कोरोना के विरुद्ध जन आंदोलन
इस अभियान के जरिये प्रधानमंत्री ने याद दिलाया है कि बदलते मौसम में तमाम वायरस सक्रिय हो जाते हैं. ऐसे में हमें अधिक सतर्क रहने की जरूरत है.
श्री प्रकाश सिंह, प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय spsinghdu@gmail.com
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर ‘जन आंदोलन अभियान’ की शुरुआत की. यह एक सोचा-समझा और सकारात्मक कदम है. हमारा देश कोरोना संकट से लड़ने को प्रतिबद्ध रहे, उसे लेकर ढिलाई न बरते, इस बात के लिए एक बार फिर से उन्होंने लोगों को आगाह किया है. सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी प्रधानमंत्री मोदी को जितना ट्विटर, सोशल मीडिया पर फॉलो किया जाता है, उतना किसी दूसरे राष्ट्र के नेता को फॉलो नहीं किया जाता. यही कारण है कि प्रधानमंत्री द्वारा जो कुछ भी कहा जाता है, वह बहुत महत्व रखता है.
जहां तक कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या का प्रश्न है, तो बड़ी आबादी होने के बावजूद अब भी हमारी स्थिति तमाम राष्ट्रों से बेहतर है. हमारे यहां मृत्युदर बहुत कम है, संक्रमितों के ठीक होने की संख्या बढ़ी है, कंटेनमेंट जोन में कमी आने लगी है, लेकिन इन सब के बावजूद हम तब तक आश्वस्त नहीं हो सकते, जब तक हमारे पास इस बीमारी का कोई उपचार उपलब्ध नहीं हो जाता है. जब तक इसका कोई टीका हमारे पास नहीं आ जाता है.
इन बातों को सोचते-समझते हुए ही प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर ‘जन आंदोलन अभियान’ की शुरुआत की है. वे जानते हैं कि अभी हमें कोविड से लड़ने और इस लड़ाई में निरंतरता बनाये रखने की आवश्यकता है, क्योंकि जब लोग घरों से बाहर निकलना शुरू करते हैं, तो अपने व्यावहारिक जीवन में कहीं न कहीं कुछ मानकों की उपेक्षा करने लगते है. कोविड काल में जो लोग सड़कों पर, बाजारों में कम-से-कम दिख रहे थे, वह संख्या अब लगातार बढ़ रही है. ट्रैफिक भी सामान्य होता दिख रहा है.
अब पूरा देश सामान्यीकरण की प्रक्रिया में जा रहा है, ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये सुझाव, संदेश और उनका नेतृत्व प्रशंसनीय है. प्रधानमंत्री के इस अभियान का मकसद एक बार फिर से लोगों को रोकथाम व बचाव के उपायों की तरफ ले जाना हैं, ताकि वे आपदा से बचे रहें. हमारे पास अभी इस बीमारी के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है़
जहां तक इस अभियान के प्रभाव की बात है, तो प्रधानमंत्री ने जब-जब राष्ट्र को संबोधित किया है, भले ही उनका माध्यम कोई भी रहा हो, पूरे देश ने उनकी बात सुनी है और उसे माना है. यह एक तरह से जागरूकता अभियान ही है़. प्रधानमंत्री जैसे व्यक्तित्व द्वारा जब कोई बात कही जाती है, तो समाज के तमाम लोग उससे प्रभावित होते हैं और यदि उन्होंने थोड़ी ढिलाई बरतनी शुरू की थी, तो वे वापस संभल जायेंगे.
संक्रमण से बचाव को लेकर जिनके ध्यान में थोड़ी कमी आयी थी, वो पुन: ध्यान रखना शुरू कर देंगे. प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किये गये इस अभियान का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़नेवाला है. एक तरह से प्रधानमंत्री ने जनता को यह बताने का भी प्रयास किया है कि आप लापरवाह न हों, क्योंकि समस्या अभी बदस्तूर बनी हुई है, संक्रमितों की संख्या भी बढ़ रही है. इसलिए आनेवाले समय में भी इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है.
