जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, गुजरात को सरकार से खूब मिला है. साल 2002 के सांप्रदायिक दंगों के बाद जो राज्य चर्चित हो गया था, वह अब समृद्ध है और भारत का पसंदीदा निवेश गंतव्य है. बीते सप्ताह खबर आयी कि हाल का सबसे बड़ा निवेश महाराष्ट्र के बजाय गुजरात जायेगा. वेदांता लिमिटेड और ताइवान की फॉक्सकॉन कंपनी गुजरात में 1.54 लाख करोड़ रुपये की लागत से एक सेमीकंडक्टर परियोजना स्थापित करेंगी.
क्या गुजरात की बहुप्रचारित समृद्धि मोदी के पक्षपात का एक संकेत है? या फिर इतिहास में वे सबक छुपे हैं, जो स्वतंत्रता के बाद के पाठ्यक्रम में गुम हो गये, जब उत्तर और मध्य भारत के प्रांतों को प्राथमिकता मिली? वर्ष 1960 में महाराष्ट्र से अलग कर भाषाई आधार पर प्रांत बने आधुनिक गुजरात को सरदार पटेल के करीबी सहयोगी केएम मुंशी ने उभारा, जिनके ठोस तर्कों के बिना आज का गुजरात गुजराती पहचान से गौरवान्वित नहीं होता.
इसकी सांस्कृतिक एकता को राजनीतिक वास्तविकता से जोड़ने की दृष्टि चालुक्य शासकों ने दी, जिन्होंने 600 साल से अधिक समय तक राज किया था. मुंशी ने राज्य को बड़े भाषिक दायरे के रूप में देखा, जहां आधुनिक गुजराती बोली जाती है. देश के अधिकांश हिस्सों की तरह गुजरात के हिंदू समाज में भी ऐतिहासिक बदलाव इस्लामिक आक्रांताओं और औपनिवेशिक शक्तियों के द्वारा हुआ, जिन्हें क्षेत्र के संसाधनों का खूब लाभ मिला.
इससे गुजरात के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के मुंशी के आह्वान को आधार मिला, जिसे मोदी अब भारत के आर्थिक पुनर्जागरण के आधार के रूप में देखते हैं. समकालीन गुजराती का जन्म आक्रांताओं के विरुद्ध बदला है, जिसकी नींव सोमनाथ में रखी गयी थी. अपने गृह राज्य के प्रति मोदी का झुकाव राज्य के गौरवशाली अतीत की पुनर्स्थापना का ही विस्तार है, क्योंकि प्रधानमंत्री भविष्य में रहते हैं, जहां अतीत के अनुसार भूल सुधार होता है.
राष्ट्रगान में महाराष्ट्र से पहले गुजरात आना वाचिक संयोग हो सकता है, पर मोदी के लिए यह निवेश ‘सेमीकंडक्टर बनाने की भारत की महत्वाकांक्षाओं को आगे ले जाने में एक अहम कदम है. इस साल के विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र पटेल भाजपा का नेतृत्व करेंगे. वह जीत गुजरात के इस सदी के सबसे प्रसिद्ध पुत्र के समर्थन के साथ-साथ पार्टी का भी समर्थन होगी.
लेकिन आलोचना के घेरे में वेदांता समूह के प्रमुख अनिल अग्रवाल आये, जिन्होंने कहा कि गुजरात के चयन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. शरद पवार के करीबी माने जाने वाले इस खरबपति का बयान अहम है. उन्होंने सब फॉक्सकॉन पर मढ़ दिया, पर लोग इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. आज की शक्ति संरचना में भारतीय कॉरपोरेट निवेश के लिए सुरक्षित जगह चाहते हैं और गुजरात वह जगह है.
अपने गृह राज्य को बढ़ावा देने के लिए अन्य प्रधानमंत्रियों से उलट मोदी को कोई पछतावा नहीं है. कारोबार समर्थक और तकनीक प्रेमी मोदी अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि से भावनात्मक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं. बीते तीन साल में वे 25 बार गुजरात गये हैं, लेकिन उन्होंने उत्तर प्रदेश की भी अनदेखी नहीं की है, जहां से वे दो बार सांसद बने हैं. वे 67 बार उत्तर प्रदेश गये हैं. यह दूसरा राज्य है, जिसे सर्वाधिक केंद्रीय सहायता मिलती है.
