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आधुनिक शिक्षा के वास्तुकार थे मौलाना आजाद

मौलाना के जेहन में यह बात साफ थी कि शिक्षा केवल कारोबारी या आर्थिक समस्या नहीं है. मौलाना के नजदीक तालीम का उद्देश्य था कि इंसान के व्यक्तित्व में चमक पैदा हो.

By इबरार अहमद | November 11, 2022 8:02 AM

भारतीय समाज को सजाने-संवारने में जिन महापुरुषों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उनमें एक नाम मौलाना आजाद का भी है. वे एक सहाफी, सियासतदां, जंग-ए-आजादी के मुजाहिद तो थे ही, महान शिक्षाविद भी थे. इन्हें आजाद हिंदुस्तान में आधुनिक शिक्षा का आर्किटेक्ट कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. आजाद भारत किस तरह प्रगति के रास्ते पर चलेगा, इसका एक सपना गांधी जी ने घरेलू उद्योग का स्वरूप लिये आत्मनिर्भर गांव के रूप में देखा था, जो शक्तिशाली भारत का आधार होगा.

दूसरी ओर जवाहरलाल नेहरू एवं उनके साथियों की सोच थी कि भारत आधुनिक बड़े उद्योग और आर्थिक सक्रियता का बड़ा केंद्र बने, ताकि विकसित देशों के साथ खड़ा हो सके. मौलाना आजाद ने इन दोनों विचारों के बीच सामंजस्य बनाते हुए एक ऐसी शिक्षा नीति पेश की, जिसमें प्राचीन शिक्षा और सभ्यता का समावेश भी है. गांव की मिट्टी की सुगंध, संस्कृति और सभ्यता का अद्भुत मिश्रण है.

अबुल कलाम आजाद की शख्सियत एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक युग की थी. वे कहते हैं- ‘हम अपने भौतिक धन और साज-ओ-सामान को भौगोलिक सीमाओं में कैद कर सकते हैं, लेकिन इल्म व तहजीब की दौलत पर पाबंदी नहीं लगा सकते. वह तो इंसान की मीरास है.’ मौलाना के जेहन में यह बात साफ थी कि शिक्षा केवल कारोबारी या आर्थिक समस्या नहीं है. मौलाना के नजदीक तालीम का उद्देश्य था कि इंसान के व्यक्तित्व में चमक पैदा हो.

हमेशा पुनर्निर्माण की तरफ अपने व्यक्तित्व की स्वतंत्र रूप से सरंचना कर अपनी पहचान बनायी जाए. जब देश आजाद हुआ, तो मौलाना आजाद शिक्षा मंत्री बने. उस समय महात्मा गांधी जीवित थे और जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे. महात्मा गांधी का अपना शैक्षणिक दृष्टिकोण था. वे देश को मशीनों के हाथों में देने पर सहमत नहीं थे और न उसे मशीनों की हुकूमत की तरफ ले जाना चाहते थे. वे बड़े उद्योगों की तुलना में गांव की तरक्की और घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित करने के पक्ष में थे. नेहरू बड़े उद्योगों की स्थापना के हक में थे. ऐसी स्थिति में प्रश्न यह था कि देशवासियों को किस तरह की शिक्षा दी जाए? मौलाना ने बीच का रास्ता निकाला.

उन्होंने तय किया कि हमारे विद्यार्थी ऐसे निकलें, जो बड़े उद्योग चला सकें और साइंस व टेक्नोलॉजी के नये-नये आविष्कार पर काबू पा सकें, साथ ही घरेलू उद्योगों को भी प्रोत्साहन मिल सके. अपनी इस योजना को साकार करने के लिए मौलाना आजाद ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर के नेतृत्व में विज्ञान के उच्च शोध संस्थान की स्थापना की. एटमी तरक्की का एक अलग संस्थान स्थापित किया गया. इसके अलावा विज्ञान, कृषि, चिकित्सा आदि में शोध एवं अनुसंधान के शीर्ष संस्थानों की स्थापना की गयी.

उद्देश्य था कि कृषि एवं उद्योग दोनों को प्रोत्साहन मिल सके. मौलाना आजाद ने आजाद हिंदुस्तान में उच्च शिक्षा की प्रगति एवं प्रसार पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया. उन्होंने 1948 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की स्थापना की और डॉक्टर राधाकृष्णन को इसका अध्यक्ष बनाया. माध्यमिक शिक्षा में सुधार के लिए 1952 में माध्यमिक शिक्षा आयोग बनाया गया.

उन्होंने महसूस कर लिया था कि देश उस वक्त तक आत्मनिर्भर नहीं हो सकता और प्रगति की राह पर नहीं चल सकता, जब तक साइंस एवं टेक्नोलॉजी की शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान नहीं दिया जायेगा. इसके लिए 1951 में खड़गपुर इंस्टीट्यूट ऑफ हायर टेक्नोलॉजी की स्थापना की गयी. मौलाना आजाद ने 18 अगस्त 1951 को इस संस्था की बुनियाद रखते हुए कहा था- ‘मेरा पहला काम था कि टेक्निकल तालीम की तरफ ध्यान दूं ताकि इस सिलसिले में हम आत्मनिर्भर हो सकें.

हमारे बहुत से नौजवान, जो इस तालीम की प्राप्ति के लिए विदेश जाते हैं, मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं, जब विदेशों के विद्यार्थी हिंदुस्तान में इस तालीम को हासिल करने आयें.’ उनका ध्यान समाज विज्ञान और ललित कला की तरफ भी विशेष रूप से रहा. उन्होंने इतिहास अनुसंधान तथा समाज विज्ञान अनुसंधान परिषदों को स्थापित किया. उनके द्वारा स्थापित एक और संस्थान- अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान- ने बाद में प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मार्ग प्रशस्त किया. मौलाना आजाद की शिक्षा दृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है.

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