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स्वच्छता पर जागरूक होने की जरूरत

यह समझना होगा कि स्वच्छता का काम केवल केंद्र या राज्य सरकार के बूते का नहीं है. इसमें जन-भागीदारी जरूरी है. कचरा नियंत्रित करने का काम अकेले नगर निगमों के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता है. कचरा मुख्य रूप से मानव निर्मित होता है. इसलिए इसको नियंत्रित करना सामूहिक जिम्मेदारी है.

मध्य प्रदेश के इंदौर ने लगातार छठी बार स्वच्छता रैंकिंग में पहला स्थान हासिल किया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंदौर की तारीफ करते हुए कहा है कि सबको इस शहर से सीखना चाहिए. मध्य प्रदेश को भी सबसे स्वच्छ राज्य का खिताब दिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में स्वच्छता सर्वेक्षण पुरस्कारों की पहल की थी. पहले सर्वेक्षण में मैसूर पहले स्थान पर रहा था, पर 2017 से इंदौर शीर्ष पर बना हुआ है.

गुजरात का सूरत दूसरे तथा नवी मुंबई तीसरे स्थान पर हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल छठे स्थान पर है. आंध्र प्रदेश के तीन शहर भी 10 सबसे स्वच्छ शहरों में शामिल हैं. स्वच्छता सर्वेक्षण में दिल्ली ने नौंवा स्थान हासिल किया है. यह चिंताजनक है कि 10 सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में बिहार, झारखंड और बंगाल का एक भी शहर नहीं है.

स्वच्छ राज्यों की सूची में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, ओड़िशा, उत्तर प्रदेश शामिल हैं. छोटे राज्यों में त्रिपुरा अव्वल है. एक लाख से कम आबादी वाले स्वच्छ शहरों की श्रेणी में महाराष्ट्र का पंचगनी, छत्तीसगढ़ का पाटन और महाराष्ट्र का कराड शहर शीर्ष तीन में हैं. गंगा किनारे बसे एक लाख से अधिक आबादी के शहरों में हरिद्वार, वाराणसी व ऋषिकेश सबसे स्वच्छ शहर हैं.

एक लाख से कम आबादी के गंगा के किनारे बसे शहरों में बिजनौर, कन्नौज और गढ़ मुक्तेश्वर हैं. सबसे स्वच्छ छावनी बोर्ड महाराष्ट्र का देवलाली माना गया है. देश के 62 छावनी वाले शहरों में बिहार का दानापुर कैंट 32वें स्थान पर है. हम यह कह कर खुश हो सकते हैं कि हमारी रैंकिंग में सुधार हुआ है या फलाने शहर की तुलना में हम बेहतर हैं, लेकिन 10 सबसे स्वच्छ शहरों व राज्यों की सूची में हम कहीं नहीं हैं.

गंगा किनारे बसे एक लाख से कम आबादी के शहरों में बिहार के सुल्तानगंज को चौथा स्थान मिला है. एक लाख से अधिक आबादी के गंगा किनारे के शहरों में पटना और मुंगेर की रैंकिंग पिछले साल की तुलना में गिरी है. पिछले साल मुंगेर दूसरे स्थान पर था, पर इस बार पांचवें स्थान पर है. इस श्रेणी में पटना तीसरे से नौवें स्थान पर आ गया है. इस सूची में हाजीपुर छठें, भागलपुर सातवें और बक्सर आठवें स्थान पर हैं.

झारखंड से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, क्योंकि उस पर बिहार की तरह आबादी का दबाव नहीं है. सर्वेक्षण में झारखंड को 100 शहरी निकायों वाले राज्यों में देश के दूसरा स्थान मिला है. तीन नगर निकायों- जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र, मानगो और मेदनीनगर को भारतीय स्वच्छता लीग में बेहतर प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया है. पूर्वी जोन के 50 हजार से एक लाख आबादी वाले नगर निकायों में चाईबासा तथा 15 हजार से 25 हजार आबादी वाले नगर निकायों में बुंडू को बेस्ट सिटीजन फीडबैक के लिए सम्मानित किया गया है, लेकिन रांची और पटना जैसे शहर स्वच्छ शहरों की श्रेणी में नहीं हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन के आठ साल पूरे हो गये हैं. कई राज्यों में इस अभियान के तहत अच्छा काम हुआ है, लेकिन कई राज्य पीछे रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी देश को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए प्रयासरत हैं और इसमें वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को प्रेरणा स्रोत मानते हैं. गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आये, तो उन्होंने पाया कि भारतीयों में साफ-सफाई के प्रति चेतना का भारी अभाव है.

