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भारत के समक्ष सैन्य चुनौतियां

भारतीय सेना द्वारा खरीद करने और उसके आधुनिकीकरण के लिए सीमित आवंटन की चुनौती रूस से आपूर्ति बाधित होने से अधिक गंभीर हो गयी है.

थल सेना के कमांडरों की अर्द्धवार्षिक बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के संबोधन से थल सेना की मुख्य संरचनात्मक चुनौतियों की कुछ समझ मिलती है. रक्षा मंत्री द्वारा रेखांकित बिंदुओं की प्रासंगिकता तीनों सशस्त्र सेनाओं के लिए है, इसलिए इस बैठक की चर्चा व्यापक राष्ट्रीय रक्षा नीतियों को प्रभावित करेगी. थल सेना में दस लाख से अधिक सैनिक हैं तथा इसकी तुलना में वायु सेना और नौसेना का आकार बहुत छोटा है.

यह अर्द्धवार्षिक बैठक इस संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है कि इस महीने के अंत में वर्तमान थल सेना प्रमुख जेनरल एमएम नरवने सेवानिवृत्त हो रहे हैं और एक मई को लेफ्टिनेंट जेनरल मनोज पांडे पदभार संभालेंगे. वे पहले सैन्य इंजीनियर होंगे, जो भारतीय थल सेना का नेतृत्व करेंगे. अब तक सभी सैन्य प्रमुख इंफैंट्री, कैवेलरी या आर्टिलरी से होते रहे हैं. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति की घोषणा होने की अपेक्षा भी है.

बीते दिसंबर में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जेनरल बिपिन रावत की त्रासद मृत्यु के बाद से यह पद रिक्त है. भारत के रक्षा प्रबंधन में यह एक खालीपन है, क्योंकि जेनरल रावत भारत के पहले एकीकृत कमान की स्थापना में लगे हुए थे. माना जा रहा है कि जेनरल नरवने देश के दूसरे सीडीएस होंगे, पर अभी इसकी घोषणा बाकी है.

वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति और सेना के सामने उपस्थित चुनौतियों की समीक्षा करते हुए रक्षा मंत्री ने रेखांकित किया कि ‘मिश्रित युद्ध समेत अपरंपरागत और विषम लड़ाई भविष्य के परंपरागत युद्धों का हिस्सा होगी. साइबर, सूचना, संचार, व्यापार एवं वित्त भी भविष्य के संघर्षों के अभिन्न भाग हो चुके हैं. ऐसे में सशस्त्र सेनाओं को योजनाएं और रणनीतियां बनाते समय इन सभी आयामों का संज्ञान लेना होगा.

’ आज अनेक चुनौतियां देश के रक्षा नेतृत्व के सामने हैं, जिनमें प्रमुख हैं- कोविड महामारी और अर्थव्यवस्था पर उसके असर के संदर्भ में रक्षा आवंटन, यूक्रेन में युद्ध से रूस से होनेवाली सैन्य आपूर्ति में बाधा, सेना की युद्ध क्षमता में आत्मनिर्भरता पर जोर देने का असर तथा चीन का उदय और लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसका अतिक्रमण.

हालांकि प्रेस विज्ञप्ति में चीन का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन देश की ‘उत्तरी सीमाओं’ के संदर्भ में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी उल्लिखित है, जो इस प्रकार है- ‘उत्तरी सीमाओं पर वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए रक्षा मंत्री ने पूरा भरोसा जताया कि हमारी टुकड़ियां मुस्तैदी से जुटी हुई हैं, शांतिपूर्ण समाधान के लिए चल रही वार्ताएं जारी रहेंगी तथा तनातनी समाप्त करना और सैनिकों को पीछे हटाना ही उपाय हैं.’

जून, 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति के बारे में कोई विवरण सरकार की ओर से जारी नहीं किया है तथा देश को यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि यह मामला एक जटिल व विवादित विषय है, लेकिन नियंत्रण में है. सीमा पर गतिरोध की स्थिति बनी हुई है. कई दौर की वार्ताओं के बावजूद चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा/पैंगोंग झील से पीछे नहीं हटी है, जिसका उसने अतिक्रमण किया है. इसका परिणाम यह है कि भारतीय सेना दावेदारी की सीमा तक गश्त नहीं लगा पा रही है, जैसा कि वह गलवान की घटना से पहले किया करती थी.

प्रारंभ में उल्लिखित संरचनात्मक चुनौतियों को देखते हुए सेना के लिए सबसे अहम पहलू है अपनी युद्ध क्षमता को अधिकाधिक स्तर तक बनाये रखना. सेना को आधुनिकीकरण और आयुध खरीद की प्रक्रिया को लगातार जारी रखने की जरूरत है. इस संबंध में खामियों को मई, 2016 में खंडूरी संसदीय समिति ने रेखांकित करते हुए कहा था- ‘हम चिंता के साथ यह उल्लेख कर रहे हैं कि सेना व्यापक तौर पर पुराने साजो-सामान का इस्तेमाल कर रही है.

साथ ही, वाहनों, छोटे हथियारों, इंफैंट्री के लिए विशेष हथियारों, निगरानी के लिए जरूरी सामानों, संचार उपकरणों, राडारों, बिजली के उपकरण और जेनेरेटरों आदि की कमी है. चूंकि रक्षा बजट में पूंजी खर्च के लिए आवंटन (इससे हथियारों की खरीद होती है) में धीरे-धीरे कमी हो रही है, तो सेना अपनी युद्धक क्षमता के लिए भंडारित साजो-सामान पर निर्भर है, जो जल्दी ही अनुपयोगी हो जायेंगे.

ऐसा नहीं लगता है कि इस कमी को पूरा करने पर समुचित ध्यान दिया गया है. नयी खरीद और आधुनिकीकरण के लिए सीमित आवंटन की चुनौती रूस से आपूर्ति बाधित होने से अधिक गंभीर हो गयी है. किसी भी सेना के लिए कल-पूर्जे और अपग्रेड बहुत अहम होते हैं. अब रूस वैसा भरोसेमंद आपूर्ति करनेवाला देश नहीं रहा, जो वह पहले हुआ करता था. यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और अन्य देशों द्वारा रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों से भारत के लिए लेन-देन करना और अधिक मुश्किल हो जायेगा.

स्थानीय स्तर पर साजो-सामान बनाने पर जोर इससे जुड़ा हुआ है. इस संबंध में रक्षा मंत्री ने रेखांकित किया है कि ‘आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के तहत सेना द्वारा 2021-22 में 40 हजार करोड़ रुपये के ठेके भारतीयों को दिये गये हैं, जो प्रशंसनीय है.’ बहरहाल, सेना की युद्ध क्षमता पर इन सभी चुनौतियों के असर का समुचित आकलन करने की आवश्यकता है. जब एक मई को जेनरल पांडे कमान संभालेंगे, तो उनके सामने मुश्किल भरा काम होगा.

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