मोहन राकेश, जिन्होंने नाटकों की दुनिया बदल दी

Mohan Rakesh : हिंदी की कहानियों और उपन्यासों के क्षेत्र में उनका योगदान इसके अतिरिक्त है. वर्ष 1925 में आठ जनवरी को वे अमृतसर में एक सिंधी मूल के परिवार में पैदा हुए, तो माता-पिता ने उन्हें मदन मोहन गुगलानी नाम दिया, जिसे बाद में उन्होंने मोहन राकेश में बदल दिया.

By कृष्ण प्रताप सिंह | January 8, 2025 6:45 AM

Mohan Rakesh Birth Anniversary : मोहन राकेश : एक बहुप्रचारित विज्ञापन के शब्द उधार लेकर कहें, तो ‘बस, नाम ही काफी है.’ हिंदी के नाटकों, रंगमंच, कहानियों और उपन्यासों की दुनिया में उनका दखल था ही कुछ ऐसा अनूठा और अलबेला. इसलिए आज की बदली हुई स्थितियों में भी, जब समूचे हिंदी साहित्य, खासकर उसके नाटकों और रंगमंच का हाल बहुत अच्छा नहीं रह गया है, मोहन राकेश किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. बावजूद इसके कि नियति ने उम्र के मायने में उनके साथ बड़ा अन्याय किया. जाहिर है कि वे लंबा जीवन पाते, तो हिंदी को जाने कितनी और मूल्यवान कृतियां दे जाते.


एक तरह से यह भी कुछ कम नहीं कि उनके इस संसार में रहते ही उनके नाटकों ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘आधे अधूरे’ और ‘लहरों के राजहंस’ वगैरह की ऐसी धूम मची कि आलोचकों को घोषणा करनी पड़ी कि हिंदी नाटकों में भारतेंदु हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद के बाद का युग मोहन राकेश का है. इनमें राकेश के नाम को इस लिहाज से अलग से रेखांकित किया जा सकता है कि उन्होंने न केवल नाटक लिखे, बल्कि उन्हें रंगमंच पर उतारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर जैसे उनकी दुनिया ही बदल दी. कई आलोचकों का तो यहां तक कहना है कि उनके नाटकों ने पहली बार हिंदी को अखिल भारतीय स्तर प्रदान किया और उसके अलग-थलग प्रवाह को विश्व नाटक की सामान्य धारा की ओर मोड़ा.

हिंदी की कहानियों और उपन्यासों के क्षेत्र में उनका योगदान इसके अतिरिक्त है. वर्ष 1925 में आठ जनवरी को वे अमृतसर में एक सिंधी मूल के परिवार में पैदा हुए, तो माता-पिता ने उन्हें मदन मोहन गुगलानी नाम दिया, जिसे बाद में उन्होंने मोहन राकेश में बदल दिया. उनके पिता कर्मचंद उनके जन्म से बहुत पहले ही सिंध छोड़ पंजाब में आ बसे थे. पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी और अंग्रेजी में एमए की डिग्री हासिल कर मदन मोहन गुगलानी ने जीविका के लिए अध्यापन का पेशा चुना. अनंतर, पढ़ते और पढ़ाते हुए वे उन दिनों हिंदी में चल रहे नयी कहानी आंदोलन के प्रति आकर्षित हुए और जल्दी ही मोहन राकेश नाम से महत्वपूर्ण कथाकार माने जाने लगे. बाद में नाटकों के क्षेत्र में हाथ आजमाये, तो लगा जैसे मील के कई पत्थर उन्हीं की प्रतीक्षा में थे.


इसे उनकी कलम का जादू ही कहेंगे कि उनकी डायरी प्रकाशित हुई, तो उसे भी हिंदी में इस विधा की सबसे अच्छी कृतियों में एक माना गया. माना भी क्यों नहीं जाता, साहित्य सृजन के प्रति वे इतने समर्पित थे कि अपनी हर सुबह उसके लिए अर्पित करना चाहते थे और जब भी किसी कारण ऐसा नहीं कर पाते, उद्विग्न हो जाते थे, परंतु उन्हें केवल उनके नाटकों, उपन्यासों, कहानियों और डायरी के लिए ही नहीं जाना जाता, उनके फक्कड़, मस्तमौला व यारबाश स्वभाव और जीवन के प्रति सहज दृष्टिकोण के लिए भी जाना जाता है. उनके फक्कड़पने की एक बड़ी मिसाल यह है कि इलाहाबाद में अपनी पहली शादी के लिए वे कोई बारात ही नहीं ले गये. दूसरी शादी में भी किसी को नहीं बुलाया. क्या पता, उनके ऐसे असामान्य बर्ताव के चलते या किसी और कारण, ये दोनों शादियां नहीं निभीं. फिर उन्होंने अपनी प्रशंसिका चंद्रा मोहन की बेटी अनीता औलख से तीसरी शादी की, तो उनसे भी बहुत सहज रिश्ते नहीं रहे. एक दिन जानें किस रौ में उन्होंने अनीता से यहां तक कह दिया कि उनके जीवन में पहले नंबर पर उनका लेखन है, दूसरे पर उनके दोस्त और पत्नी तीसरे पर.

किसी भी पत्नी के लिए इसे स्वीकार करना कठिन होता, पर अनीता ने मन मारकर अपने तीसरे नंबर को स्वीकार कर लिया, तो भी उनके जीवन में राकेश की उपस्थिति लंबी नहीं हो सकी. महज 46 वर्ष की उम्र में राकेश के असमय निधन ने दोनों को हमेशा-हमेशा के लिए विलग कर दिया और उनका दांपत्य जीवन महज नौ वर्ष लंबा ही हो पाया.


वह तीन दिसंबर, 1972 की तारीख थी, जब मोहन राकेश को खोकर अनीता ही नहीं, समूचा हिंदी जगत बहुत उदास हुआ. उन दिनों राकेश अपना आखिरी नाटक ‘पैर तले की जमीन’ लिख रहे थे. मौत ने उन्हें उसे अधूरा छोड़ जाने को विवश कर दिया, तो बाद में उनके अभिन्न मित्र कमलेश्वर ने उसे पूरा किया. जीवन की विपरीत स्थितियों में भी उनके फक्कड़पन का आलम यह था कि वे अपना त्यागपत्र जेब में रखे रहते थे. इसीलिए वे अपने वक्त की मशहूर कथा पत्रिका ‘सारिका’ के संपादक बने, तो मात्र 11 महीने अपने पद पर रह पाये. इससे भी बड़ी बात यह कि अपने फक्कड़पन को लेकर उनके भीतर कोई ग्रंथि नहीं थी. उल्टे वे उसे लेकर गौरव-बोध से भरे रहते थे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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