मणिपुर में जातीय हिंसा की आग भड़कने के लगभग एक महीने बाद केंद्र सरकार ने इसकी तह तक पहुंचने के लिए एक समिति गठित की है. तीन मई से शुरू हुई हिंसा में अब तक 98 लोगों की जान जा चुकी है और 35,000 से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं. हिंसा का सिलसिला बंद नहीं होता देख केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले सप्ताह मणिपुर गये थे. चार दिनों के दौरे में हालात का जायजा लेने के बाद उन्होंने जिन कदमों का एलान किया था उनमें एक न्यायिक समिति का गठन भी शामिल था.
गुआहाटी हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अजय लांबा के नेतृत्व वाली इस समिति को जल्द-से-जल्द रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है. उसे अपनी पहली बैठक के छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपनी ही होगी. समिति हिंसा शुरू होने के कारणों और उसके फैलने की जांच करेगी. वह गवाहों और तथ्यों के आधार पर यह पड़ताल करेगी कि हिंसा को रोकने के काम में कोई कोताही तो नहीं बरती गयी. घाटी और पहाड़ी हिस्सों में बंटे मणिपुर में हिंसा सबसे पहले तीन मई को भड़की थी जब पहाड़ी जिलों में कुकी जनजाति के संगठनों ने जगह-जगह प्रदर्शन किये थे.
वे राज्य के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग का विरोध कर रहे थे. मैतेई समुदाय के लोग इससे नाराज हो गये और राजधानी इंफाल समेत घाटी में कई जगहों पर आदिवासियों पर हमले शुरू हो गये, घरों और संपत्तियों में आग लगा दी गयी जिससे लोग बेघर हो गये. हिंसा शुरू होने के बाद अगले एक महीने तक राज्य में छिटपुट हिंसा की खबरें आती रही हैं. हालांकि, प्रशासन का कहना है कि मोटे तौर पर हालात नियंत्रण में हैं और घाटी में 12 घंटे और पड़ोसी पहाड़ी जिलों में 10 और सात घंटे के लिए कर्फ्यू में छूट दी जा रही है.
लेकिन, रविवार को जिस दिन केंद्र ने समिति के गठन की घोषणा की, उस दिन भी मणिपुर में घाटी के काकचिंग जिले से झड़प की खबरें आयीं. इससे साफ पता चलता है कि अभी भी स्थिति पूरी तरह काबू में नहीं आ सकी है और मामला कितना संवेदनशील है. इस बीच खबर आ रही है कि गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद कुछ जनजातीय संगठनों ने इंफाल-दीमापुर राजमार्ग एनएच2 पर लगा अवरोध हटा लिया है और अगले सात दिनों तक ट्रकों से आवश्यक सामग्रियों और दवाओं को ले जाने की अनुमति दे दी है. मणिपुर अभी भी रेल से नहीं जुड़ा है और राज्य के घाटी के इलाकों के लिए यह राजमार्ग जीवनरेखा सरीखी है.