ब्रिटेन के जनादेश में निहित संदेश
प्रधानमंत्री स्टामर और विदेश मंत्री लामी कह चुके हैं कि भारत के साथ व्यापारिक और सामरिक संबंध प्रगाढ़ करना उनकी सरकार की प्राथमिकता होगी.
इस वर्ष का ब्रिटिश आम चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है. विपक्ष को तैयारी का मौका न देने के लिए समय से पहले कराये गये इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सत्ताधारी कंजर्वेटिव पार्टी को 251 सीटें खोकर अपने संसदीय इतिहास की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा है.
सुनक सरकार के 12 वरिष्ठ मंत्री हार गये. पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस हार गयीं. पिछले चुनाव में 90 वर्षों की सबसे बुरी हार झेलने वाली लेबर पार्टी ने सर किएर स्टामर के नेतृत्व में 650 सीटों वाली संसद में 412 सीटें जीतकर चुनावी इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी जीत हासिल की. इससे बड़ी जीत 1997 में हुई थी, जब टोनी ब्लेयर के करिश्माई नेतृत्व में लेबर पार्टी ने 20 साल से चली आ रही कंजर्वेटिव सरकार को हरा कर 418 सीटें जीती थीं.
इस साल की जीत के रहस्य की परतें वोट शेयर और मतदान प्रतिशत का आंकड़ा देखने पर खुलने लगती हैं. साल 2019 में लेबर पार्टी को 32.1 प्रतिशत वोटों के साथ 202 सीटें मिली थीं. इस बार उसे वोट तो 34 प्रतिशत ही मिले हैं, पर सीटें 412 हो गयी हैं. कंजर्वेटिव पार्टी का वोट शेयर पिछले चुनाव में 43.6 प्रतिशत था, जो इस बार केवल 24 प्रतिशत रह गया है. इस कमी से 251 सीटें उसके हाथ से निकल गयीं.
इस चुनाव में केवल 60 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला, जो पिछले 20 वर्षों में सबसे कम था. कई सीटों पर हार-जीत का अंतर हजार वोटों से भी कम रहा है. सात सीटें तो ऐसी हैं, जहां केवल 15-100 के अंतर से ही हार-जीत तय हुई है. इसके बावजूद ऋषि सुनक ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए समर्थकों से माफी मांगी और स्टामर को शुभकामना देते हुए उनकी शालीनता और कार्यनिष्ठा की सराहना की. स्टामर ने भी अपने भाषण में सुनक के काम और कार्यनिष्ठा की सराहना की. अनुकूल जनादेश न मिलने पर भी उसे शालीनता से स्वीकार करने की इस स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा से अमेरिका और भारत के उन नेताओं को सबक लेना चाहिए, जो अपनी हार की समीक्षा करने की जगह चुनावी प्रक्रिया की खामियां निकालने और अराजकता फैलाने में जुट जाते हैं.
वोट शेयर और सीटों की संख्या के बीच टूटते तालमेल का प्रमुख कारण प्रमुख पार्टियों के जनाधार का बिखरना है. नाइजल फराज की रिफॉर्म पार्टी कंजर्वेटिव पार्टी से टूटे उन समर्थकों से बनी है, जो धुर दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं. रिफॉर्म पार्टी के उम्मीदवारों ने सैंकड़ों सीटों पर दूसरे और तीसरे स्थान रहकर कंजर्वेटिव उम्मीदवारों को हराने में मुख्य भूमिका अदा की है. कंजर्वेटिव पार्टी के पुराने नेता मानते हैं कि सुनक को नाइजल फराज और उनकी पार्टी की चुनौती का उपाय किये बिना समय से पहले चुनाव नहीं कराना चाहिए था. यह उनकी राजनीतिक समझ का कच्चापन है, जिसका नुकसान उन्हें और पार्टी को हुआ है.
बिखराव लेबर पार्टी के जनाधार में भी हुआ है. पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की तरह ही किएर स्टामर ने भी लेबर पार्टी को मध्यवर्ग और कारोबारी वर्ग की पार्टी बनाने की कोशिश की. पार्टी के वामपंथी नेता जेरमी कॉर्बिन को निलंबित किया गया. उनके नेतृत्व में पारित जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप के प्रस्ताव से किनारा किया गया. गाजा में चल रहे विनाश की कड़ी निंदा करने और युद्धविराम की मांग करने की जगह सरकारी नीति को दोहराने से पार्टी के मुस्लिम जनाधार में रोष फैला.
