इंडिया गठबंधन में दरार का मतलब, पढ़ें नीरजा चौधरी का खास आलेख
India alliance : हरियाणा में कांग्रेस की हार बहुत बड़ा राजनीतिक झटका थी. मानो यही काफी न हो, जिस महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान महाविकास आघाड़ी का प्रदर्शन अच्छा था, वहां विधानसभा चुनाव में गठबंधन बुरी तरह बिखर गया.
India Alliance : जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद ही, जहां कांग्रेस को मात्र छह सीटें मिली थीं, इंडिया गठबंधन के भीतर कांग्रेस पर दबाव बनने लगा था. दरअसल वहां मतदान के दौरान ही नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के प्रति अपनी नाराजगी जताते कहा था कि कांग्रेस से जितनी उम्मीद थी, उसने उतना काम नहीं किया. फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल के बावजूद पार्टी के अंदर टिकट वितरण से लेकर मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर जिस तरह की कवायद शुरू हुई, उससे उसका बना-बनाया खेल बिगड़ गया.
हरियाणा में कांग्रेस की हार बहुत बड़ा राजनीतिक झटका थी. मानो यही काफी न हो, जिस महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान महाविकास आघाड़ी का प्रदर्शन अच्छा था, वहां विधानसभा चुनाव में गठबंधन बुरी तरह बिखर गया. हालांकि झारखंड में इंडिया गठबंधन को जीत हासिल हुई, लेकिन वहां भी हेमंत सोरेन का झारखंड मुक्ति मोर्चा ही मुख्य भूमिका में था. लेकिन दोनों ही जगहों पर- जम्मू-कश्मीर और झारखंड में- कांग्रेस जूनियर पार्टनर की भूमिका में रही.
इसके बरक्स लोकसभा चुनाव से पहले के माहौल को याद करें, तो राहुल गांधी की दो पदयात्राओं ने उनके पक्ष में हवा बना दी थी. फिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं और भाजपा को बहुमत से दूर कर दिया. संसद में वह नेता विपक्ष चुने गये. वैसे में राहुल गांधी को अघोषित तौर पर एकजुट विपक्ष, यानी इंडिया गठबंधन का नेता मान लिया गया था. लेकिन उसके बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनावों ने कांग्रेस की स्थिति खराब कर दी. लोकसभा चुनाव और उसके बाद कांग्रेस ताकतवर स्थिति में दिख रही थी, तो विपक्ष में राहुल गांधी के कद को स्वीकारा जा रहा था. लेकिन चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे के बाद कांग्रेस फिर विफलता के पुराने दिनों में लौट आयी है.
इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को आंखें दिखाने की शुरुआत सबसे पहले सपा ने की. दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद के संसद सत्र में लोकसभा में विपक्षी नेताओं के बैठने की जो व्यवस्था की गयी थी, उसमें अयोध्या से जीते सपा के सांसद अवधेश प्रसाद को आगे की सीट दी गयी. लेकिन वायनाड से प्रियंका गांधी के चुनकर आते ही बैठने की व्यवस्था में बदलाव हुआ और अवधेश प्रसाद को पीछे की सीट दी गयी. सपा ने इसे अपना अपमान माना और इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार माना.
सपा के बाद तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस को निशाना बनाने की कोशिश की. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं. ध्यान रखना चाहिए कि इंडिया गठबंधन के नेतृत्व का मुद्दा पहले कभी इस तरह नहीं उठा. जाहिर है कि ऐसा कहकर वह राहुल गांधी को निशाना बना रही हैं. तृणमूल कांग्रेस वह पार्टी है, जिसका कांग्रेस से बहुत अच्छा रिश्ता नहीं है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में उसने कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने से मना कर दिया था. संसद के मौजूदा शीत सत्र में अदाणी पर हमला बोलने के कांग्रेस के एजेंडे को उसने स्वीकार नहीं किया.