कोराेना के खिलाफ लड़ाई में प्रधानमंत्री ने लगातार अगुआई की है और जनता से संवाद बनाये रखा है. पूरी दुनिया के साथ भारत सरकार और उसका नेतृत्व भी कोरोना के टीके को विकसित करने के लिए प्रयारसत है. लॉकडाउन लगाने, लोगों को अनुशासित करने और जागरूकता फैलाने के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा जो भी कदम उठाये गये थे, वे सभी बहुत लाभकारी सिद्ध हुए हैं. सिंगापुर एमआइटी के शोध ने तो शुरुआत में ही यह बात कह दी थी कि यदि भारत में लॉकडाउन नहीं लगाया गया होता, तो संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती. लॉकडाउन का असर हुआ और संक्रमण के चक्र को तोड़ने में हमें सफलता मिली. जिस तेजी से वह बढ़ रहा था, कहीं न कहीं उसे रोकने में भी सफलता मिली.
चूंकि, अर्थव्यवस्था की अपनी जरूरत है, इसलिए अनलॉक की प्रक्रिया शुरू की गयी. इस प्रक्रिया के दौरान जब कुछेक औद्योगिक इकाइयों को फिर से खाेला गया, आवागमन को पुन: सुचारु बनाया गया, ऐसे में लोगों का एक-दूसरे से संपर्क बढ़ा़. इस कारण संक्रमण के मामले भी बढ़ते गये. चूंकि, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली यूरोपीय देशों की तुलना में बेहतर है, ऐसे में तमाम लोग संक्रमित हुए और ठीक हो गये. जिस तरह के एहतियाती उपाय हमारे यहां किये गये, उसका लाभ हुआ है.
इस अभियान के जरिये प्रधानमंत्री ने हमें यह याद दिलाया है कि इस बदलते मौसम में तमाम वायरस सक्रिय हो जाते हैं, ऐसे में यह वायरस भी ज्यादा सक्रिय हो सकता है, इसलिए रोकथाम के उपायों को लेकर किसी तरह की कोताही ना बरती जाये. शोधार्थियों ने भी सर्दियों में संक्रमण के बढ़ने को लेकर संभावना जतायी है. इसे देखते हुए ही प्रधानमंत्री ने एक बार फिर से देशवासियों को इस ओर ध्यान दिलाने का प्रयास किया है कि हम अभी आश्वस्त न हो जायें कि यह समस्या खत्म हो चुकी है, बल्कि समस्या अभी अपनी जगह बनी हुई है. इस नाते अभी भी हमको पूरी सावधानी बरतनी है़.
सोशल मीडिया के जो तमाम माध्यम हैं, उनके जरिये कई बार बहुत छोटा संदेश भी बहुत बड़ी बात कह रहा होता है. ट्विटर के माध्यम से प्रधानमंत्री द्वारा संदेश इसलिए दिया गया है, क्योंकि ट्विटर बहुत तेजी से काम करता है और वहां पोस्ट किये गये संदेश को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया बहुत तेजी से उठाते हैं. वहां प्रतिक्रियाएं भी त्वरित होती हैं. हम सहमत होते हैं तो उसको लाइक और रिट्वीट करते हैं. कई बार रिट्वीट के माध्यम से हम अपनी बात भी कह रहे होते हैं. एक तरह से ट्विटर लोगों में जागरूकता फैलाने और उन तक अपनी बात पहुंचाने का एक बहुत बड़ा माध्यम है.
इसी कारण प्रधानमंत्री समय-समय पर अपने विचारों को प्रकट करने के लिए, इस माध्यम को चुनते है़. भले ही हमारे देश की बहुत सी जनता ट्विटर पर नहीं है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से यह बात जन-जन तक पहुंचेगी. प्रधानमंंत्री जब कोई बात करते हैं, तो सभी मीडिया हाउसेज उसको प्रमुखता से रखते हैं. इतना ही नहीं, जब कोई विषय विमर्श में आ जाता है, तो उसका प्रभाव समाज पर पड़ता ही है. मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री ने एकदम सही माध्यम का चुनाव किया है, क्योंकि समस्या बरकरार है, भले ही इसका स्वरूप बदला है.
(बातचीत पर आधारित)