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सराहनीय पहल है नेशनल रिसर्च फाउंडेशन

एनआरएफ के साथ सबसे खास बात यह होगी कि इससे शोध की बड़ी परियोजनाओं को मदद मिलेगी. ऐसी बहुत सी योजनाओं को फंड की कमी का खमियाजा भुगतना पड़ा है.

प्रो एस सदगोपन

पूर्व निदेशक, आइआइआइटी बेंगलुरु

s.sadagopan@gmail.com

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले दिनों राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन या नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के गठन के लिए विधेयक पर मुहर लगा दी. यह मुद्दा मुख्य तौर पर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र की फंडिंग से जुड़ा है. भारत में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में शोध और विकास के लिए सरकार और कॉरपोरेट क्षेत्र से फंड मिलता रहा है, मगर यह बहुत ही कम है. पिछले 10-15 सालों में स्थिति बेहतर हुई है. वर्ष 2009 में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड यानी साइंस इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड या एसईआरबी का गठन किया गया था.

बोर्ड के पास लगभग 2000 करोड़ रुपये का फंड है. मगर, एनआरएफ के पास पांच साल के लिए 50,000 करोड़ रुपये का फंड होगा. वर्ष 2020 में घोषित नयी शिक्षा नीति की प्रमुख सिफारिशों में एनआरएफ भी शामिल था. एनआरएफ को एसइआरबी का उत्तराधिकारी कहा जा सकता है. यह भी कहा जा रहा है कि एनआरएफ का गठन अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन या एनएसफ की तर्ज पर हो रहा है.

हालांकि, अमेरिका और भारत की तुलना करना बहुत कठिन है. अमेरिका में सरकार शोध के क्षेत्र में खुद बहुत कुछ नहीं करती है. जबकि, भारत में सरकार आइआइटी और अन्य कई संस्थानों को सीधे संचालित करती है. एनएसएफ में कुछ लोगों का समूह होता है, और संगठन के भीतर वही लोग निर्णय लेते हैं. भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक सेतुरमण पंचनाथन अभी एनएसएफ के प्रमुख हैं. इस संगठन में सीमित लोग होते हैं जो उसे चलाते हैं, और उनके सदस्य बदलते रहते हैं.

मगर, भारत में फंडिंग का फैसला करने वाले ज्यादातर सदस्य स्थायी होते हैं. एक अंतर यह भी है कि अमेरिका में संसद से पैसे मिलने के बाद, एनएसएफ बहुत हद तक स्वतंत्र होता है. वहीं, भारत में सरकारी फंडिंग की वजह से संस्थानों की संसद के प्रति जवाबदेही का स्तर बहुत ज्यादा होता है. लेकिन, अभी एनआरएफ में कई तरह के स्रोतों से फंडिंग की व्यवस्था करने का प्रस्ताव किया गया है. इसमें सरकारी और निजी क्षेत्रों से राशि तो मिलेगी ही, अंतरराष्ट्रीय फंडिंग भी हो सकती है.

एनआरएफ के पांच वर्षों के 50,000 करोड़ रुपये के बजट में से 28 प्रतिशत हिस्सा, यानी 14,000 करोड़ रुपया सरकार का होगा, जबकि बाकी 72 प्रतिशत हिस्सा, यानी 36,000 करोड़ रुपया निजी क्षेत्र से आयेगा. इसलिए ऐसी उम्मीद की जा रही है कि एनआरएफ के ऊपर नौकरशाही का नियंत्रण कम होगा. साथ ही, यह कैग, यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के दायरे से भी बाहर रहेगा.

एनआरएफ के साथ सबसे खास बात यह होगी कि इससे शोध की बड़ी परियोजनाओं को मदद मिलेगी. ऐसी बहुत सी योजनाओं को फंड की कमी का खमियाजा भुगतना पड़ा है. इसकी एक बड़ी वजह सब-क्रिटिकल फंडिंग की रही है, यानी ऐसी योजनाओं के लिए फंडिंग देना जो सबसे जरूरी नहीं हैं. जैसे, सिंचाई विभाग को भी अपने यहां शोध के लिए फंड की जरूरत होती है. वैसे ही, मौसम विभाग, खनिज और धातु विभाग तथा ऐसे ही कई विभागों को शोध की जरूरत होती है और उसके लिए फंड दिये जाते हैं.

मौजूदा व्यवस्था में ये संस्थान एसइआरबी से फंड लेते हैं, और अपनी प्राथमिकता के हिसाब से खर्च करते हैं. एनआरएफ में हर तरह के शोध संस्थानों को और उनके फंड को एकत्र किया जायेगा. इससे कोष बड़ा भी होगा और उसे बेहतर तरीके से खर्च किया जा सकेगा. इसे एक इंजीनियरिंग कॉलेज के उदाहरण से समझा जा सकता है. मान लें कि एक कॉलेज को सालाना डेढ़ करोड़ रुपये का फंड मिलता है, और उसे वह हर विभाग में बांट देता है.

इससे वह राशि इतनी छोटी हो जाती है कि केवल लैपटॉप भर खरीदा जा सकता है, या एक टीचिंग असिस्टेंट की नियुक्ति हो सकती है. इसकी जगह, यदि डेढ़ करोड़ रुपये एक साथ खर्च करने होते, तो कोई विशेष उपकरण खरीदा जा सकता था. ऐसे ही यदि हर विभाग को बारी-बारी से मोटी राशि मिलती तो वे भी बड़े उपकरण खरीदते. ऐसे में, 10 साल के दौरान कॉलेज के पास बड़े संसाधन जमा हो जाते.

एनआरएफ के फायदे को समझाने के लिए एक और उदाहरण जमशेदपुर स्थित नेशनल मेटलर्जिकल रिसर्च लैब का लिया जा सकता है. वहां स्टील, आयरन, एल्युमीनियम आदि के बारे में रिसर्च होगा, पर शायद लिथियम के बारे में रिसर्च नहीं होगी, क्योंकि इसके अयस्क भारत में नहीं मिलते. एनआरएफ में नयी चीजों के बारे में शोध हो सकता है. जैसे, यदि चंद्रयान-3 अभियान में चांद पर खनिज का पता चलता है, तो आगे कभी जाकर चांद की सतह पर खनन के बारे में तैयार रहने की जरूरत पड़ सकती है.

याद रखें कि आज से 50 साल पहले मोबाइल फोन पर बात करते हुए, व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करना और पीडीएफ दस्तावेजों को शेयर कर लेना किसी विज्ञान कथा जैसा लग सकता था. मगर, आज यह एक सामान्य बात हो गयी है. आज रक्षा क्षेत्र में सारा ध्यान साइबर युद्ध पर है. ऐसे भविष्य के लिए उपयोगी हो सकने वाले शोध के लिए पैसा कहां से आयेगा? एनआरएफ वैज्ञानिक शोध की दुनिया में एक बड़े औजार के जैसा है, जिससे बड़े काम किये जा सकते हैं.

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