नेपाल के पीएम प्रचंड का भारत दौरा
भारत में कम्युनिस्टों पर बहुत कम विश्वास रहता है, और खास तौर पर प्रचंड के मामले में भारत के सत्ता प्रतिष्ठान का यह मानना था कि ये अपने वादे पूरे नहीं करते हैं और चीन की तरफ ज्यादा झुक जाते हैं
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड पिछले सप्ताह चार दिनों के भारत दौरे पर आये. ये प्रधानमंत्री के तौर पर प्रचंड की चौथी भारत यात्रा थी. आम तौर पर नेपाल का कोई भी नया प्रधानमंत्री अपने पहले विदेशी दौरे में भारत आया करते रहे हैं. मगर वर्ष 2008 में प्रचंड ने ये प्रथा तोड़ी और प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली विदेश यात्रा पर चीन गये. लेकिन वर्ष 2016 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने नेपाल की पुरानी प्रथा कायम रखी और चार दिन के भारत दौैरे पर आये.
पिछले साल दिसंबर में एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम में प्रचंड तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इसके छह महीने बाद अपने पहले विदेश दौरे के लिए उन्होंने फिर एक बार भारत को चुना. प्रचंड के इस दौरे से ये भी स्पष्ट हुआ है कि चीन के साथ पहले जो उनकी नजदीकी दिखती थी उसमें अब परिवर्तन आया है. प्रचंड ने चीन की तरफ से आयी कुछ परियोजनाओं को अटका दिया है. चीन की बहुचर्चित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना या बीआरआइ के बहुत सारे प्रोजेक्ट बहुत समय से अटके हुए हैं.
ये परियोजनाएं पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सरकार के समय से ही अटकी पड़ी हैं. कुल मिलाकर, बीआरआइ में कोई विशेष प्रगति नहीं हो रही है. उसका नाम ज्यादा है लेकिन जमीन पर उसका कोई बहुत असर होता नजर नहीं आ रहा है. प्रचंड के भारत के साथ बढ़ती नजदीकी से चीन बहुत खुश नहीं होगा.
हालांकि, प्रचंड जुलाई में चीन के दौरे पर जा सकते हैं. प्रचंड कुल मिलाकर अपने हाल के दौरे में भारत को ये संदेश देना चाहते थे कि मैं आपके साथ काम करने को तैयार हूं, आप मुझे चीन के प्रति झुका हुआ मत समझें, और मैं भारत और नेपाल के संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए जो भी संभव होगा करूंगा. उन्हें इस दौरे में ये संदेश देना था और उन्होंने वो संदेश मजबूती के साथ दिया है.
भारत और नेपाल महत्वपूर्ण पड़ोसी हैं लेकिन माओवादी जनांदोलन के बाद राजनीति में कदम रखने वाले प्रचंड को लेकर भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान में एक अविश्वास की स्थिति रही है. पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके चीन के दौरे और बाद की कई घटनाओं की वजह से नेपाल और भारत के बीच कई बार तनाव की भी स्थिति उत्पन्न हुई. मगर प्रचंड के इस दौरे से पुरानी तल्खी को दूर करने की दिशा में काफी प्रगति हुई है.
प्रचंड ने इस दौर में अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, कि जो भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान है उसे वो खुश रखने की कोशिश करें. इस कारण से उन्होंने संवेदनशील विषयों, जैसे सीमा विवाद हो, या इपीजी का सवाल हो, उनको नहीं उठाया. साथ ही, पिछले दिनों भारत की संसद के नये भवन में लगाये गये अखंड भारत के एक भित्ति चित्र को लेकर नेपाल में आपत्तियां जतायी जा रही थीं, उसे भी प्रचंड ने अपने दौरे में तूल नहीं दिया. यानी जो भी तल्खी वाले मुद्दे थे, उन्हें प्रचंड ने दूर करने की कोशिश की है.
