आपदाओं का जोखिम
हाल के दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति, गंभीरता और अनिश्चितता में चार गुनी बढ़ोतरी हो चुकी है. वैसे तो समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन और धरती का तापमान बढ़ने से प्रभावित हो रही है, पर भारत उन क्षेत्रों में से है, जहां ऐसे प्रकोप अधिक गंभीर हैं.
Natural Disaster : हमारे देश में प्राकृतिक आपदाओं के रुझान में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं. एक अध्ययन में पाया गया था कि पिछले साल देश में कहीं न कहीं हर दिन कोई आपदा आयी थी. इस साल भी ऐसी कई छोटी-बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं. अब एक ताजा शोध में रेखांकित किया गया है कि 85 प्रतिशत से अधिक जिलों पर बाढ़, सूखा, चक्रवात और लू जैसी आपदाओं का जोखिम है. इनमें से 45 प्रतिशत जिलों में आपदाओं का रुझान भी बदल रहा है.
हाल के दशकों में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति, गंभीरता और अनिश्चितता में चार गुनी बढ़ोतरी हो चुकी है. वैसे तो समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन और धरती का तापमान बढ़ने से प्रभावित हो रही है, पर भारत उन क्षेत्रों में से है, जहां ऐसे प्रकोप अधिक गंभीर हैं. आइपीई ग्लोबल और इसरी-इंडिया के ताजा विश्लेषण में यह भी पाया गया है कि देश के कई इलाकों में बाढ़ और सूखे दोनों का जोखिम बढ़ गया है. लू और अधिक गर्म दिनों की संख्या में भी हर साल बढ़ोतरी हो रही है. इस वजह से सूखे की समस्या भीषण होती जा रही है. अचानक और अत्यधिक मात्रा में बारिश होने से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की संख्या बढ़ती जा रही है.
समुचित सुविधा न होने से हमारे शहर भी बाढ़ के केंद्र बन रहे हैं. जलाशयों के सूखने, भूजल के दोहन और वर्षा जल का संरक्षण न करने के कारण शहरों में पानी की किल्लत भी बढ़ रही है. पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे की समस्या पहले से रही है. अब सूखा प्रभावित क्षेत्रों की सूची में दक्षिण भारत का बड़ा हिस्सा भी शामिल हो गया. इसी साल हमने देखा कि कई दशकों में सबसे अधिक गर्मी पड़ी है और मानसून के शुरू में अनेक जगहों पर सामान्य से बहुत अधिक बरसात हुई है. बारिश के बावजूद गर्मी से बहुत राहत नहीं मिली है. बीते दशकों में आपदाओं की संख्या और प्रभाव क्षेत्र का चिंताजनक विस्तार हो रहा है.
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2036 तक 1.47 अरब से अधिक भारतीय आपदाओं के साये में जीने के लिए विवश हो सकते हैं. अनिश्चित मानसून और अत्यधिक गर्मी को देखते हुए हमें ठोस तैयारी करने की आवश्यकता है. इस वर्ष के आर्थिक सर्वे में यह सलाह दी गयी है कि हमें बदलते मौसम के अनुरूप अपने को ढालना चाहिए. आपदाओं का सर्वाधिक असर खेती पर पड़ रहा है. बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि हम खेती के रंग-ढंग में बदलाव लायें. खेती हमारे निर्यात का भी अहम हिस्सा है. जीवन और स्वास्थ्य सुरक्षा के भी उपायों को बेहतर करने की आवश्यकता है. स्वच्छ ऊर्जा और जल संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.