मौद्रिक समीक्षा में विकास पर जोर, पढ़ें सतीश सिंह का खास लेख
Monetary Policy : हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर से बहुत ऊपर है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओइसीडी) के अनुसार, 2024 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही और 2025 में यह 3.3 फीसदी रह सकती है.
Monetary Policy : भारतीय रिजर्व बैंक ने सात फरवरी को की गयी मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है, जिससे यह 6.50 प्रतिशत से घटकर 6.25 फीसदी के स्तर पर आ गयी. करीब पांच साल बाद रेपो दर में कटौती की गयी है. महंगाई के कारण केंद्रीय बैंक अभी तक रेपो दर में कटौती से परहेज कर रहा था. फिलवक्त विभिन्न कारणों से बाजार में अस्थिरता बनी हुई है. साथ ही, विगत दो तिमाहियों में जीडीपी की धीमी गति को देखते हुए सरकार के लिए विकास को बढ़ावा देना जरूरी है. इसलिए, बजट में भी निवेश, बचत और खपत बढ़ाने पर जोर दिया गया है, क्योंकि इनमें तेजी लाकर ही आर्थिक गतिविधियों में तेजी लायी जा सकती है.
विगत दिसंबर में खुदरा महंगाई घटकर 5.22 प्रतिशत रह गयी, जो चार महीनों का निचला स्तर है. उससे पहले नवंबर में महंगाई दर 5.48 फीसदी के स्तर पर थी. महंगाई के बास्केट में करीब 50 प्रतिशत योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है. इनकी महंगाई महीने दर महीने आधार पर 9.04 फीसदी से घटकर 8.39 फीसदी के स्तर पर आ गयी, वहीं ग्रामीण महंगाई 5.95 फीसदी से घटकर 5.76 फीसदी और शहरी महंगाई 4.89 फीसदी से घटकर 4.58 फीसदी के स्तर पर आ गयी है. गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने पिछले महीने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए महंगाई के अनुमान को 4.8 प्रतिशत कर दिया था, जबकि इसके पहले केंद्रीय बैंक ने इसे 4.5 प्रतिशत के स्तर पर रहने का अनुमान जताया था. बहरहाल, वित्त वर्ष 2025 और 2026 में महंगाई के रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सहनशीलता सीमा के अंदर रहने के आसार हैं.
गौरतलब है कि क्रयशक्ति निर्धारित करने में मुद्रास्फीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मुद्रास्फीति बढ़ने पर वस्तु एवं सेवा की कीमत बढ़ती है, जिससे व्यक्ति की खरीदारी क्षमता कम हो जाती है और वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है. फिर, उनकी बिक्री कम होती है, उनके उत्पादन में कमी आती है, कंपनी को घाटा होता है, कामगारों की छंटनी होती है, रोजगार सृजन में कमी आती है, आदि-आदि. फलत: आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ जाती हैं एवं विकास की गति बाधित होती है. ऐसे में, यह कहना समीचीन होगा कि महंगाई कम करने से ही विकास की गाड़ी तेज गति से आगे बढ़ सकती है.
हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर से बहुत ऊपर है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओइसीडी) के अनुसार, 2024 में वैश्विक जीडीपी वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत रही और 2025 में यह 3.3 फीसदी रह सकती है. वहीं आइएमएफ के मुताबिक, वैश्विक अर्थव्यवस्था 2024 में 3.1 फीसदी और 2025 में 3.2 फीसदी की दर से आगे बढ़ सकती है. चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चीन की जीडीपी वृद्धि दर 4.6 फीसदी रही, जबकि जापान में यह वृद्धि दर 0.9 फीसदी रही. आइएमएफ के अनुसार, इंग्लैंड में विकास दर 2024 में 1.1 फीसदी और 2025 में 1.5 फीसदी, तो जर्मनी में 2024 में विकास दर के -0.1 फीसदी और 2025 में 0.7 फीसदी रहने का अनुमान है.
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका से भी भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है. वित्त वर्ष 2024 में अमेरिका में विकास दर के 2.7 फीसदी और 2025 में 2.0 फीसदी रहने का अनुमान है. देश में पिछले दो सालों में 14 से 16 प्रतिशत के बीच की ऋण वृद्धि रहने के बाद समग्र क्रेडिट ग्रोथ बीते कुछ महीनों से धीमी हो रही है और दिसंबर, 2024 में यह घटकर 11.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी. इसका एक बड़ा कारण उधारी दर का महंगा होना है. बैंकों के पास सस्ती पूंजी नहीं है, इसलिए वे महंगी दर पर ऋण देने के लिए मजबूर हैं, जबकि आम जन और कारोबारी ऋण लेने से बच रहे हैं. इस कारण कंपनियों के पास पूंजी की कमी है, जिससे वे पूरी क्षमता के साथ उत्पादन नहीं कर पा रहीं.
रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में 0.25 फीसदी की कटौती करने से बैंकों को सस्ती दर पर पूंजी मिलेगी और वे सस्ती दर पर ऋण दे सकेंगे, और जब सस्ती दर पर कर्ज मिलेगा, तब आम जन और कारोबारी ऋण लेंगे, जिससे निवेश और बचत में तेजी आयेगी, खपत बढ़ेगी, साथ ही, आर्थिक गतिविधियों में भी वृद्धि होगी. साफ है कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए रेपो दर में कटौती करना जरूरी हो गया था. वैसे, महंगाई अभी सहनशीलता सीमा के अंदर है. बजट में सरकार ने साफ तौर पर बता दिया है कि उसका मकसद विकास को गति देना है. हालांकि, दो तिमाहियों में जीडीपी वृद्धि दर के कम होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और इसकी विकास दर विकसित देशों से भी अधिक है. बावजूद इसके 2047 तक विकसित देश बनने के लिए विकास दर में तेजी लाना जरूरी है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीडीपी वृद्धि दर कम से कम आठ से नौ प्रतिशत होनी चाहिए. लगातार यह वृद्धि दर बनाये रखना आसान नहीं है, पर अगर महंगाई कम रहे तथा मांग में तेजी का माहौल बना रहे और कर्ज की मांग बनी रहे, तो भारत के लिए 2047 तक अपने लक्ष्य तक पहुंचना बहुत मुश्किल नहीं होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)