कौशल किशोर
निदेशक, आइसीडीएस बिहार
dir.icds-bih@nic.in
हर साल एक से सात अगस्त तक मनाया जाने वाला विश्व स्तनपान सप्ताह एक वैश्विक अभियान है, जो स्तनपान की सुरक्षा, प्रचार और समर्थन की वकालत करता है. इस वर्ष विश्व स्तनपान सप्ताह का थीम – ‘एनेबलिंग ब्रेस्ट-फीडिंग : मेकिंग अ डिफरेंस फॉर वर्किंग पेरेंट्स’ है. स्तनपान एक बच्चे के जीवन की सबसे अच्छी शुरुआत है, क्योंकि यह बच्चों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के अलावा उनकी प्रतिरक्षा बढ़ाता है, जिससे अंततः मृत्यु दर में कमी आती है.
गर्भधारण से लेकर जन्म के बाद दो साल तक के शुरुआती 1000 दिन बच्चे की वृद्धि और विकास के लिए मौलिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं. पहले छह महीनों में केवल स्तनपान कराने से बच्चे का तेजी से शारीरिक एवं मस्तिष्क विकास सुनिश्चित होता है. अकेले स्तनपान से नवजात शिशु मृत्यु दर में 22% की कमी आती है और पहले छह महीनों के दौरान वजन और लंबाई में भी उल्लेखनीय वृद्धि होती है. अमूमन, शुरुआती तीन महीनों के भीतर वजन में औसतन एक किलोग्राम और लंबाई में 2-4 सेमी की वृद्धि होती है.
इसलिए, कम-से-कम दो साल तक स्तनपान जारी रखने सहित बच्चे को छह महीने पश्चात उचित पूरक आहार दिया जाना आवश्यक है. बिहार में 76% संस्थागत प्रसव और जन्म के 24 घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत संबंधी 81% का आंकड़ा उत्साहवर्धक है, लेकिन सिर्फ 31% शिशुओं को जन्म के पहले घंटे के भीतर स्तनपान करवाना और मात्र 58% बच्चों को पहले छह महीनों तक केवल स्तनपान का लाभ मिलना चिंताजनक है. राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार, बिहार में छह महीने से कम उम्र के 19% शिशु छोटे कद के और 31% अपनी उम्र के हिसाब से दुबले पाये गये.
स्तनपान के विविध लाभों और उचित तकनीकों के बारे में अज्ञानता के कारण माता-पिता चीनी सिरप, पशु दूध और फॉर्मूला मिल्क पाउडर जैसे हानिकारक विकल्पों का सहारा लेते हैं. विशेष रूप से पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को अपने बच्चों को बेहतर ढंग से स्तनपान कराने के लिए पोजिशनिंग और लैचिंग तकनीक के मामले में महत्वपूर्ण सहायता की आवश्यकता होती है.
मां के दूध के हानिकारक विकल्पों का विज्ञापनों के जरिए आक्रामक प्रचार-प्रसार और मार्केटिंग एक और महत्वपूर्ण चुनौती है. कुछ अभिभावक, डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवा प्रदाता माताओं को सहयोग और मार्गदर्शन देने के बजाय फॉर्मूला फीडिंग का विकल्प सुझाते हैं. इसके अतिरिक्त, अन्य जिम्मेदारियों के कारण समय की कमी महसूस करने वाली माताएं वैकल्पिक दूध और अपने बच्चे को बोतल से दूध पिलाने का विकल्प चुनने को बाध्य हैं.
हालांकि, वैज्ञानिक शोधों द्वारा यह स्थापित किया गया है कि मां के दूध को फॉर्मूला-आधारित विकल्पों से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है और बोतल से दूध पिलाने पर संक्रमण के साथ-साथ बच्चे के समग्र विकास में बाधा आ सकती है. वर्तमान में बिहार में दो महीने के बच्चों को बोतल से दूध पिलाने की दर 9.5% है, जो दो साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लगभग 20% हो जाती है. हालिया वर्षों में, एडवोकेसी प्रयासों की बदौलत कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान-अनुकूल कक्षों की स्थापना हुई है.
साथ ही, कामकाजी महिलाओं और पुरुष कर्मचारियों के लिए क्रमशः 26 सप्ताह के सवैतनिक मातृत्व अवकाश एवं 15 दिनों के पितृत्व अवकाश के सरकारी प्रावधान से भी सहयोग मिला है. मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत पचास या अधिक कर्मचारियों वाले सभी प्रतिष्ठानों में क्रेच सुविधा का प्रावधान करना अनिवार्य होने के बाद, बिहार सरकार ने विभिन्न स्थानों पर क्रेच सुविधाएं शुरू करने के लिए जरूरी कदम उठाये हैं. इन उपायों को निजी और असंगठित क्षेत्रों में भी लागू करना महत्वपूर्ण है.
इस वर्ष का थीम अनुकूल कार्यस्थल नीतियों के महत्व को रेखांकित करने के अलावा स्तनपान सुनिश्चित करने हेतु माता-पिता, विशेषकर पिता की भूमिका पर जोर देता है. स्तनपान के लिए एक अनुकूल वातावरण की जरूरत कार्यस्थल से कहीं पहले घर से शुरू होती है. बिहार में आंगनवाड़ी सेविकाओं, एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं का एक मजबूत नेटवर्क गर्भवती महिलाओं को देखभाल प्रदान करने के साथ-साथ स्तनपान कराने वाली माताओं, उनके पतियों और देखभाल करने वालों को इसके लाभों के बारे में जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
वैकल्पिक दूध और बोतल से दूध पिलाने के हानिकारक चलन का संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार जागरूकता बढ़ाने, पारिवारिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने और बच्चे के उचित पोषण के अधिकार की रक्षा के लिए ‘बोतल के दूध से मुक्ति के लिए अभियान’ शुरू कर रही है. स्तनपान के लिए सहयोग को प्राथमिकता देना एक समावेशी और समृद्ध समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देता है. ऐसा कर हम स्वस्थ और संपन्न पीढ़ियों की नींव रख सकते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं)