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सिख समुदाय से नरेंद्र मोदी का जुड़ाव

मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता दिवस के संबोधनों में सिख गुरुओं की शिक्षाओं को समाहित किया है. सिखों को मुख्यधारा में लाने के लिए उन्होंने विभिन्न राजनीतिक, प्रशासनिक और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी कदम उठाया है.

भारतीय लोकतंत्र के इंद्रधनुष में हरा और केसरिया जमीन पर परस्पर नहीं मिलते. इसका एकमात्र अपवाद राष्ट्रीय ध्वज है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो स्वयं को एक ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ के रूप में परिभाषित करते हैं, तथा अल्पसंख्यकों के बीच एक असहज संबंध है. यही कहानी केसरिया के अन्य रूप सिख धर्म के साथ है. स्वतंत्रता के बाद से संघ परिवार दिखावे के बर्ताव से अल्पसंख्यकों को भरोसे में लेने में बुरी तरह असफल रहा है.

हालांकि मोदी मुस्लिमों को रिझाने से परहेज करते हैं, पर वे सिख समुदाय को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी हिस्सेदारी मतदाता आबादी में एक प्रतिशत से भी कम है. दुनियाभर में सिख अहम राजनीतिक पदों पर हैं, सफल कारोबारी हैं तथा स्थानीय आख्यान को प्रभावित करते हैं. मोदी किंवदंती को आगे बढ़ाने में उनका कांग्रेस-विरोधी रुख उन्हें ताकतवर वैश्विक सहयोगी बनाता है. मोदी उनके साथ होने का कोई मौका नहीं छोड़ते, उनके लिए बोलते हैं तथा उनके दस गुरुओं, उनके बलिदानों और भारतीय विरासत में उनके योगदान की खूब प्रशंसा करते हैं.

कुछ दिन पहले गुरु नानक देव की जयंती के अवसर पर वे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा के निवास पर गये थे. इस पवित्र अवसर पर पंजाब, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों के कई अहम सिख नेता मौजूद थे. यह समुदाय से जुड़ने का ताकतवर मंच था. भले ही लालपुरा के निवास की दूरी पांच किलोमीटर थी, पर मोदी सदियों की दूरी पाट रहे थे.

उनका उद्देश्य सिखों के प्रति भारत में व्याप्त दुर्भावना को कम करना था तथा वे एक ठोस संदेश दे रहे थे कि उनके शासन का मॉडल इस सिद्धांत पर आधारित है कि बहुसंख्यक शासन को अल्पसंख्यकों के मुखर और भरोसेमंद हिस्से के समर्थन की दरकार है, जिनकी जड़ें भारत में हैं. वास्तव में, मोदी ने सिखों को भाजपा से जोड़ने के लिए एक राजनीतिक राह अपनायी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सिखों से सांस्कृतिक रूप से जुड़ने के लिए अपनी शाखाओं में सिख वीरता का उत्सव मनाने का तरीका अपनाया था.

गुरु गोबिंद सिंह हमेशा से संघ के राष्ट्रवादी विमर्श के अभिन्न अंग रहे हैं. लेकिन जो संघ हासिल नहीं कर सका, मोदी ने सिखों को संघ परिवार के साथ जोड़ने का काम अपने ऊपर ले लिया है. मोदी शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी पूर्व मंत्री हरसिमरत कौर के निवास पर होने वाले धार्मिक आयोजनों में जाते रहे हैं. शिरोमणि अकाली दल के एनडीए से अलग होने के बाद भी विशेष अवसरों पर मोदी पंजाब के प्रमुख गुरुद्वारों में जाते रहे हैं. मनमोहन सिंह से भी अधिक सिख प्रतिनिधि मंडलों की मेजबानी वे अपने आवास पर करते रहते हैं.

मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता दिवस के संबोधनों में सिख गुरुओं की शिक्षाओं को समाहित किया है. सिखों को मुख्यधारा में लाने के लिए उन्होंने विभिन्न राजनीतिक, प्रशासनिक और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी कदम उठाया है. भाजपा महासचिव के रूप में वे पंजाब, हिमाचल, हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर के प्रमुख सिख नेताओं से लगातार मिला करते थे. अपनी पहली ब्रिटेन यात्रा में उन्होंने वहां के सिख नेताओं से गंभीर बैठकें की थीं.

ऐसा करने वाले वे संभवतः पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे. चूंकि इंग्लैड को अतिवादियों की शरणस्थली माना जाता है, तो उन्होंने कथित खालिस्तान समर्थकों को भी आमंत्रित किया था. वर्ष 2019 में भारत सरकार ने बर्मिंघम विश्वविद्यालय में गुरु नानक देव के नाम से एक चेयर स्थापित करने के लिए कोष दिया था. मोदी सरकार ने ऐसा ही चेयर कनाडा में भी स्थापित करने का वादा किया है. सिख बौद्धिकों के लिए ऐसी पहल कर मोदी समावेशी सिख संस्कृति एवं आस्था को आगे बढ़ाना चाहते हैं.

मोदी ने संयुक्त राष्ट्र से सिख गुरुओं की शिक्षाओं के विदेशी भाषाओं में अनुवाद कराने के लिए कहा है. नवंबर, 2019 में उन्होंने डेरा बाबा नानक साहिब और लाहौर के निकट करतारपुर साहिब के बीच 4.5 किलोमीटर गलियारे के भारतीय हिस्से का उद्घाटन कर तथा तीर्थयात्रियों के लिए वीजा की बाध्यता समाप्त कर लंबे समय से हो रही मांग को पूरा किया.

वे वाजपेयी के प्रस्ताव को साकार कर रहे थे. उन्होंने कई परियोजनाओं का वादा किया है, जिनमें उत्तराखंड में हेमकुंड साहिब में रोपवे बनाना भी है. देशभर के सिख तीर्थयात्रियों के लिए अच्छी सुविधाएं देने का वादा भी किया गया है. उन्होंने अकादमिक संस्थाओं और परियोजनाओं का नामकरण सिख गुरुओं के नाम पर करने तथा उनकी जीवनी को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने का निर्देश भी दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने सिखों की आशंकाओं को दूर कई पहलें की हैं. गृह मंत्रालय ने बाहर रह रहे प्रतिबंधित सिखों की सूची को वापस ले लिया है. उन्हें वीजा नहीं दिया जाता था. यह सूची अस्सी के दशक में बनी थी और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उसमें कई नाम जोड़े गये थे. भाजपा सरकार ने पड़ोसी देशों के हिंदुओं और सिखों को नागरिकता देने का कानूनी प्रावधान किया है.

हालांकि यह कानून बांग्लादेश से भाग रहे हिंदुओं की रक्षा के लिए है, पर इससे तालिबान शासित अफगानिस्तान से आये सिखों को बड़ी राहत मिली है. पंजाब में बड़ी हार के बावजूद मोदी के प्रयासों में कमी नहीं आयी है. उनका लक्ष्य जीतने योग्य सिख नेताओं की पहचान करना है, जो कांग्रेस और अकाली दल के सिमटने से खाली हुई जगह भर सकते हैं.

भाजपा एक भरोसेमंद सिख नेतृत्व बनाना चाहती है ताकि प्रधानमंत्री के विरुद्ध पाकिस्तान और सेकुलर प्रचार का प्रतिरोध हो सके. पर अभी तक जमीनी समर्थन रखने वाला एक भी नेता नहीं मिल सका है. सेवानिवृत्त कूटनीतिक हरदीप पुरी भाजपा के एकमात्र सांकेतिक उपस्थिति हैं. पार्टी ने एक दर्जन से ज्यादा टिकट सिख उम्मीदवारों को नहीं दिया है. अकाली दल और कांग्रेस छोड़कर आये लोगों को ही जगह दी गयी. लालपुरा शायद भाजपा संसदीय बोर्ड के पहले सिख सदस्य हैं.

मोदी के प्रयासों का अभी राजनीतिक लाभ नहीं मिल सका है. उन्हें यह याद रखना होगा कि सिखों, जो एक बेहद प्रतिबद्ध और भावनात्मक समुदाय है, को फोटो खिंचाने या बड़े पदों से अधिक की आवश्यकता है. उन्हें इस नकारात्मक बतंगड़ को ध्वस्त करना होगा कि हिंदुत्व सिख पहचान को समाहित कर लेना चाहता है. शायद मुगल आक्रांताओं द्वारा दिये गये घावों के पीड़ित दोनों समुदाय संस्कृति एवं आस्था के एक संरक्षणात्मक छत्रछाया में आखिरकार एक हो सकेंगे. मिशन मोदी पांच नदियों के भूमि में एक वैश्विक लहर पैदाकर धारा को मोड़ रहे हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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