मोदी इसे लेकर स्पष्ट हैं कि इन दो राज्यों के कारण उनका उभार हुआ है और वे क्षेत्रीय पक्षपात की आलोचनाओं की भी परवाह नहीं करते. कभी ‘ग’ से गांधी परिवार होता था, पर अब यह गुजरात को इंगित करता है. अधिकतर संवेदनशील पदों पर गुजरात काडर के या गुजराती अधिकारी हैं. अधिकतर बड़ी परियोजनाएं गुजरात से जुड़े लोगों को मिली हैं.
गुजरात में मोदी 12 वर्षों तक लगातार मुख्यमंत्री रहे. यह विडंबना ही है कि बीते आठ सालों में वहां चार मुख्यमंत्री हो चुके हैं. मोदी की तरह किसी अन्य प्रधानमंत्री ने अपनी जड़ों के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता नहीं दिखायी. इंदिरा गांधी 17 साल पद पर रही थीं, पर मोदी को अभी लंबा रास्ता तय करना है. पंडित नेहरू भी 17 साल प्रधानमंत्री रहे थे. राजीव गांधी समेत गांधी परिवार सत्ता में चार दशक से अधिक समय तक रहा है.
ये सभी उत्तर प्रदेश से निर्वाचित थे, पर राज्य को बीमारू होने का दर्जा मिला. इनके साथ-साथ चरण सिंह और चंद्रशेखर जैसे प्रधानमंत्रियों के क्षेत्र पिछड़ेपन से उबरने के लिए अभी भी संघर्षरत हैं. लगभग छह दशक से भारत के सबसे बड़े राज्य की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से नीचे बनी हुई है. मोदी के आने के बाद ही वहां विकास होना शुरू हुआ है. अपनी राष्ट्रीय छवि पर निर्भर भारतीय प्रधानमंत्रियों ने अपने गृह राज्यों की बड़ी अनदेखी की है.
नरसिम्हा राव, जो आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे थे, ने अपने राज्य का बहुत कम समर्थन किया. आर्थिक सुधारों के सूत्रधार मनमोहन सिंह असम से जुड़े हुए नहीं थे, जहां से वे तीन बार राज्यसभा के लिए चुने गये. लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु भी अपने राज्य की बेहतरी के बजाय अपने करिश्मे में ही संतुष्ट थे. मोरारजी देसाई, पहले गुजराती प्रधानमंत्री, ने भी गृह राज्य को लेकर उत्साह नहीं दिखाया. एकमात्र अपवाद ओडिशा के नवीन पटनायक हैं, जिन्होंने अपने राज्य को गरीबी से निकाल कर अच्छे शासन वाले राज्यों की श्रेणी में ला दिया है.
मोदी ने यह सुनिश्चित किया है कि साबरमती के तट पर नये भारत की विकास गाथा लिखी जानी चाहिए. उनके मंत्री अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात अधिक जाते हैं. भारतीय जनसंख्या में गुजरात का हिस्सा पांच फीसदी से भी कम है, पर जीडीपी में उसका योगदान लगभग 10 फीसदी है. साल 1995 में भाजपा के सत्ता में आने के पहले से ही यह देश के बाकी हिस्सों से अधिक गति से विकासशील रहा है. मोदी के दौर में वह निवेश के लिए एकल खिड़की केंद्र बन गया था.
मोदी सरकार निवेशक के लौटने से पहले ही उसके प्रस्ताव को मंजूरी दे देती थी. मोदी को बड़े आंकड़े पसंद हैं. दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति- सरदार पटेल की मूर्ति- गुजरात में है. मोदी नर्मदा के पानी को गुजरात ले आये. अब उनका सपना गुजरात को सुशासन का वैश्विक मॉडल बनाना है. यह अभी विदेशी निवेश और जीडीपी दर में तीसरे स्थान पर है. प्रधानमंत्री इसे पहले पायदान पर लाना चाहते हैं. मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी की शक्ति और उसके भय को पूरी तरह समझते हैं. जो पहले उन्हें आलोचक दृष्टि से देखते थे, वे अब आदर से उनकी प्रशंसा करते हैं.