मध्य इंग्लैंड के स्थानीय निकायों के कई नेताओं ने लेबर पार्टी छोड़ दी और इस चुनाव में कई उम्मीदवारों ने गाजा में चल रहे अत्याचार के मुद्दे पर लेबर उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ा. इससे पार्टी को दर्जनों सीटों पर नुकसान हुआ और पांच निर्दलीय उम्मीदवार जीते, जिनमें जेरमी कॉर्बिन भी शामिल हैं. जैसे कंजर्वेटिव पार्टी को दक्षिणपंथी धड़े ने नुकसान पहुंचाया, उसी तरह लेबर पार्टी को उसके वामपंथी और इस्लामी धड़ों ने नुकसान पहुंचाया. पर उसका वोट शेयर कम रहा और सीटों की संख्या पर खास असर नहीं पड़ा.
कंजर्वेटिव पार्टी को बहुत अधिक नुकसान होने का सबसे बड़ा कारण बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस जैसे नेताओं की अनुशासनहीनता और अकुशलता रही, जिसका लाभ लेबर पार्टी को मिला. इसीलिए राजनीतिक करिश्मे और आकर्षक घोषणाओं के अभाव में भी लोगों ने स्टामर और उनकी पार्टी को ऐसा जनादेश दिया है, जो सीटों के हिसाब से भारी लगता है, लेकिन एक-तिहाई वोट शेयर की दृष्टि से प्रश्न भी खड़े करता है. स्टामर को इसका एहसास है. इसीलिए वे चुनाव जीतने के बाद अब लोगों का भरोसा जीतने की बात कर रहे हैं. लेकिन यह काम आसान नहीं होगा. अपनी केबिनेट में उन्होंने न्याय मंत्रालय पाकिस्तानी मूल की पूर्व बैरिस्टर शबाना महमूद को दिया है. गृह मंत्री इवेट कूपर को और विदेश मंत्री डेविड लामी को बनाया है. भारतीय मूल की लीसा नंदी संस्कृति, मीडिया और खेल मंत्री बनी हैं. वे लेबर पार्टी के नेतृत्व का चुनाव भी लड़ चुकी हैं और अनुभवी मंत्री हैं.
इस चुनाव में भारतीय मूल के 29 सांसद निर्वाचित हुए हैं, जो एक रिकॉर्ड है. इनमें से 19 लेबर पार्टी के हैं, ऋषि सुनक समेत सात कंजर्वेटिव पार्टी के हैं, दो निर्दलीय हैं और एक लिबरल पार्टी से है. इनमें पांच महिलाओं और एक किन्नर समेत 12 सिख सांसद भी शामिल हैं, जिनकी वजह से ब्रिटेन कनाडा के बाद सर्वाधिक सिख सांसदों वाला देश बन गया है. इनमें से कुछ की सहानुभूति खालिस्तानी आंदोलन के साथ भी रही है. पाकिस्तानी और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीरी मूल के भी 15 सांसद चुने गये हैं. संसद में इनके विचार और गतिविधियां नयी लेबर सरकार और भारत-ब्रिटेन संबंधों के लिए चुनौती बन सकती हैं.
वैसे प्रधानमंत्री सर किएर स्टामर और उनके विदेश मंत्री डेविड लामी कह चुके हैं कि भारत के साथ व्यापारिक और सामरिक संबंध प्रगाढ़ करना उनकी सरकार की प्राथमिकता होगी. उनकी सरकार का लक्ष्य टैक्स बढ़ाये बिना अर्थव्यवस्था का विकास कर बढ़ायी आमदनी से स्वास्थ्य, शिक्षा और जनकल्याण सेवाओं को बेहतर बनाने और बुनियादी ढांचे में निवेश करना है. यह काम यूरोप और भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ मुक्त व्यापार समझौते बिना नहीं हो सकता. लेकिन वे आप्रवासियों की संख्या भी घटाना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें जनादेश मिला है. इसके उलट भारत चाहता है कि उसके छात्रों और विशेषज्ञों को निर्बाध रूप से वीजा मिले. यह तभी संभव है, जब ब्रिटिश सरकार विशेषज्ञ भारतीयों और छात्रों को आप्रवासियों की जगह अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक के रूप में देखना शुरू करे. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)