रोहित कौशिक, टिप्पणीकार
आमतौर पर हमारे समाज में डॉक्टरों को लेकर एक अजीब नकारात्मकता मौजूद रहती है. उनके खिलाफ अनेक धारणाओं में कुछ हद तक सच्चाई हो सकती है, लेकिन इनके आधार पर समूचे चिकित्सक जगत को बदनाम करना तर्कसंगत नहीं है. कई डॉक्टर समर्पण के साथ चिकित्सा सेवा प्रदान कर रहे हैं. हम सबका यह कर्तव्य है कि विपरीत परिस्थितियों में काम करने वाले डॉक्टरों के जज्बे को नमन करते हुए चिकित्सा जगत में पनपती विसंगतियों का गंभीरता विश्लेषण हो.
कोरोना काल में हमारे डॉक्टरों ने जिस समर्पण के साथ समाज की सेवा की है, वह बेहद सराहनीय है. हो सकता है कि इस आपदा को कुछ डॉक्टरों ने अवसर में तब्दील कर दिया हो, लेकिन इस आधार पर पूरी डॉक्टर बिरादरी को बदनाम करना ठीक नहीं है. कई बार डॉक्टरों के साथ मरीजों के परिजनों द्वारा मारपीट की घटनाएं भी प्रकाश में आती हैं. इस वजह से डॉक्टर कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता है. यही कारण है कि वह पहले ही सब परीक्षण करा लेना चाहता है. कई बार सरकारी सेवा में कार्यरत डॉक्टर संसाधनों के अभाव में भी बेहतर कार्य नहीं कर पाते हैं. ऐसे में डॉक्टरों के समर्पण को व्यवस्था की मार से बचाने की आवश्यकता भी है.
आज सरकारी सेवा में कार्यरत डॉक्टरों को बेहतर माहौल देने और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े सुधार की जरूरत है. पिछले दिनों नीति आयोग ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खर्च बढ़ाने की जरूरत बतायी थी. यह कटु सत्य है कि हमारे देश में आबादी के हिसाब से स्वास्थ्य सेवाएं दयनीय स्थिति में हैं. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का मात्र डेढ़ फीसदी ही खर्च होता है. हालांकि सरकार ने अगले पांच साल में इसे तीन फीसदी तक करने का लक्ष्य रखा है. हमारे देश के हिसाब से यह भी कम है. कई देश स्वास्थ्य सेवा मद में आठ से नौ फीसदी तक खर्च कर रहे हैं.
यह सही है कि धीरे-धीरे हमारे देश की स्वास्थ्य सेवा में सुधार हो रहा है, लेकिन जब इस दौर में भी मरीजों को अस्पतालों में स्ट्रेचर जैसी मूलभूत सुविधाएं न मिल पायें, तो स्वास्थ्य सेवा पर सवाल उठना लाजमी है. इस प्रगतिशील दौर में भी ऐसी अनेक खबरें आयी हैं कि अस्पताल गरीब मरीज के शव को घर पहुंचाने के लिए एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं करा पाये. संसाधन सीमित होने तथा व्यवस्था में सुधार न होने के कारण डॉक्टर बेवजह बदनाम होते हैं.
चीन, ब्राजील और श्रीलंका जैसे देश भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमसे ज्यादा खर्च करते हैं. पिछले दो दशक में भारत की आर्थिक वृद्धि दर चीन के बाद सबसे अधिक रही है. इसलिए पिछले दिनों योजना आयोग की एक विशेषज्ञ समिति ने भी यह सिफारिश की थी कि सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं के लिए आवंटन बढ़ाया जाए.
पिछले दिनों अमेरिका के ‘सेंटर फॉर डिजीज डाइनामिक्स, इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ (सीडीडीईपी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में लगभग छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है. भारत में 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है. हमारे देश में व्यवस्था की नाकामी और विभिन्न कारकों के कारण बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होता है. भारत में डॉक्टरों की उपलब्धता वियतनाम और अल्जीरिया जैसे देशों से भी कम है.
हमारे देश में इस समय लगभग 7.5 लाख सक्रिय डॉक्टर हैं. इससे गरीब लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी होती है. यह स्थिति अंततः पूरे देश के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर गठित संसदीय समिति ने पिछले दिनों जारी अपनी रिपोर्ट में यह माना है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को और तीव्र बनाने की जरूरत है. चीन, ब्राजील और श्रीलंका जैसे देश भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमसे ज्यादा खर्च करते हैं. पिछले दो दशक में भारत की आर्थिक वृद्धि दर चीन के बाद सबसे अधिक रही है. इसलिए पिछले दिनों योजना आयोग की एक विशेषज्ञ समिति ने भी यह सिफारिश की थी कि सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं के लिए आवंटन बढ़ाया जाए.
दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारी पीढ़ी बाजार के हाथ इस कदर बिक गयी है कि न्यूनतम मानवीय मूल्य भी संकट में पड़ गये हैं. इस बाजार आधारित व्यवस्था में हमारी संवेदना भी बाजारू हो गयी. यह कटु सत्य है कि बाजार के प्रभाव ने हर क्षेत्र में बिचौलिये और भ्रष्टाचारी पैदा किये हैं. डॉक्टरी का पेशा भी इससे मुक्त नहीं रह सका है. यह समाज और चिकित्सकों के लिए एक गंभीर चिंता की बात है. यह संतोषजनक है कि इस माहौल में भी अनेक डॉक्टर अपने पेशे की गरिमा को बचाये हुए हैं.
अनेक कारणों से भविष्य में संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ेगा तथा कई बीमारियों का प्रकोप भी अधिक होता जायेगा, इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने तथा संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए एक दीर्घकालिक नीति बनाये. सरकार इस दिशा में लगातार कदम उठा रही है, लेकिन इस मुद्दे पर ज्यादा ध्यान दिये जाने की जरूरत है. हमें यह ध्यान रखना होगा कि कठिन परिस्थितियों में डॉक्टरों को प्रोत्साहित करने और उन्हें बेहतर संसाधन मुहैया कराने से उनकी कार्यक्षमता तो बढ़ेगी ही, उनके अंदर आत्मविश्वास भी कायम होगा. इस संदर्भ में चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण को भी उच्चस्तरीय बनाने की आवश्यकता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)