भारतीय सफाई के लिए कोई प्रयास नहीं करते हैं और जो लोग सफाई के काम में जुटे होते हैं, उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं. इससे पर्यावरण को लेकर गंभीर संकट तो उत्पन्न होता ही है, महामारियों के कारण भी लोगों की जान पर बन आती है. सरकारें बार-बार सफाई का आह्वान करती हैं, लेकिन इसको लेकर समाज में समुचित चेतना नजर नहीं आती है.

लगभग सभी शहरों में जलभराव आम बात है. इसका नतीजा लोगों को बीमारियों के रूप में भुगतना पड़ता है. कचरे के निस्तारण की पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण तकरीबन हर शहर में नाले बजबजाते रहते हैं. सरकारी व्यवस्था का हाल किसी से छुपा हुआ नहीं है. यह समझना होगा कि स्वच्छता का काम केवल केंद्र या राज्य सरकार के बूते का नहीं है. इसमें जन-भागीदारी जरूरी है. कचरा नियंत्रित करने का काम अकेले नगर निगमों के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता है.

कचरा मुख्य रूप से मानव निर्मित होता है, इसलिए इसको नियंत्रित करना सामूहिक जिम्मेदारी है. हमारी जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, उसके बरक्स सरकारी प्रयास हमेशा नाकाफी रहने वाले हैं. हमें कचरे को नियंत्रित और निष्पादित करने के ठोस प्रयास करने होंगे, तभी परिस्थितियों में सुधार हो सकता है. स्वच्छता और सफाई के काम में सांस्कृतिक बाधाएं भी आड़े आती हैं. देश में ज्यादातर धार्मिक स्थलों के आसपास अक्सर बहुत गंदगी दिखती है. इन जगहों पर चढ़ाये गये फूलों के ढेर लगे होते हैं.

कुछ मंदिरों ने स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से उनके निस्तारण और उनसे जैविक खाद बनाने का प्रशंसनीय कार्य प्रारंभ किया है. अन्य धर्म स्थलों को भी ऐसे उपाय अपनाने चाहिए. उल्लेखनीय है कि हिंदी पट्टी के शहरों के मुकाबले दक्षिण के शहर ज्यादा साफ-सुथरे हैं. यही स्थिति पूर्वोत्तर के शहरों की है. झारखंड के संताली गांवों को देखें, तो आप पायेंगे कि वे किसी भी शहर से ज्यादा सुंदर और स्वच्छ हैं. ऐसा सरकारी प्रयासों से नहीं होता, बल्कि जन-भागीदारी से संभव हो पाता है.

होता यह है कि हम लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर सुंदर मकान तो बना लेते हैं, लेकिन नाली पर समुचित ध्यान नहीं देते. अगर नाली है भी, तो उसको भी पाट देते हैं और गंदा पानी सड़क पर बहता रहता है. पार्किंग के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ते हैं. यही स्थिति कूड़े की है. हम रास्ता चलते कूड़ा सड़क पर फेंक देते हैं. उसे कूड़ेदान तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाते.

साफ-सफाई में नगर निगम की भी अहम भूमिका होती है, लेकिन हम कभी अपने पार्षद से अपने वार्ड की सफाई के बारे में नहीं पूछते. अपना वोट पार्टी और जातिगत आधार पर देते हैं. कम से कम पार्षद चुनने की कसौटी तो जन सुविधाओं के काम होने चाहिए. लोगों में जब तक साफ-सफाई के प्रति चेतना उत्पन्न नहीं होगी, तब तक कोई उपाय कारगर साबित नहीं हो सकता.

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