दवाओं को आम जन के लिए सस्ता और सुलभ बनाने के प्रयास के तहत केंद्र सरकार ने कई जीवनरक्षक दवाओं को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल किया है. उपचार के खर्च में सबसे अधिक हिस्सा दवाओं का होता है. आम तौर पर बाजार में दवाओं की कीमत निर्माता कंपनियां निर्धारित करती हैं. उनका मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है. ऐसी शिकायतें अक्सर सामने आती हैं कि दवा कंपनियां अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए चिकित्सकों और अस्पतालों को रिश्वत भी देती हैं.
ऐसे में दवाओं की कीमत स्वाभाविक रूप से अधिक हो जाती है़़ं. सरकार ने जिन 384 दवाओं को आवश्यक दवा की श्रेणी में डाला है, उनमें कैंसर, दर्द निवारक, न्यूरो से संबंधित रोगों, डायबिटीज, टीबी और हृदय रोग की दवाएं शामिल हैं. हमारे देश में ये रोग तेजी से बढ़ भी रहे हैं तथा इनका इलाज भी महंगा होता है. इन रोगों से ग्रस्त लोगों को निश्चित ही राहत मिलेगी. उल्लेखनीय है कि जिन दवाओं को इस सूची में रखा जाता है, उनके दाम राष्ट्रीय दवा मूल्य प्राधिकार द्वारा निर्धारित किये जाते हैं.
इसका मतलब यह है कि दवा कंपनियां, अस्पताल और फार्मेसी दुकानें उन्हें मनमानी कीमत पर नहीं बेच सकती हैं. नियमों के अनुसार सभी अस्पतालों को, चाहे वे निजी अस्पताल हों या सरकारी, आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में उल्लिखित दवाओं की बड़ी खेप अपने पास रखनी होगी. यह प्रावधान इसलिए जरूरी है क्योंकि संभव है कि अस्पताल में इन दवाओं की उपलब्धता न हो और रोगी के लिए महंगे विकल्पों को खरीदना मजबूरी बन जाए.
समय समय पर दाम, असर और उपलब्धता के आधार पर इस सूची में दवाओं को शामिल किया जाता है या हटाया जाता है. दवाओं का परीक्षण और निर्धारण विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर किया जाता है. सितंबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने जानकारी दी थी कि सरकार राष्ट्रीय सूची की समीक्षा कर रही है. इस सूची को आखिरी बार 2015 में संशोधित किया गया था. उस समय इसमें 376 दवाएं थीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के प्रारंभ से ही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने तथा समाज के निर्धन और निम्न आय वर्ग को सस्ती व गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा मुहैया कराने को अपनी प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल किया है. दवाओं की सूची को अपडेट करने के साथ-साथ जन औषधि केंद्र भी खोले गये हैं. इन केंद्रों पर जेनेरिक दवाएं बहुत कम दाम पर मिलती हैं. ऐसे केंद्रों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां दवाओं का समुचित स्टॉक रहे. ऐसी योजनाएं स्वास्थ्य सेवा की तस्वीर बदल सकती हैं.