उन्होंने यह प्रयास किया है कि उनके प्रति भारत के सत्ता प्रतिष्ठान का विश्वास बढ़े. दरअसल प्रचंड माओवादी रहे हैं और माओवादी पार्टी- नेपाल कम्युुनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) के नेता हैं. भारत में कम्युनिस्टों पर बहुत कम विश्वास रहता है, और खास तौर पर प्रचंड के मामले में भारत के सत्ता प्रतिष्ठान का यह मानना था कि ये अपने वादे पूरे नहीं करते हैं और चीन की तरफ ज्यादा झुक जाते हैं. तो इसलिए अपने हाल के भारत दौरे में प्रचंड ने भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान में उस विश्वास को बढ़ाने का भरपूर प्रयास किया है.
इसके साथ ही, प्रचंड का इस दौरे में उज्जैन के महाकाल मंदिर जाना एक बहुत बड़ी बात है. एक समय में माओवादी विद्रोही रहे प्रचंड का भगवा कपड़ों में लिपट वहां पूजा करने की तस्वीर ये दिखाने की कोशिश है कि कम्युनिस्ट नेता होते हुए भी हिंदू धर्म उन्हें प्रिय है. हालांकि, प्रचंड की भारत के प्रति नजदीकी को लेकर नेपाल में उनके राजनीतिक विरोधी उन्हें घेरने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ लोगों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन करने की भी कोशिश की है, लेकिन प्रचंड के सामने विकल्प ज्यादा है नहीं.
उनके सामने रास्ता यही था और उन्हें अपने आप को सत्ता में बनाये रखने के लिए भारत के समर्थन की बहुत आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने भारत के प्रति ज्यादा रुझान दिखाने की कोशिश की है. वैसे नेपाल में मौजूदा राजनीतिक समीकरण ऐसे हैं, जिनसे प्रचंड विरोधियों को नाराज कर भी भारत से नजदीकी रख सकते हैं. नेपाल की घरेलू राजनीति में अभी गठबंधन की स्थिति है. पिछले वर्ष दिसंबर में नेपाल में आम चुनाव के बाद एक नाटकीय घटनाक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एमाले) ने प्रचंड की पार्टी को समर्थन दे दिया, जिसके बाद वे प्रधानमंत्री बन गये.
उन्हें सात पार्टियों ने समर्थन दिया है और गठबंधन के पास आवश्यक संख्या बल है. ऐसे में अगर आप प्रचंड को हटायेंगे तो दूसरी कोई सरकार कैसे बनेगी यह स्पष्ट नहीं है. ऐसे में प्रचंड को नेपाल में विरोध का सामना तो करना है, मगर मुझे नहीं लगता कि उनके लिए अभी वहां राजनीतिक तौर पर कोई आंतरिक संकट जैसी स्थिति है.
जहां तक भारत की बात है, तो प्रचंड का यह दौरा भारत के लिए इस हिसाब से सकारात्मक रहा कि इससे दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बढ़ा है और इससे जो मैत्री प्रगाढ़ होगी उसका अपने आप में एक बड़ा फायदा है. भारत चाहता है कि नेपाल यदि अपने आपको चीन से थोड़ा दूर रखे, तो यह उनके लिए अच्छा है, और प्रचंड ने इस दौरे में वह संदेश दे दिया है. हालांकि, भारत और नेपाल के बीच जल संसाधन और पनबिजली उत्पादन को लेकर जो समझौता होना है, उस पर अभी अंतिम तौर पर दस्तखत नहीं हुआ है.
यह एक दीर्घकालीन समझौता है जिससे दोनों ही देशों को फायदा होगा. इससे नेपाल को तो लाभ होगा ही, ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को भी दोहरा लाभ होगा. पहला तो यह कि नेपाल मेें जो प्रस्तावित हाइड्रोपावर परियोजनाएं हैं, उनमें भारत ने बहुत सारा निवेश किया हुआ है. साथ ही, भारत को इनसे बिजली भी मिलेगी जिसकी भारत को जरूरत है, क्योंकि हम देख रहे हैं कि भारत में गर्मियों के मौसम में भी पावर कट हो रहा है.
ऐसे में इन परियोजनाओं के आगे बढ़ने से भारत को बिजली मिलने में भी आसानी होगी. मगर कुल मिलाकर, प्रचंड के इस दौरे को राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, ना कि आर्थिक दृष्टिकोण से.