राजनीति से प्रेरित नेपाल का रवैया

भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है, ऐसे में ओली उसका भी फायदा उठाना चाह रहे हैं, क्योंकि उन्हें चीन का आर्थिक और राजनीतिक समर्थन प्राप्त है.

By संपादकीय | June 24, 2020 1:10 AM

प्रोफेसर एसडी मुनि, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

delhi@prabhatkhabar.in

भारत-चीन के बीच सीमा पर तनातनी के माहौल में नेपाल भी भारत विरोध में एक के बाद एक कदम उठाता जा रहा है. हाल ही में उसने अपने नक्शे में बदलाव किया और भारतीय हिस्सों- कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपना बताते हुए नया नक्शा पारित किया. यह समझने की जरूरत है कि इस बदलाव की वजह यह है कि इन दिनों नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं को हवा दी जा रही है. इन दिनों भारत विरोधी राष्ट्रवाद वहां बहुत प्रखर है. नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और उनकी पार्टी राजनीतिक दृष्टिकोण से इस भावना का इस्तेमाल कर रहे हैं. ओली की पार्टी इन दिनों समस्याग्रस्त है, ऐसे में खुद को सशक्त बनाने के लिए ही वे भारत विरोधी रुख अख्तियार किये हुए हैं.

यह भी है कि चूंकि इन दिनों भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है, ऐसे में ओली उसका भी फायदा उठाना चाह रहे हैं, क्योंकि उन्हें चीन का आर्थिक और राजनीतिक समर्थन प्राप्त है. इसीलिए वे अपने पैंतरे दिखा रहे हैं. ओली यह भी जानते हैं कि भारत-नेपाल के बीच वर्षों पुराने मैत्री संबंधों को इस तरह खराब करके नेपाल को कुछ भी हासिल नहीं होगा. लेकिन, वह सिर्फ ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि इसी बहाने वह चीन से और ज्यादा मदद मांग सकें. वे यह भी सोच रहे हैं कि वे भारत को दबाकर अपनी मर्जी का काम करवा लेंगे. जैसे, अपने नक्शे में उन्होंने जिन भारतीय हिस्सों को अपना बताया है, उसके लिए वे भारत से हामी भरवा लेंगे. लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि न तो ऐसा संभव है और न ही पारस्परिक संबंधों में ऐसा होता है.

रही बात नेपाल के नागरिकता कानून में संशोधन की, जिसके बाद अब नेपाली पुरुष से शादी करनेवाली विदेशी महिलाओं को पहले की तरह तुरंत नेपाल की नागरिकता नहीं मिलेगी, बल्कि शादी के सात वर्ष के बाद ही वे नेपाली नागरिक बन सकेंगी, वह उनका अंदरूनी मामला है. वह तराई और नेपाल के लोगों के बीच का मामला है. यह कोई नया मामला नहीं है, बल्कि बहुत पुराना है. पहले भी शादी और नागरिकता को लेकर नेपाल में बहसें हुई हैं. असल में, नेपाल की तराई में जो भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं, जिनको वे मधेश मानते हैं, उन्हें तंग करने के इरादे से ही ओली ने नागरिकता कानून में संशोधन किया है.

हालांकि उनको यह डर है कि भारत विरोधी मुहिम में यह मुद्दा भी जोर पकड़ेगा. इस तरह संशोधन करने से इस मामले का तूल पकड़ना निश्चित है. यह उनकी बचकानी राजनीति है क्योंकि इससे बहुत से नेपाली नागरिक भी नाराज हैं. इस प्रावधान के विरोध में कई संगठनों ने आवाज उठायी है. खुद ओली की अपनी पार्टी के लोगों ने भी नागरिकता संशोधन कानून पर आपत्ति जतायी है. इससे उनका संकट घटने के बजाय बढ़ने की आशंका कहीं अधिक है.

राष्ट्रवाद को हवा देते हुए नेपाल ने भारत के खिलाफ एक और कदम उठाया है. वह है भारत-नेपाल सीमा से लगते गंडक बैराज की मरम्मत को रोकना. यह भी बचकानी हरकत है. नया नक्शा बनाना अभी नेपाल के लिए कोई जरूरी नहीं था. एक-डेढ़ सौ सालों तक वे चुप बैठे रहे और अचानक अभी ऐसी कौन सी जरूरत आ गयी थी, जो उन्होंने नया नक्शा बनाकर उसे मान्यता भी प्रदान कर दी.

ये सब राजनीति के तहत उठाये गये कदम हैं. राजनीतिक दृष्टिकोण से ओली को यह दिखाना जरूरी लगता है कि वे देशहित में काम कर रहे हैं. ओली ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इन दिनों उनकी अपनी पार्टी में ही मतभेद पैदा हो गया है. उन्हें और उनकी कुर्सी को अपनी ही पार्टी के लोगों से खतरा हो गया है क्योंकि इस वक्त उनकी पार्टी के बहुत से लोग उनको समर्थन नहीं दे रहे हैं.

इतना ही नहीं, ओली इन दिनों जो चीन के साथ बातचीत कर रहे हैं, उसमें भी उन्होंने अपनी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल सहित पार्टी के दूसरे कई नेताओं कोे अलग-थलग कर रखा है. हालांकि प्रचंड व बामदेव को फिलहाल साथ ले लिया है. ओली के यूं एकतरफा निर्णय लेने से पार्टी के भीतर खींचतान पैदा हो गयी है.

इस अंदरूनी खींचतान में ओली को अपनी सीट भी बचानी है क्योंकि अगर उनके पास सीट ही नहीं रहेगी तो बहुमत कहां से रहेगी उनकी. ओली के भारत विरोधी रुख का यह भी एक कारण है.जहां तक नेपाल के भारत विरोधी रूख से निपटने की बात है, तो फिलहाल भारत को अपना ध्यान इस ओर देने की बजाय चीन की ओर देने की ज्यादा जरूरत है. चीन के साथ जो हमारे मसले हैं, वे ज्यादा प्राथमिकता वाले हैं.

नेपाल ने जो अपना नया नक्शा बनाया है, उसे बनाने दिया जाये, क्योंकि नक्शा बना लेने भर से वह कुछ नहीं कर पायेगा. जिस तरह वह तराई के लोगों को तंग कर रहा है, ऐसे में तराई खुद ही अपने बचाव में खड़ी होगी. और, प्रधानमंत्री ओली को तराई के लोगों को जबाव भी देना पड़ेगा. तो, अभी हमारे लिए यह प्राथमिकता नहीं है कि हम नेपाल के अपने खिलाफ उठाने वाले कदम का कोई जवाब दें. अभी हमारे लिए जरूरी यह है कि हम चीन के साथ मसले को हल करें.

(बातचीत पर आधारित)

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