इंडिया गठबंधन का हिस्सा होते हुए भी वह कांग्रेस से अलग अपना रास्ता चलती हैं. चूंकि राहुल गांधी अपने सहयोगियों के निशाने पर हैं, ऐसे में, भाजपा भी मौके का फायदा उठाकर यह कहने से नहीं चूक रही कि इंडिया के सहयोगी दलों को राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार नहीं है. इस बीच तेजस्वी यादव ने भी यह टिप्पणी की है कि इंडिया गठबंधन में नेतृत्व का मुद्दा सर्वसहमति से तय होना चाहिए. चूंकि आने वाले दिनों में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में, तेजस्वी यह कहकर शायद संभावित सीट बंटवारे के मुद्दे पर कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन के नेतृत्व की इच्छा भले ही किसी कारण से जतायी हो, लेकिन सच यह है कि मौजूदा स्थिति में वह इस गठबंधन का नेतृत्व करने का माद्दा रखती हैं. वह ममता बनर्जी ही हैं, जिन्होंने पश्चिम बंगाल की सत्ता पर दशकों से काबिज वाम मोर्चा को उखाड़ फेंका था. वह ममता बनर्जी ही हैं, जिन्होंने एक से अधिक बार राज्य की सत्ता में भाजपा को आने से रोका है. वह ममता ही हैं, जो पश्चिम बंगाल में भाजपा की आक्रामकता का जवाब उसी आक्रामकता से देती हैं. जहां तक इंडिया गठबंधन की बात है, इसका आइडिया भी ममता बनर्जी का ही था.
इंडिया गठबंधन का उद्देश्य भाजपा का कुशलता से मुकाबला करना है. इस मामले में इंडिया गठबंधन के अंदर ममता जैसा रिकॉर्ड दूसरी किसी भी पार्टी का नहीं है. फिर उन्हें इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने का अवसर क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? चूंकि वह एक महिला हैं, इस कारण भी उन्हें नेतृत्व का अवसर दिये जाने का अच्छा संदेश जायेगा. राजनीति में स्त्री शक्ति का महत्व किसी से छिपा हुआ नहीं है.
चुनाव में महिलाएं बढ़-चढ़कर वोट करती हैं. नरेंद्र मोदी की चुनावी जीतों में महिला मतदाताओं का बड़ा योगदान है. झारखंड में झामुमो की जीत में कल्पना सोरेन नायिका की तरह उभरी हैं. महाराष्ट्र में भाजपा की बड़ी जीत में लड़की बहिन योजना की महत्वपूर्ण भूमिका रही. ऐसे में, ममता को गठबंधन का नेतृत्व सौंपना एक अच्छा विचार हो सकता है. चूंकि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी और उनकी रणनीति को तगड़ी चोट लगी है, इसलिए भी इंडिया गठबंधन को एक फायरब्रांड नेतृत्व की आवश्यकता है.
इसके बावजूद एक पार्टी के तौर पर कांग्रेस को अपनी कमजोरी से उबरने की जरूरत तो है ही. कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी मुश्किल है कि वह अपने गैरजिम्मेदार नेताओं को सख्त संदेश नहीं देती. इसी कारण उसके यहां अनुशासन की कमी है, जिसका गाहे-बगाहे उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है. जितनी जल्दी वह अपनी इस कमजोरी से उबरे, उतना ही अच्छा होगा. इसके अलावा उसे यह भी समझना होगा कि जिन क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन बना है, उनमें से ज्यादतर दल कांग्रेस को सशंकित निगाहों से देखते हैं. आज जिस स्थिति में भाजपा है, उसी स्थिति में कभी कांग्रेस थी. तब उसने क्षेत्रीय दलों के खिलाफ दबाव और आक्रामकता का परिचय दिया था. इसके अलावा कई राजनीतिक दल तो कांग्रेस से टूटकर ही बने हैं. ऐसे में, कांग्रेस के प्रति उनका अविश्वास तो बना ही रहेगा. यह कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि वह क्षेत्रीय दलों के प्रति विश्वास और भरोसे का परिचय दे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)