डॉ. जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री
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कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता जा रहा है. रिजर्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जुलाई को 516 अरब डॉलर से अधिक के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. िन:संदेह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का अहम योगदान होता है. वर्ष 1991 में जब चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे, तब हमारे देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी. हमारी अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी. उस समय देश का विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था. इतनी कम रकम दो-तीन सप्ताह के आयात के लिए भी पूरी नहीं थी. ऐसे में रिजर्व बैंक ने 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर्ज लिया था.
वर्ष 1991 में नयी आर्थिक नीति अपनायी गयी. जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ावा देना था. इस नयी नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी. वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा. वर्ष 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी. वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंचा. उसके बाद इसमें लगातार वृद्धि होती गयी. 5 जून, 2020 को इसने 501 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को प्राप्त किया.
गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गयी धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं जिनका उपयोग वह जरूरत पड़ने पर अपनी देनदारियों का भुगतान करने के लिए कर सकता है. किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में सामान्यतः चार तत्व शामिल होते हैं- विदेशी परिसंपत्तियां (विदेशी कंपनियों के शेयर, डिबेंचर, बॉण्ड इत्यादि विदेशी मुद्रा के रूप में), स्वर्ण भंडार, आइएमएफ के पास रिजर्व ट्रेंच तथा विशेष आहरण अधिकार. विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है.
यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना काल में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के परिदृश्य दिखायी दे रहे हैं, तब भी विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति विश्वास बना रहा और विदेशी निवेश संतोषजनक गति से बढ़ा. इसी 22 जुलाई को अमेरिका-भारत बिजनेस काउंसिल की इंडिया आइडियाज समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोविड-19 के बीच भारत के वैश्विक सहयोग की भूमिका से दुनिया का भारत में विश्वास बढ़ा है और अप्रैल से जून 2020 की अवधि में देश को 20 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) प्राप्त हुआ है. देश को वित्त वर्ष 2019-20 में करीब 74 अरब डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था, जो वित्त वर्ष 2018-19 में प्राप्त विदेशी निवेश से करीब 20 फीसदी अधिक था. इस समय हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने की कई वजहें हैं. मार्च से लागू लॉकडाउन की वजह से जून 2020 तक पेट्रोल-डीजल की मांग कम हो गयी थी.
भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत आयात करता है, इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है. ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने भी विदेशी मुद्रा भंडार के व्यय में कमी की है. कच्चे तेल की कम और सस्ती खरीदारी की वजह से सरकार को कम विदेशी मुद्रा का भुगतान करना पड़ा है. इसी तरह सोने के आयात में लगातार कमी से भी विदेशी मुद्रा के व्यय में कमी आयी है. देश के आयात बिल में सोने के आयात का प्रमुख स्थान है. वित्त वर्ष 2019-20 में सोने का आयात घटने से विदेशी मुद्रा की बड़ी बचत हुई है.
वर्ष 2019-20 में देश के व्यापार घाटे में भी कमी आयी है. इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार को लाभ हुआ है. खासतौर से चीन से आयात कम हुआ है. चीन के साथ व्यापार घाटे में कमी आने से भी विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है. लॉकडाउन के कारण विभिन्न वस्तुओं की मांग में कमी के चलते आयात भी काफी कम हुआ है, इससे विदेशी मुद्रा भंडार से कम व्यय करना पड़ा है. यह भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुई है.
भारतीय शेयर बाजार का रुख प्रतिकूल नहीं हुआ. भारत उभरते शेयर बाजारों में अच्छी स्थिति में बना रहा है. विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी भारतीय शेयर बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाया है. विदेशी मुद्रा भंडार के ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचने से भारत को कई लाभ होंगे. विदेशी मुद्रा भंडार के वर्तमान स्तर से एक वर्ष से भी अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है. महामारी के बीच विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिये देश का यह भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है.
इस भंडार में वृद्धि से वैश्विक निवेशकों का विश्वास बढ़ा है और वे भारत में अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं. महामारी से बेहतर ढंग से निपटने में विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभावी भूमिका हो सकती है. चीन से बढ़ते सैन्य तनाव के मद्देनजर सरकार जरूरी सैन्य हथियारों की तत्काल खरीदी का निर्णय भी शीघ्रतापूर्वक ले सकती है. इस वर्ष जुलाई से अर्थव्यवस्था में जिस तरह का सुधार दिखायी दे रहा है, हम उम्मीद करें कि उससे विदेशी निवेश व निर्यात बढ़ेगा, आयात घटेगा और विदेशी मुद्रा भंडार में और वृद्धि होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)