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पश्चिमी देशों में बढ़ते हिंदूद्वेष के मायने

सदियों तक दुनिया पर शासन करने वाले गोरों को चूंकि अब गैर गोरों से सीखना व कमाना पड़ रहा है, तो ईर्ष्या से हिंदू धर्म को निशाना बनाया जा रहा है. वे ये भूल जा रहे हैं कि अधिकतर पश्चिमी समाजों से यह पुरानी सभ्यता है

By प्रभु चावला | September 27, 2022 7:54 AM

लालच और आस्था ब्रिटिश राज के दो इंजन थे. लालच बढ़ते साम्राज्यरूपी दैत्य का पेट भरने के लिए था, तो दूसरी वह मान्यता थी कि गोरे लोग उन शेष नस्लों से उच्च हैं, जिन्हें उन्होंने परास्त किया है. यह श्वेत लोगों का दायित्व था कि वे उन नस्लों को उनकी अपनी संस्कृति और धर्म की जगह विक्टोरियाई साम्राज्यवाद की संकीर्ण नैतिकता को स्थापित कर सभ्य बनाएं. रुडयार्ड किपलिंग ने इसे एक काव्य रूपक दिया था- श्वेत मनुष्य का बोझ.

ब्रिटिश भारत में भी यही प्रक्रिया चल रही थी. किसी को शायद ही यह अनुमान रहा होगा कि लगभग 50 साल के भीतर साम्राज्य का सूर्य अस्त हो जायेगा. उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद भी पश्चिम नैतिकता और नस्लीय उत्तरदायित्व का ठेकेदार बना हुआ है. पिछले दिनों इंग्लैंड के कुछ हिस्सों में हिंदू व मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक झड़पें हुईं. फिर भी ब्रिटिश आभिजात्य और दुर्भावना से ग्रस्त मीडिया ने हिंसा का निशाना बने हिंदुओं से निंदनीय दूरी रखी.

उन्हें लगता है कि हिंदुओं को सलीके से रहना और असहिष्णुता सीखना होगा, जबकि दूसरे धर्मों के लोग उनके मंदिरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कुछ वर्षों से इंग्लैंड समेत कई यूरोपीय देशों में भद्दे हिंदूफोबिया (हिंदुओं से द्वेष/पूर्वाग्रह, उनके विरुद्ध हिंसा आदि से संबंधित घटनाएं या प्रकरण) को देखा जा रहा है.

ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि ब्रिटेन की आबादी में मुस्लिम समुदाय का हिस्सा चार प्रतिशत है, लेकिन 18 फीसदी अपराधी मुस्लिम हैं. लेस्टर में इस्लामवादियों ने लगातार तीन दिनों तक हिंदुओं, उनके संगठनों और मंदिरों पर हमले किया. शहर में क्रिकेट प्रशंसकों ने 28 अगस्त को टी-20 मैच में पाकिस्तान पर भारत की जीत का जश्न मनाया था.

अनुदारवादियों ने इसे ‘हिंदुत्व अतिवाद’ और ‘मुस्लिम विरोधी नारेबाजी’ का उदाहरण बताया था, पर एक सप्ताह बाद भारत पर पाकिस्तान की जीत के बाद जब मंदिरों पर हमले हुए, तो श्वेत सत्ता प्रतिष्ठानों ने उन्मादियों की निंदा नहीं की. लेस्टर पूर्व की सांसद क्लाउडिया वेब ने तो पुलिस प्रमुख को पत्र लिख कर मुस्लिम संगठनों के समूह को अपना समर्थन दिया. लेस्टर में सबसे अधिक हिंदू हैं. यहां लेबर पार्टी का वर्चस्व है.

यह स्थिति तब है, जब 22 फीसदी लेबर मतदाता इस्लाम को एक खतरा मानते हैं. लगभग 32 फीसदी का मानना है कि शरिया के तहत कुछ जगहों पर जाने की पाबंदी है. एक रिपोर्ट के अनुसार, सालभर में पांच हजार ब्रिटिश लोगों ने इस्लाम अपनाया है, जो ब्रिटेन का सबसे तेजी से बढ़ता धर्म है.

