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‘मन की बात’ रेडियो प्रसारण का अनूठा प्रयोग

डॉ कृष्ण कुमार रत्तू बता रहे हैं मन की बात का महत्व

‘मन की बात’ रेडियो की दुनिया का एक ऐसा कार्यक्रम है, जिसके हर एपिसोड को 25 करोड़ से ज्यादा लोग सीधे तौर पर सुनते हैं तथा 10 करोड़ से ज्यादा लोग टेलीविजन तथा अन्य माध्यमों से इसके साथ जुड़े होते हैं. जनता तक मन की बात पहुंचाने का ऐसा प्रयोग भारत में पहले कभी नहीं हुआ था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रसारित लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ का एक दशक पूरा हो गया है. यह आकाशवाणी का एक अनूठा प्रयोग है, जिसमें देश के प्रधानमंत्री देश की 140 करोड़ जनता से हर महीने सीधे मुखातिब होते हैं. तीन अक्तूबर, 2014 को शुरू हुए ‘मन की बात’ कार्यक्रम का अब एक दशक पूरा हो गया है और इसका 104वां एपिसोड, जो 19 सितंबर, 2024 को प्रसारित हुआ, ने एक इतिहास रच दिया है. यह रेडियो की दुनिया का एक ऐसा कार्यक्रम है, जिसके हर एपिसोड को 25 करोड़ से ज्यादा लोग सीधे तौर पर सुनते हैं तथा 10 करोड़ से ज्यादा लोग टेलीविजन तथा अन्य माध्यमों से इसके साथ जुड़े होते हैं. जनता तक मन की बात पहुंचाने का ऐसा प्रयोग भारत में पहले कभी नहीं हुआ था.
इस रेडियो कार्यक्रम की मकबूलियत दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य सरकार के दिन-प्रतिदिन के शासन के मुद्दों के साथ नागरिकों के साथ संवाद स्थापित करना है. सच तो यह है कि यह आकाशवाणी प्रसारण का पहला दृश्य समृद्धि रेडियो कार्यक्रम है. इस कार्यक्रम की यह भी विशेषता रही है कि इसमें उन लोगों की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है, जिन्होंने भारतीय समाज को अपनी हिम्मत, लगन व सेवाओं के जरिये बदलने की चेष्टा की है. भारतीय प्रबंधन संस्थान रोहतक द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इस कार्यक्रम की मकबूलियत आने वाले दिनों में 23 करोड़ से बढ़ कर 35 करोड़ हो जायेगी. यह एक ऐसा रेडियो प्रोग्राम है, जो नियमित रूप से अपने निर्धारित दिन पर प्रसारित होता है. इसकी एक विशिष्टता यह भी है कि इसके जरिये आकाशवाणी की गिरती साख तथा वैभव को प्रधानमंत्री ने एक एंबेसडर के रूप में संभाला है. दुनिया के प्रसारण के इतिहास में एक दशक तक किसी भी प्रोग्राम का और वह भी प्रधानमंत्री जब इससे जुड़े हुए हों, उसका पूरा होना अपने आप में बड़ी बात है. इसे आकाशवाणी के सबसे ज्यादा सुनने वाले कार्यक्रमों में शुमार किया जाता है. यह प्रस्तुति आने वाले दिनों में 90 प्रतिशत जनसंख्या से अधिक को अपने साथ जोड़ सकती है.
तीन अक्तूबर, 2014 को, विजयादशमी के दिन इसका पहला एपिसोड प्रसारित हुआ था. उसके बाद जिस तरह से इससे संबंधित रिकॉर्ड बनते गये, वह रेडियो की ऐतिहासिक शृंखला का एक शोधपरक हिस्सा है. यह भी सच है कि 2017 के बाद इसको क्षेत्रीय बोलियों में भी उपलब्ध कराया गया है, ताकि भारत के जन-जन तक इसे पहुंचाया जा सके. हालांकि सीएसडीएस इसकी प्रसारण संख्या अर्थात श्रोताओं की संख्या को 40 प्रतिशत तक मानती है. परंतु मध्यवर्ती तथा टीयर टू शहरों में किये गये सर्वेक्षणों से पता चलता है कि भारत की लगभग 66.7 प्रतिशत जनसंख्या इसे लगातार सुन रही है. इस कार्यक्रम से आकाशवाणी का राजस्व भी बढ़ गया है. यह आकाशवाणी के प्रसारण इतिहास में सबसे लंबा चलने वाला ऐसा कार्यक्रम है, जिसमें विदेशी भी शामिल हुए हैं. सत्ताइस जनवरी, 2015 को विशेष तौर पर प्रसारित ‘मन की बात’ के एपिसोड की रिकॉर्डिंग में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी शामिल हुए थे. उनत्तीस सितंबर, 2019 को लता मंगेशकर इसकी विशेष अतिथि थीं. सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि इस कार्यक्रम द्वारा प्रसारित जिस विषय को सबसे ज्यादा पसंद किया गया है उनमें ‘सेल्फी विद डॉटर’, ‘इंक्रेडिबल इंडिया’, ‘फिट इंडिया’ तथा ‘संदेश टू सोल्जर’ शामिल हैं. इस कार्यक्रम की सफलता में उन लोगों का भी हाथ है, जिनके कार्यों के बारे में प्रधानमंत्री ने इस कार्यक्रम में जिक्र किया है. स्वच्छता अभियान से लेकर मंगल मिशन की सफलता तक, कौशल विकास से लेकर दिव्यांग बच्चों की चर्चा तक प्रधानमंत्री ने इन प्रोग्रामों में की है. इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ने छोटे बच्चों से लेकर विद्यार्थियों तक को परीक्षा की तैयारियों के टिप्स व शुभकामनाएं दी हैं.
‘मन की बात’ की विशेषता यह भी है कि दूरदर्शन के सभी चैनल और वेबसाइट तथा सरकारी माध्यम इसे अलग-अलग भाषाओं में प्रसारित करते रहते हैं. सुभाष चंद्र बोस, गांधी, आंबेडकर समेत तमाम महापुरुषों के संदेशों तथा दर्शनों को भी इसमें शामिल किया जाता रहा है. अब जब इस विशेष रेडियो प्रसारण के एक दशक पूरे होने का समय है, हम देख सकते हैं कि इस तरह के प्रोग्राम किस तरह से जनता को सीधे तौर पर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से जोड़ सकते हैं. दुनियाभर के रेडियो स्टेशनों में सबसे लंबे प्रसारित कार्यक्रमों में भी इसको शुमार किया जा सकता है. हालांकि लैरी किंग जैसे कार्यक्रमों के प्रसारक, जो वर्षों तक एक कार्यक्रम करते रहे, उसके बाद आकाशवाणी द्वारा बिना किसी रुकावट के एक दशक तक निरंतर किसी कार्यक्रम का प्रसारण होना, प्रसारण की दुनिया में एक इतिहास है. भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में उसे स्थानीय भाषाओं में अनुवाद कर आकाशवाणी तथा दूरदर्शन द्वारा प्रसारित करना भी अपने आप में मिसाल है. रेडियो के इतिहास में इस कार्यक्रम पर अभी कई तरह के शोध हो रहे हैं. इसके सामाजिक प्रसार तथा सामाजिक गुणवत्ता पर भी बात होती है. इससे रेडियो की पहुंच का भी पता चलता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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