ऑनलाइन व डिजिटल के साथ टिकट खिड़कियां भी रखी जानी चाहिए. लोगों जितना अधिक विकल्प मिले, वही बेहतर है. साथ ही, डिजिटल और नगदी टिकट के शुल्क में अंतर को खत्म किया जाना चाहिए.

ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों को देखना पैसा बनाने का जरिया नहीं है. अगर पैसा आता है, तो ठीक है, पर ये हमारी धरोहर हैं तथा उन तक पहुंच सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए. जहां तक ताजमहल में कभी-कभी बहुत भीड़ हो जाने का मामला है, तो उसे नियंत्रित करने के अन्य उपायों पर विचार होना चाहिए. हमारी एक बड़ी समस्या यह है कि हम कुछ चुनींदा स्मारकों के सहारे अपना कारोबार चलाना चाहते हैं.

आगरा में ही ताजमहल के अलावा अन्य इमारतों को देखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है. उन्हें लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयास किये जा सकते हैं. ऐसा हो कि लोग शहर में दो-तीन दिन रुकें और विभिन्न जगहों को देखें. अभी क्या होता है कि लोग दिनभर में ताजमहल और कुछ अन्य इमारतों को देख कर लौट जाना चाहते हैं. इससे भीड़ होना स्वाभाविक है.

अगर लोग रुकेंगे और अन्य चीजों को भी देखेंगे, तो स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी इसका लाभ मिलेगा. इसके लिए सुविधाओं को बेहतर किया जाना चाहिए. तकनीक का इस्तेमाल बढ़े, पर इसके चलते बहुत से लोगों को परेशानी न उठानी पड़े, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए. डिजिटल व्यवस्था को जबरदस्ती थोपना सही नहीं है और संबद्ध संस्थाओं को अपनी पहलों पर पुनर्विचार करना चाहिए. (बातचीत पर आधारित)

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