खेलों के बेहतर प्रबंधन की जरूरत
खेल से संबंधित नियमावली और निर्देश में सरकारी प्रतिनिधियों और राजनेताओं के हस्तक्षेप की स्पष्ट मनाही है, पर हमारे देश के अधिकतर खेल संघों पर राजनेताओं का कब्जा है. बाहर के देशों में ऐसा नहीं है
देश के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीतने वाले मशहूर पहलवानों तथा अन्य खिलाड़ियों द्वारा भारतीय कुश्ती संघ की अव्यवस्था तथा वरिष्ठ अधिकारियों के हाथों होने वाले मानसिक एवं शारीरिक शोषण को लेकर आवाज उठाना हमारे खेल इतिहास का दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है. मैं भी उनके समर्थन में जंतर मंतर पर हुए प्रदर्शन में शामिल हुआ. उनकी मार्मिक शिकायतें सुन कर बहुत सारे लोगों की तरह मुझे भी बहुत दुख हुआ.
जब हमारे खिलाड़ी देश का नाम रौशन करते हैं, पदक लाते हैं, तो हम उनका खूब स्वागत करते हैं, उन्हें पुरस्कार देते हैं, इनाम देते हैं, लेकिन जब वही खिलाड़ी कोई गंभीर शिकायत लेकर आते हैं, तो तीन दिन तक उन्हें धरना देना पड़ता है.
खेल से संबंधित नियमावली और निर्देश में सरकारी प्रतिनिधियों और राजनेताओं के हस्तक्षेप की स्पष्ट मनाही है, पर हमारे देश के अधिकतर खेल संघों पर राजनेताओं का कब्जा है और यह सिलसिला लंबे समय से चला रहा है. बाहर के देशों में ऐसा नहीं है. इसमें बड़े सुधार की बहुत आवश्यकता है. खेल संघों का जिम्मा निश्चित रूप से खिलाड़ियों और खेल से जुड़े लोगों के हाथ में होना चाहिए, जैसे अभी पीटी उषा भारतीय ओलिंपिक संघ की प्रमुख हैं.
महिला पहलवानों द्वारा शारीरिक शोषण के जो आरोप लगाये गये हैं, उनका गंभीरता से संज्ञान लिया जाना चाहिए. दबी जुबान में कुछ लोग कह रहे हैं कि उन्हें पहले ही अपनी शिकायतों के साथ आना चाहिए था, पर सवाल यह है कि इससे क्या फर्क पड़ जाता. अनेक ऐसे मामले हुए हैं, जिनमें या तो लीपा-पोती की गयी या मामूली रूप से दंडित किया गया.
महिला पहलवानों द्वारा शारीरिक शोषण के जो आरोप लगाये गये हैं, उनका गंभीरता से संज्ञान लिया जाना चाहिए. दबी जुबान में कुछ लोग कह रहे हैं कि उन्हें पहले ही अपनी शिकायतों के साथ आना चाहिए था, पर सवाल यह है कि इससे क्या फर्क पड़ जाता. अनेक ऐसे मामले हुए हैं, जिनमें या तो लीपा-पोती की गयी या मामूली रूप से दंडित किया गया.
हर खेल संघ में इस तरह की शिकायतों की सुनवाई के लिए व्यवस्था की जानी है तथा ऐसी कोई भी व्यवस्था स्वायत्त होनी चाहिए. इसके अलावा, खिलाड़ियों का अपना संगठन भी होना चाहिए, जो उनकी समस्याओं को खेल संघ के शीर्ष अधिकारियों या केंद्र व राज्य सरकार के खेल मंत्रालय के सामने रख सके. इस तरह के संगठन फुटबॉल, क्रिकेट और कुछ खेलों में बने हुए हैं.
यदि कोई गलत व्यवहार करता है या खिलाड़ियों के खिलाफ गलत फैसला लेता है या शोषण करता हो, तो प्रभावित खिलाड़ी अपने संगठन में उसके बारे में शिकायत करा सकता है. उसके बाद इस संगठन के पदाधिकारी खेल संघ से सीधे बात कर सकते हैं. कुश्ती में खिलाड़ियों का ऐसा कोई भी प्रतिनिधि संगठन नहीं है. कई बार सरकार या खेल संघ की ओर से खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता या वृत्ति देने की बात की जाती है, पर ऐसे आश्वासनों पर अमल नहीं होता. इस प्रदर्शन में भी ऐसी शिकायतें सामने आयी हैं.
खिलाड़ियों के गंभीर आरोपों पर हम अभी किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकते हैं, पर यह तो कहा ही जाना चाहिए कि स्थिति जरूर चिंताजनक है. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जांच समिति सही निष्कर्ष पर पहुंचेगी. मैं यहां पर अपने कुछ अनुभवों को साझा करना चाहूंगा, क्योंकि मैं भी लड़कियों की सीनियर नेशनल हॉकी टीम का कोच रहा हूं.
मेरे प्रशिक्षण में 35 लड़कियां थीं और एक सहायक कोच थीं. अन्य सहयोगी भी महिलाएं ही थीं. उसमें मैं अकेला पुरुष था. पुणे में एक माह के शिविर में मैंने खिलाड़ियों को परिवार के सदस्य की तरह माना. उनकी हर छोटी-बड़ी समस्या का ख्याल रखा और कोशिश यही रही कि उन्हें किसी तरह की मानसिक परेशानी न हो, ताकि वे अपना पूरा ध्यान खेल पर लगाएं.
इसी तरह जब मैं टीम के साथ फिलिस्तीन गया, तो उनका पूरा ध्यान रखा. एक बार तो कुछ खिलाड़ियों ने कहा कि दाल के बिना उन्हें खाना अच्छा नहीं लग रहा है. मैंने होटल आदि में कोशिश की, पर दाल नहीं मिली. तब मैंने भारतीय दूतावास से अनुरोध किया और तत्कालीन राजदूत की पत्नी ने दाल बनवा कर हमारे होटल में भेजा.
खिलाड़ियों को उससे बड़ी खुशी मिली. कोच और प्रबंधकों को खिलाड़ियों के पारिवारिक जीवन और पृष्ठभूमि का भी ध्यान रखना चाहिए तथा उनसे हालचाल जानते रहना चाहिए, ताकि परिवार को भी भरोसा रहे कि उनके बच्चे ठीक हैं और उनकी देखभाल हो रही है.
इस तरह की गंभीर शिकायतों से भविष्य के खिलाड़ी भी प्रभावित हो सकते हैं तथा उनके माता-पिता खेलों में उन्हें आने देने में हिचक सकते हैं. यह हमारी विकसित होती खेल संस्कृति के लिए अच्छा नहीं होगा. ऐसी घटनाओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि को नुकसान पहुंचता है. ओडिशा में अभी हॉकी का विश्वकप चल रहा है.
वहां विभिन्न देशों के खिलाड़ियों के अलावा मीडिया का भी आना हुआ है. मुझे उम्मीद है कि खिलाड़ियों के साथ न्याय होगा. केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर खेलों को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं तथा एक सुलझे हुए व्यक्ति भी हैं. कुछ लोगों का यह कहना ठीक नहीं है कि विरोध कर रहे खिलाड़ियों की उम्र हो चुकी है.
ऐसे विख्यात खिलाड़ी कई स्तरों पर खेलों के विकास में सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं. उनके प्रति हमें सम्मान रखना चाहिए. इस प्रकरण की जांच से जो बातें सामने आएं, उनका संज्ञान अन्य खेल संघों को भी लेना चाहिए तथा प्रबंधन में बेहतरी लाने के लिए प्रयास करना चाहिए.