इस्लामिक चरमपंथी हिंदू नेताओं के दौरों का नि:संकोच विरोध करते हैं. कुछ दिन पहले लंदन में साध्वी ऋतंभरा का भारी विरोध हुआ था. वर्ष 2008 में भारत विरोधी नेताओं के एक गुट ने लंदन जाने से ठीक पहले नरेंद्र मोदी का वीजा रद्द करा दिया था. इसी साल रश्मि सामंत को वामपंथियों और इस्लामवादियों ने सोशल मीडिया पर व्यक्त विचारों के लिए खूब परेशान किया. सामंत पहली भारती महिला हैं, जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी यूनियन का अध्यक्ष चुना गया है. उन्हें एक शिक्षक की फटकार के बाद विश्वविद्यालय और देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

उक्त शिक्षक की ‘हिंदू घृणा’ की शिकायत वहां के 119 अधिक हिंदू संगठनों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से की थी, पर उन्होंने कुछ नहीं किया. विडंबना है कि ऑक्सफोर्ड में पढ़े कुछ ही दक्षिणपंथी व राष्ट्रवादी भारतीयों ने सामंत का समर्थन किया. भारतीय उच्चायोग भी सेक्युलर कूटनीति करता रहा, पर वहां के स्थानीय भारतीय समूहों से उनको बहुत समर्थन मिला. ब्रिटेन के असंगत आप्रवासन नीति, जिसमें पूर्व उपनिवेशों से लोगों को आने दिया जाता था, के कारण अतिवादियों द्वारा नियंत्रित मुस्लिम बस्तियों का उभार हुआ.

ब्रिटिश शिक्षा के इस्लामीकरण के कारण कुछ स्कूलों में ‘मेरी क्रिसमस’ कहने पर रोक लगा दी गयी, ताकि मुस्लिम छात्र आहत न हों. एक नयी किताब में बताया गया है कि 1887 में लिवरपूल में ब्रिटेन की दो पहली मस्जिदें होती थीं, पर अब उनकी संख्या दो हजार है. वैश्विक स्तर पर, विशेषकर इंग्लैंड में, हिंदू धर्म जब स्वयं को स्थापित कर रहा है, तो उसे नेताओं के हमलों का सामना भी करना पड़ रहा है.

ब्रिटेन के पूर्व गृह सचिव प्रीति पटेल को अपने देश में ही मुस्लिम और श्वेत समुदायों के दुर्भावनापूर्ण हमलों का शिकार होना पड़ा. लेबर पार्टी के नेता नवेंदु मिश्र ने एक रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि भारतीय पहचान के कारण 80 प्रतिशत ब्रिटिश भारतीयों को पूर्वाग्रह झेलना पड़ता है, जिसमें हिंदूफोबिया सबसे प्रभावी है. ऐसे कई सर्वेक्षण पश्चिम में भारतीय हिंदुओं पर बढ़ते खतरे को इंगित करते हैं.

इस घृणा के कारणों को परिभाषित करना मुश्किल नहीं है. वैश्विक स्तर पर कारोबार, वाणिज्य, तकनीक और एकेडेमिक्स में भारतीयों के बढ़ते प्रभाव ने प्रतिस्पर्धी समुदायों को हीन भावना से भर दिया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, शीर्षस्थ 500 कंपनियों के प्रमुख अधिकारियों में लगभग 30 प्रतिशत भारतीय हैं.

वैश्विक सकल उत्पादन का 15 प्रतिशत से अधिक उन कंपनियों द्वारा पैदा किया जाता है, जिनका स्वामित्व या प्रबंधन भारतीयों के हाथ में है. पश्चिम की शीर्षस्थ अकादमियों में 10 फीसदी से अधिक अध्यापक भारतीय हैं. ब्रिटेन के सबसे अधिक धनी हिंदू हैं. राजनीति और प्रशासन में भी हिंदू बड़ी संख्या में हैं. कुछ तत्वों को छोड़ दें, तो उनमें से अधिकतर सहिष्णु और बहुलतावादी हैं, जिसका संदेश स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में दिया था.

हिंदू धर्म के आलोचक समझ गये हैं कि विवेकानंद के संदेश का प्रतिकार हिंदू जीवन पद्धति के विरुद्ध दुष्प्रचार से ही किया जा सकता है. सदियों तक दुनिया पर शासन करने वाले गोरों को चूंकि अब गैर गोरों से सीखना व कमाना पड़ रहा है, तो ईर्ष्या से हिंदू धर्म को निशाना बनाया जा रहा है. वे ये भूल जा रहे हैं कि अधिकतर पश्चिमी समाजों से यह पुरानी सभ्यता है. अंतरराष्ट्रीय आर्थिकी में बढ़त विविधता में एकता के आवश्यक औजार के रूप में हिंदू धर्म के स्वीकार को बढ़ा रही है.

ब्रिटेन में ईसाई आबादी घट रही है, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़ रही है. कभी उपनिवेशों में ‘बांटों और राज करो’ की नीति पर चलने वाले अंग्रेजों के यहां लेस्टर में पूर्व उपनिवेश के लोग सड़क पर खून बहा रहे हैं. रुडयार्ड किपलिंग अपनी कब्र में बेचैनी से करवटें ले रहे होंगे कि अब गोरे लोग ही भूरे लोगों का बोझ बन गये हैं. अब यह अलग ‘जंगल बुक’ है, जिसमें भारत की विरासत और सफलता दोनों से घृणा करने वाले दैत्य भरे पड़े हैं.

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