Loading election data...

धरती को सुंदर बनाना ही है निवेश

दोहन मानवाधिकारों और सभी प्रकार के जीवों के अधिकारों का उल्लंघन है. दाेहन कर मानव प्रकृति को नगदी में बदल सकता है, लेकिन हम नगदी को प्रकृति में नहीं बदल सकते.

By वंदना शिवा | April 22, 2022 7:10 AM

डॉ वंदना शिवा, पर्यावरणविद

editor@thebillionpress.org

वर्ष 2022 के विश्व पृथ्वी दिवस (मदर अर्थ डे) के लिए थीम रखा गया है- ‘अपने ग्रह में निवेश (इन्वेस्ट) करें.’ ‘इन्वेस्ट’ शब्द का मूल ‘वेस्ट’ है और लैटिन शब्द ‘वेस्टिस’ (वस्त्र) का अर्थ ‘सुंदर बनाना’ और पोशाक पहनना था. खेतों में जाते हुए आदिवासी किसानों को मैंने यह कहते हुए अक्सर सुना है कि ‘मैं धरती को सुंदर बनाने जा रहा हूं,’ लेकिन आज दुनियाभर में निवेश का अलग ही मतलब है. इस बदलाव का एक बदसूरत औपनिवेशिक इतिहास है. वर्ष 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के केवल दस साल बाद विविधतापूर्ण पोशाकों से जुड़े निवेश के अर्थ को बदलकर इसे कॉरपोरेट औपनिवेशिक व्यापार में ‘पैसा लगा कर मुनाफा कमाना’ कर दिया गया.

जॉन लॉक ने इसे निजी संपत्ति और पैसा केंद्रित संरचनाओं, जिनका निर्माण औपनिवेशिक वाणिज्य द्वारा हो रहा था, के अनुकूल बनाते हुए अर्थ को बढ़ा कर ‘पैसे का प्रवाह’ कर दिया. जीवन की मुद्रा जीवन है, पैसा नहीं. ऊर्जा एवं सांस, पानी व पोषण की जीवंत मुद्राओं के प्रवाह से हमारी धरती हमें अपने और पृथ्वी परिवार से जोड़ती है. मुद्रा का मतलब प्रवाह होता है. यह प्रकृति एवं समाज के परस्पर गूंथे हुए जीवन के जाल में जीवन एवं प्रेम का प्रवाह है. इसलिए यह साफ है कि खाना, पानी, सांस, देखभाल जीवन की मुद्राएं हैं. ये मुद्राएं जीवन का एक इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाती हैं, ताकि सभी जीवन पनप सकें. पैसा तो बस धरती व लोगों के असली मेहनत से पैदा की गयीं असली चीजों और सेवाओं के विनिमय का जरिया है.

सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की ‘वृद्धि’, जिसे आज खूब महत्व दिया जाता है, एक यात्रा रही है, जिसमें पैसा ‘पूंजी’ नामक एक रहस्यमयी संरचना में बदल गया, जो प्रकृति, स्त्री, किसान व कामगार की रचनात्मकता के इस्तेमाल या उससे इनकार कर संपत्ति सृजित कर सकती है. यह सबके लिए मिलीं चीजों को घेर सकती है और उन पर निजी संपत्ति की तरह मालिकाना जता सकती है. यह ‘पूंजी’ फिर ‘निवेश’ में और उसके बाद उस ‘निवेश से कमाई’ में बदलती जाती है. इसके तहत जो कोई असली काम नहीं करते, प्रकृति के दोहन से अर्जित संपत्ति पर उनका नियंत्रण होता है.

संपत्ति बढ़ने के साथ पारिस्थितिक संकट, गरीबी, दुख, बहिष्करण आदि भी बढ़ते जाते हैं. पैसे को जीवन की मुद्रा होने के भ्रम ने पैसा बनाने को बढ़ावा दिया है और पैसे बनानेवाले पूजे तक जाते हैं. परस्पर जुड़ाव की हमारी समझ खत्म होती जाती है और करुणा की क्षमता खो जाती है. इसलिए हम सभी को पृथ्वी दिवस के थीम को समझना चाहिए, जिसमें ‘इन्वेस्ट’ को बड़े अक्षरों में लिखा गया है. पोशाक और सुंदर बनाने के इसके मूल अर्थ की ओर हमें लौटने की जरूरत है. हमें इस धरती को पेड़-पौधों की विविधता से पाट देना है.

