Loading election data...

धैर्य की आवश्यकता

विपदा का समाधान समझ, संयम और धैर्य से हो सकता है, अफवाहों से नहीं. खाने-पीने की वस्तुओं और पेट्रोल-डीजल की कमी नहीं है.

By संपादकीय | March 31, 2020 3:31 AM

कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन का नियमन किया गया है. इससे आवाजाही बाधित हुई है और सामान्य गतिविधियां ठप हैं. ऐसे में लोगों, विशेष रूप से गरीबों और निम्न आय वर्ग, को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे कड़े कदम से होनेवाली परेशानियों के लिए माफी भी मांगी है, लेकिन यह समूचे देश को मालूम है कि हमारे पास महामारी को टालने का इससे बेहतर कोई उपाय नहीं है. वैसे भी यह तात्कालिक ही है और परिस्थितियों के हिसाब से जरूरी पहलकदमी होती रहेगी. लेकिन संकट के समय अपुष्ट सूचनाओं और अफवाहों का बाजार गर्म होने की परिपाटी भी रही है. यह समय कोई अपवाद नहीं है.

सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया के कुछ हिस्से द्वारा बताया जा रहा है कि 21 दिनों का लॉकडाउन आगे भी बढ़ाया जायेगा. यह नितांत आधारहीन है. सरकार के शीर्षस्थ अधिकारी कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने स्पष्टीकरण दिया है कि केंद्र सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है. यह समझा जाना चाहिए कि लॉकडाउन का उद्देश्य वायरस के फैलने के सिलसिले को तोड़ना है क्योंकि यह संक्रमित व्यक्ति से मिलने-जुलने और संपर्क में आने से ही दूसरे लोगों को अपना शिकार बनाता है. तीन सप्ताह की इस अवधि के भीतर हमारे पास संक्रमण और बीमारी के दायरे के बारे में पर्याप्त जानकारियां उपलब्ध हो जायेंगी.

उनके आधार पर स्थिति की समीक्षा कर प्रभावित क्षेत्रों को अलग-थलग रखा जा सकता है. तब समूचे देश को बंद करने की जरूरत बिलकुल नहीं होगी. तब तक वायरस के रोकथाम के बारे में भी बहुत कुछ सूचनाएं हमारे पास होंगी, जो संकट से निपटने की रणनीति तैयार करने में सहयोगी होंगी. अभी आवश्यकता यह है कि लोग सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के निर्देशों का जिम्मेदारी से पालन करें. ऐसी विकट विपदा का समाधान समझ, संयम और धैर्य से ही हो सकता है, खतरनाक अफवाहों और फेक न्यूज से नहीं. देश में खाने-पीने की वस्तुओं और पेट्रोल-डीजल की कोई कमी नहीं है.

राजधानी दिल्ली समेत देश के विभिन्न शहरों से कामगारों के पलायन को रोकने तथा आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुचारू रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लगातार इंतजाम किये जा रहे हैं. बड़ी संख्या में आम नागरिक व सामाजिक संगठन भी इन कामों में अपना योगदान दे रहे हैं. बैंकों की ओर से कर्जों की किस्त चुकाने में मोहलत दी जा रही है और ब्याज दरों में भी कटौती की गयी है. जो दे सकते हैं, उन्हें किस्त देना चाहिए और जो नहीं दे पा रहे हैं, वे बाद की अपनी योजनाओं के बारे में तैयारी कर सकते हैं. हम सभी को मालूम है कि आगामी महीनों में अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ने की आशंका जतायी जा रही है. ऐसे में हमें वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार होना है.

Next Article

Exit mobile version