प्रकाश सिंह, पूर्व पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश
delhi@prabhatkhabar.in
पुलिस हिरासत में होनेवाली मौतों से संबंधित आंकड़ों को पहले हमें समझने की जरूरत है. हिरासत में मृत्यु दो प्रकार की होती है. पहला मामला होता है- पुलिस की हिरासत में होनेवाली मौत और दूसरा मामला जेल में होनेवाली मौतों से जुड़ा होता है. यह देखा गया है कि जेल की हिरासत में होनेवाली मौतों का आंकड़ा हमेशा पुलिस की हिरासत में होनेवाली मौतों से कहीं ज्यादा होता है. सबसे पहले तो हमें यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि हिरासत में होनेवाली मौतों के आंकड़े कहां से लिये गये हैं क्योंकि पुलिस हिरासत में मौतों की संख्या जेल में बंद कैदियों की मौतों की संख्या के मुकाबले काफी कम होती है. जेल हिरासत से जुड़े मामलों का पुलिस से कोई लेना-देना नहीं है. दोनों अलग-अलग संस्थाएं हैं और जेल पुलिस के अधिकार क्षेत्र और पहरेदारी से बाहर होता है.
हमारे देश में बहुत वर्षों से पुलिस सुधार की चर्चा चल रही है. व्यापक स्तर पर बदलाव के लिए हमें कई पहलुओं पर संजीदगी के साथ काम करने की जरूरत है. पुलिस सुधार के लिए सबसे पहले तो पुलिस के प्रशिक्षण में यह व्यवस्था की जाये कि जो लोग भी उनकी निगरानी में रहते हैं, उनके साथ पुलिसकर्मी मानवीय बर्ताव करने की आदत डालें. दूसरी बात, पुलिस प्रशिक्षुओं को वैज्ञानिक तरीके से जांच-पड़ताल करने का विधिवत प्रशिक्षण दिया जाये, जिससे उन्हें यह पता चल सके कि केवल मारपीट से ही सही सूचना नहीं मिलती. तीसरी बात, जहां लोगों को हिरासत में रखा जाता है, वहां निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था की जाये. सबसे अहम बात है कि अधिकारियों का पर्यवेक्षण अच्छा होना चाहिए. इस तरह की कोई गलती सामने आने के बाद हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि भाईचारा निभाना है, बल्कि यह मानकर हमें काम करना चाहिए कि उक्त मामले में हमें न्याय करना है.
जहां भी कोई गलती पायी जाये, उसे उजागर करके संलिप्त व्यक्ति को तुरंत दंडित किया जाये. स्थानीय स्तर पर एसपी, डीएसपी या जो भी कोई वहां पर हों, उन्हें आगे बढ़कर स्वयं कार्रवाई करनी चाहिए. अगर विभागीय स्तर पर ढील दी जाती है, तो इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने जैसा कि कहा है कि संबंधित प्राधिकरण को जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ कार्रवाई के लिए आगे आना चाहिए. आज के दौर में अपराध के प्रकार बदल रहे हैं. ऐसे में पुलिस को पहले से अधिक सतर्क और सक्रिय होने की जरूरत है.
कहीं बिटक्वाइन का मामला आ रहा है, तो कहीं साइबर से जुड़े अपराधों के मामले सामने आ रहे हैं, कहीं संस्थागत तरीके से बढ़ाये और संरक्षित किये जा रहे अपराध हो रहे हैं, तो कहीं नशीले पदार्थों से जुड़े कारोबार के मामले उजागर हो रहे हैं. मानव तस्करी जैसे गंभीर आपराधिक मामले भी हमारे सामने हैं. कहने का मतलब है कि वक्त से साथ अपराध के प्रकार में भी बदलाव आ रहे हैं. इन आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए नये कानून और नियम भी जरूरी हैं. जैसे, मकोका कानून के बारे में हम जानते हैं, वह कानून केवल महाराष्ट्र में है. अपराधों पर लगाम के लिए ऐसे ही कानून पूरे देश में लागू किये जाने चाहिए.
संगठित अपराध अधिनियम को पूरे देश में प्रभावी तरीके से लागू किया जाये. साइबर अपराधों से निपटने के लिए एक सक्षम साइबर अथॉरिटी होनी चाहिए. राज्यों में जो साइबर सेल में हैं, उन्हें तकनीकी तौर पर दक्ष बनाना चाहिए, साथ ही जिले स्तर पर साइबर सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम किये जाने की जरूरत है. इसके लिए या तो आप पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित कीजिए या अगर ये संभव नहीं है, तो अन्य उपायों पर विचार करना होगा क्योंकि पुलिसकर्मियों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और तैयारी इसके लिए नहीं होती.
संभव है कि यह काम उनके लिए मुश्किल हो. जो बच्चे आइआइटी से पढ़ाई करके निकलते हैं या मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (एमसीए) बैकग्राउंड से हैं, उन्हें आप सीधे दारोगा के स्तर पर भर्ती कर सकते हैं. जो अमेरिका या इंग्लैंड नहीं जा पाते हैं या जो अपने क्षेत्रों से इतर करियर बनाना चाहते हैं, उन्हें आप पुलिस विभाग में मौका दे सकते हैं. पुलिस विभाग के लिए वे ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं.
तमिलनाडु जैसी घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो पुलिस विभाग में व्यवहार और बर्ताव के स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है. पुलिसकर्मियों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना आवश्यक है. उन्हें वैज्ञानिक उपकरणों के संचालन के लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत है. पुलिसकर्मियों की लापरवाही या नियम उल्लंघन के मामले सामने आते हैं, तो उसके लिए जवाबदेही तय करनेवाला प्राधिकरण होना चाहिए. जिला स्तर पर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे मामले संज्ञान में आने के बाद तुरंत कार्रवाई की जा सके. जनता में पुलिस के प्रति आक्रोश उसके रवैये के कारण होता है.
अतः इसके लिए दृष्टिकोण में बदलाव लाने की जरूरत है. हमें निगरानी तंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए. अधिकारियों को चाहिए कि अगर उनके किसी मातहत ने गलती की है, उसे बचाने का कोई तुक नहीं है, उस पर कार्रवाई होनी चाहिए. उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करना चाहिए. सीबीआई को बीच में पड़ने की जरूरत ही क्या थी! पुलिस विभाग में विभिन्न स्तरों पर काम करने की आवश्यकता है, जिससे इसे प्रभावी और विश्वसनीय बनाया जा सके. (बातचीत पर आधारित)