Bangladesh: बांग्लादेश में अगस्त के पहले सप्ताह से शुरू हुई राजनीतिक अस्थिरता का सबसे अधिक असर हिंदू एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर पड़ा है. कई जगहों पर उनके घरों, दुकानों और पूजा स्थलों में तोड़फोड़ हुई है तथा कई लोग गंभीर से घायल भी हुए हैं. कुछ लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. बांग्लादेश के एक प्रमुख अखबार ‘द डेली स्टार’ ने रिपोर्ट दी है कि अल्पसंख्यक समुदायों के कम से कम 49 शिक्षकों को जबरन इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया है. प्रभावित शिक्षकों में कई महिलाएं और अनुभवी लोग हैं.
उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और उसके प्रमुख मुहम्मद यूनुस द्वारा बार बार यह आश्वासन दिया गया है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जायेगी. लेकिन हकीकत में ऐसी कोई कोशिश नहीं की जा रही है. बीते एक माह में भारत से जुड़े स्मारकों, संग्रहालयों और प्रतीकों को भी निशाना बनाया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे तौर पर यूनुस से कहा था कि हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की समुचित सुरक्षा होनी चाहिए. बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल उसका आंतरिक मामला है, पर धार्मिक या अन्य किसी पहचान के आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव और हिंसा को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. पड़ोसी देश होने के नाते भारत भी वहां की घटनाओं से प्रभावित हो सकता है. अतीत में ऐसे अनेक उदाहरण हैं.
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए भारत का ऐतिहासिक हस्तक्षेप पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान पर भयावह दमन और अत्याचार से उत्पन्न शरणार्थी संकट का परिणाम था. फिर से उस दौर को दोहराया नहीं जाना चाहिए. यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भी उत्तरदायित्व है कि वह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार का प्रतिकार करे. यह सराहनीय है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय हालात का जायजा लेने के लिए एक जांच दल भेज रहा है. उम्मीद है कि बांग्लादेश शासन इस दल को बिना रोक-टोक अपना काम करने देगा. हिंसा, हमले, जबरिया काम से हटाने आदि जैसी हरकतें बांग्लादेश को पतन के कगार पर धकेल सकती हैं.
उल्लेखनीय है कि कपड़ा उद्योग वहां की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार है. राजनीतिक अस्थिरता और व्यापक हिंसा के कारण यह उद्योग आज संकट में है. ऐसा माना जा रहा है कि बहुत से उद्योग और उद्यम भारत में स्थानांतरित हो सकते हैं. अगर ऐसा हुआ, तो आर्थिक प्रगति की राह बाधित हो जायेगी. दो माह में बांग्लादेश में एक हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. दंगे-फसाद की वारदातें अभी भी हो रही हैं. विभिन्न रिपोर्टों में रेखांकित किया गया है कि कट्टरपंथी और भारत-विरोधी तत्व अस्थिरता को कायम रखना चाहते हैं, ताकि वे अपने स्वार्थ साध सकें.