हमें जैव-विविधता को सघन कर फोटोसिंथेसिस को सघन करना है, ताकि प्रकृति की जीवन की धारा सघन हो सके. हमें बीज रोपने हैं और जीवंत मिट्टी की देखभाल करनी है, ताकि बीज, मिट्टी और सूरज ऊर्जाओं के प्रवाह को बढ़ा सकें और टूटे हुए चक्र स्वस्थ हो सकें. यह तभी हो सकता है, जब हम धरती को पुनर्जीवन देने के लिए प्रेम, सेवा और करुणा में आगे निवेश करें तथा धरती और उसके लोगों के विरुद्ध युद्धों को रोकें.

जिन धनकुबेर लुटेरों ने हमें तेल और जलवायु परिवर्तन दिया, वे अब कार्बन का नया बाजार और प्रकृति की पारिस्थितिक सेवाओं की नयी संपत्ति बनाना चाहते हैं, ताकि जैव-विविधता और प्रकृति को वित्तीय परिसंपत्तियों में बदल कर उनका कारोबार कर सकें तथा उन पर मालिकाना कायम कर सकें. ये शोषक पूंजीपति, नव-पूंजीपति और दानी पूंजीपति प्रकृति एवं हमारे जीवन का निजीकरण करना और उनका स्वामित्व चाहते हैं. ये ‘जीवन स्वामी’ बनाते जा रहे हैं, जिन्हें हमें सांस लेने, पीने, खाने के लिए किराया देना होगा.

जो हमें प्रकृति ने उपहार के तौर पर मुफ्त दिया है, उसे ये वस्तु बना कर हमें बड़ी कीमत पर तथा नयी आर्थिकी के ‘डिजिटल सोशल क्रेडिट’ के जरिये बेचना चाहते हैं, जिसकी नींव पुरानी औपनिवेशिकता है. हमने 2021 में एक इंटरिंसिक एक्सचेंज ग्रुप की शुरुआत देखी, जो कहता है कि यह ‘प्रकृति और उसके लाभों पर आधारित एक नये संपत्ति वर्ग का विस्तार’ कर रहा है. इसकी सेवाओं में कार्बन कैप्चर, मिट्टी की उर्वरता, जल शुद्धीकरण आदि शामिल हैं. इसे ‘नये तरह के कॉरपोरेशन की स्थापना’ कहा जा रहा है, जिसे नेचुरल एसेट कंपनी कहा जाता है.

इसका मुख्य उद्देश्य ‘पारिस्थितिक उपादेयता, सेवाओं को अधिकाधिक बढ़ाना है, जिसके प्रबंधन पर उनका अधिकार व नियंत्रण होगा.’ इस समूह की भागीदारी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के साथ है, जहां ये ऐसी कंपनियों को ‘प्राकृतिक परिसंपत्तियों के कारोबार’ के लिए मंच देंगे. हम सोच सकते हैं कि कैसे धरती की व्यवस्थाओं को पूंजी निर्माण के लिए आगे भी दोहन हो रहा है. इसके निवेशकों में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, रॉकफेलर फाउंडेशन, इंटर-अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक और एबरडेयर वेंचर्स शामिल हैं. यह एक नये तरह का उपनिवेशवाद है. यह पारिस्थितिक सेवाओं पर काबिज होना चाहता है.

इंटरिंसिक एक्सचेंज ग्रुप उस व्यापक सोच का एक उदाहरण है, जो हमारे संकट की जड़ है. यह बीज, पानी, वन और खेत जैसे प्रकृति के जीवनदायी उपहारों पर कब्जे का संकट है. वास्तविक विश्व को जितना वित्तीय परिसंपत्ति में बदला जायेगा, बेघर होने और भूख की समस्याओं का जोर बढ़ता ही जायेगा. पृथ्वी दिवस के अवसर पर हमें समझना होगा कि यह सब प्रकृति की अर्थव्यवस्था, धरती माता के अधिकारों, सभी जीवों के अधिकारों तथा मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

दोहन कर मानव जाति प्रकृति को नगदी में बदल सकती है, लेकिन हम नगदी को प्रकृति में नहीं बदल सकते. एक अफ्रीकी किसान ने पैसे और जीवन के भेद को एक साधारण बयान में इस प्रकार अभिव्यक्त किया था- ‘आप एक बछड़े को मिट्टी में लपेट कर गाय नहीं बना सकते हैं.’ लॉयड टिंबरलेक ने अपनी किताब ‘अफ्रीका इन क्राइसिस’ में लिखा है- ‘रूपक गहन है, पर अर्थ स्पष्ट है परिवर्तन जैविक होना चाहिए और भीतर से आना चाहिए, बाहर से थोपे गये समाधान कारगर नहीं होते.

(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version