उच्च शिक्षा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता

उच्च शिक्षा के प्रति रवैये में परिवर्तन आ रहा है. यह बदलाव है- स्नातकों की संख्या बढ़ाने की जगह कौशलयुक्त श्रमबल का विकास.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2024 8:58 AM
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प्रो शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित, कुलपति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली

चुनावी हलचल के थमने और नयी सरकार के पदभार संभालने के साथ आगामी पांच वर्षों के एजेंडे को लेकर चर्चा तेज हो गयी है, जिसमें उच्च शिक्षा एक महत्वपूर्ण बिंदु है. राजनीतिक शक्ति आख्यान की शक्ति पर निर्भर होती है. बड़े बदलावों की बात क्या करें, बीते एक दशक में आख्यान में परिवर्तन के लिए भी कुछ खास नहीं किया गया. यह समय है कि बौद्धिक और विद्वान बड़े बदलाव के लिए प्रयासरत हों, जो विविधता को मान देते हुए समावेशी हो. एक समानता और केंद्रीकरण आख्यान की शक्ति को अवरुद्ध कर सकते हैं. सार्वजनिक शिक्षा में निवेश सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3 से बढ़ाकर छह प्रतिशत नहीं हो सका है, जबकि इसे 10 प्रतिशत होना चाहिए क्योंकि शिक्षा जहां है, वहीं आख्यान की शक्ति है. दस वर्ष पूर्व सरकार के सामने लंबित कार्यों और अप्रभावी संस्थाओं की चुनौती थी, जिनके कारण आर्थिक विकास एवं इंफ्रास्ट्रक्चर में बाधा आयी. इसलिए एक दशक से सरकार शिक्षा के क्षेत्र में उन खामियों को दूर करने में लगी हुई थी. इस अवधि में अप्रासंगिक नीतियों की जगह नयी नीतियां लागू हुईं और संस्थानों में सुधार किये गये.

तीसरे कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए सरकार को महत्वपूर्ण अवसर मिला है. सभी विषयों में व्यापक विकास आवश्यक है. केवल फैशनेबल विषयों पर ही एकतरफा ध्यान नहीं होना चाहिए. सरकार, शिक्षक, छात्र, प्रशासक- सभी को मिलकर इस अवसर को सार्थक बनाना चाहिए.

शिक्षा में ठहराव का मुख्य उदाहरण 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति थी, जो अहम वैश्विक परिवर्तनों के बीच पीछे रह गयी थी. इसके स्थान पर सरकार ने 2020 में नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की, जो विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए एक दूरदर्शी दस्तावेज है. लेकिन अनेक बाधाओं और जटिलता से इसका कार्यान्वयन अवरुद्ध हुआ है. शिक्षा संविधान की सातवीं अनुसूची में एक समवर्ती विषय है. राजनीतिक कारणों एवं जागरूकता के अभाव में कुछ संस्थान इस नीति को लागू करने में हिचक रहे हैं या उनकी गति धीमी है. यह नीति स्थानीय भाषाओं में उच्च शिक्षा देने, बहुविषयक शिक्षण बढ़ाने तथा विश्लेषणात्मक क्षमता की पैरोकारी करती है. इसमें राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना का प्रावधान भी है. इस नीति में समता और समावेश पर जोर दिया गया है. नीति को इस तरह बनाया गया है, जिससे एक समावेशी शिक्षा तंत्र बने, जिससे सभी को समान अवसर मिल सके और देश की आबादी की विविध आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके. शिक्षा नीति और अन्य नियामक नीतियां अधिक महत्वपूर्ण परिवर्तनों के लिए आधार हैं तथा इन्हें शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से लागू करना सरकार की मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए.

‘विकसित भारत’ के व्यापक उद्देश्य के अंतर्गत, नयी सरकार को बहुत सक्षम और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक उच्च शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिए संस्थागत एवं व्यक्तिगत हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देनी चाहिए. विज्ञान से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में भारत के प्रशंसनीय योगदानों के बावजूद हमारी उच्च शिक्षा को समुचित वैश्विक पहचान नहीं मिल सकी है. इस कारण क्षमता एवं संभावना के बावजूद विदेशी सहभागिता और अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपेक्षा के अनुरूप आकर्षित नहीं किया जा सका है. फिर भी, एक उल्लेखनीय बदलाव से इंगित होता है कि उच्च शिक्षा के प्रति रवैये में परिवर्तन आ रहा है. यह बदलाव है- स्नातकों की संख्या बढ़ाने की जगह कौशलयुक्त श्रमबल का विकास. यह बदलाव उच्च शिक्षा में अंर्तविषयक और बहुविषयक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. उदाहरण के लिए, आईआईटी में समाज विज्ञान तथा मानविकी में तकनीकी एवं कोडिंग पाठ्यक्रमों को शामिल किया गया है. उच्च शिक्षा के विकास के बारे में विमर्श अक्सर इंजीनियरिंग, बायोटेक, विज्ञान और तकनीकी के इर्द-गिर्द घूमता है, पर यह समझना जरूरी है कि मानविकी और समाज विज्ञान भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं. इनमें दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकता है.

हालिया चुनाव में जिस तरह से भ्रामक सूचनाओं और तथ्यों से खिलवाड़ किया गया, वह अभूतपूर्व है. ऐसा विशेष रूप से मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये हुआ. बिना किसी आधार के दुष्प्रचार से लोगों को प्रभावित करने की कोशिश होती रही. हालांकि चुनाव ने ऐसी बातों को गलत साबित कर दिया, पर भारतीय मानस और देश की वैश्विक छवि को इससे बहुत नुकसान हुआ है. ऐसी चीजों के प्रतिकार के लिए सरकार को समाज विज्ञान के विकास पर जोर देना चाहिए ताकि ऐसे युवा तैयार हों, जो चाटुकार या विचारक होने की जगह तार्किक, अभिव्यक्ति-कुशल और सक्षम व्यक्ति हों. अंतरराष्ट्रीय संबंध, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और जनसंचार में शिक्षा को मजबूत करना नयी सरकार का अहम एजेंडा होगा. इससे आख्यान की शक्ति बढ़ेगी, जो राजनीतिक शक्ति को आधार देगी तथा नेतृत्व के समक्ष वास्तविकता का आईना रखेगी. तीसरे कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए सरकार को महत्वपूर्ण अवसर मिला है. सभी विषयों में व्यापक विकास आवश्यक है. केवल फैशनेबल विषयों पर ही एकतरफा ध्यान नहीं होना चाहिए. सरकार, शिक्षक, छात्र, प्रशासक- सभी को मिलकर इस अवसर को सार्थक बनाना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की निरंतरता का लाभ उठाया जाना चाहिए ताकि भारत और भारतीय विचारों के वैश्विक परिदृश्य में स्पर्धा कर सकें, अपनी दृष्टि को प्रस्तुत कर सकें और विकसित भारत के लिए ठोस तर्क रख सकें. (ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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