18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मुंबई का प्रदूषण और शहरों के लिए सबक

मुंबई को एक ऐसा शहर कहा जाता है जो कभी नहीं सोता. इस शहर में लगातार कंस्ट्रक्शन चलता रहता है. यहां रियल एस्टेट परियोजनाओं के अलावा, मेट्रो और कोस्ट रोड जैसी बुनियादी क्षेत्र की तमाम परियोजनाओं से जुड़ा कुछ-न-कुछ काम चलता ही रहता है.

भारत की राजधानी दिल्ली के वायु प्रदूषण की चर्चा तो अक्सर होती है, मगर पिछले दिनों देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में प्रदूषण की समस्या सुर्खियोंं में रही. पिछले कुछ समय में कुछ दिन ऐसे भी रहे जब मुंबई में प्रदूषण का स्तर दिल्ली से भी ऊपर चला गया. दुनिया के 109 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की निगरानी करने वाली एक स्विस कंपनी आईक्यूएयर के इंडेक्स में पिछले सप्ताह सोमवार को मुंबई दुनिया का दूसरा और दिल्ली छठा प्रदूषित शहर था. हालांकि, इस सप्ताह सोमवार को दिल्ली तीसरे और मुंबई पांचवें नंबर पर आ गया है. दिल्ली से अलग, मुंबई के इस लिस्ट में शामिल होने से थोड़ी हैरानी होती है क्योंकि वह समुद्र तट पर है जहां हवा बहती है.

बहरहाल, इस बार मुंबई में भी प्रदूषण बढ़ने के बाद वहां की बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने दिल्ली की तरह आपात प्रबंध किए. इनमें ऐंटी-स्मॉग गन लगाना, कंस्ट्रक्शन स्थलों को और मलबे ले जाते वाहनों को ढकना अनिवार्य करना और उनकी सख्त निगरानी के लिए सीसीटीवी का इस्तेमाल जैसे उपाय शामिल हैं. हालांकि, मुंबई में पिछले साल भी ठंड के मौसम में यह संकट आया था जिसके बाद इस वर्ष मार्च में बीएमसी ने मुंबई में प्रदूषण से निबटने के लिए एक प्लान जारी किया था. लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि उस प्लान में सुझाए उपायों का कितना पालन हुआ और वे कितने कारगर रहे. मुंबई को एक ऐसा शहर कहा जाता है जो कभी नहीं सोता. इस शहर में लगातार कंस्ट्रक्शन चलता रहता है.

यहां रियल एस्टेट परियोजनाओं के अलावा, मेट्रो और कोस्ट रोड जैसी बुनियादी क्षेत्र की तमाम परियोजनाओं से जुड़ा कुछ-न-कुछ काम चलता ही रहता है. मगर इस वास्तविकता को झुठलाया नहीं जा सकता कि इन विकास कार्यों की कीमत पर्यावरण और लोगों की सेहत को चुकानी पड़ रही है. दरअसल, इन निर्माण स्थलों से उड़नेवाली धूल में मुख्यतः पीएम2.5 और पीएम10 कण होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदेह होते हैं. पीएम2.5 यानी 2.5 माइक्रोमीटर के व्यास से छोटे आकार वाले कण खास तौर पर खतरनाक होते हैं जो ना केवल फेफड़ों में भीतर तक चले जाते हैं, बल्कि रक्त प्रवाह में भी प्रवेश कर जाते हैं. इससे श्वास संबंधी अस्थमा जैसी बीमारियां होती हैं, फेफड़ों के काम पर असर पड़ता है, और दिल का दौरा तक पड़ सकता है. पीएम10 कण थोड़े बड़े होते हैं, लेकिन वे भी फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं.

बीएमसी के अनुसार मुंबई में लगभग 6,000 कंस्ट्रक्शन साइट हैं, जिनकी असल संख्या और ज्यादा हो सकती है. इनमें से हरेक साइट प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है. प्रदूषण बढ़ने पर बीएमसी कड़ाई करती है और प्रदूषण तथा धूल को नियंत्रित करने के उपायों को अनिवार्य करती है, लेकिन ऐसे उपायों के प्रभावी होने को लेकर संदेह बना रहता है. रियल एस्टेट क्षेत्र के संदर्भ में, इस बात की सख्त जरूरत है कि मुंबई में तेज विकास की अपेक्षा जनस्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए. इसके लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए और उसका सख्ती से पालन होना चाहिए.

वैसे, जलवायु विशेषज्ञों का मत है कि मुंबई का प्रदूषण केवल मुंबई की वजह से ही जन्मा संकट नहीं है, बल्कि यह वैश्विक जलवायु की स्थिति से भी जुड़ा है. वे मौसम के ला नीना प्रभाव का नाम लेते हैं जिसके आने से हवा का रुख बदल जाता है, और निचले वायुमंडल में प्रदूषक तत्व लंबे समय तक फंसे रहते हैं. जलवायु प्रभावों को नियंत्रित करना तो संभव नहीं है, लेकिन इससे यह सबक मिलता है कि शहरों को ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए. मुंबई के प्रदूषण में कंस्ट्रक्शन स्थलों के अलावा दो और कारकों का योगदान रहता है- सड़कों की धूल और वाहन उत्सर्जन. निर्माण स्थलों से मलबों को लेकर जाते वाहनों से वायुमंडल में धूलकण फैलते हैं. इन वाहनों को तिरपाल आदि से ढकने जैसे उपाय सही दिशा में उठाये गये कदम हैं, लेकिन ये स्थायी समाधान नहीं हैं. वाहनों में स्वच्छ ईंधनों के इस्तेमाल और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना ज्यादा टिकाऊ हल हो सकते हैं. मुंबई में भी दिल्ली की तरह ऐंटी-स्मॉग गन और कोहरे को हटाने वाले कैनन तैनात किये गये, जिनसे ऐसा तो लगता है कि प्रदूषण के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है, लेकिन वैज्ञानिक प्रमाणों के बिना यह स्पष्ट नहीं होता कि वे कितने प्रभावी हैं.

मुंबई में प्रदूषण संकट की व्यापकता को देखते हुए एक एकीकृत रणनीति की जरूरत है. तमाम सरकारी विभागों और रियल एस्टेट क्षेत्र की संस्थाओं को मिलकर अपने संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए. अभी सबसे ज्यादा जरूरत है कि वाहनों से होने वाले प्रदूषण के मानकों का कड़ाई से पालन हो, शहरी विकास की योजनाएं पर्यावरण के अनुकूल हों, वन क्षेत्रों की वृद्धि के अभियान चलाए जाएं, और जन जागरूकता के लिए संसाधनों का समग्र तरीके से इस्तेमाल हो. प्रदूषण को लेकर हंगामा मचने के बाद प्रतिक्रियात्मक उपायों से कुछ समय के लिए राहत मिल सकती है, लेकिन एक स्वच्छ और टिकाऊ मुंबई के निर्माण के लिए हर विभाग में बढ़-चढ़कर प्रयास किये जाने चाहिए. मुंबई का वायु प्रदूषण संकट यह आगाह करता है कि शहरों के सतत विकास की सोच को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें