यह बहुत स्वागतयोग्य है कि नेपाल में एक बार फिर लोकतांत्रिक चुनाव की प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हुई और नयी सरकार बनी है. यह लगभग निश्चित ही था कि जो भी सरकार बनेगी, वह गठबंधन की सरकार होगी. वर्तमान संसद में प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ को कुल 275 सांसदों में से 165 सांसदों का समर्थन प्राप्त है, जिनमें प्रचंड की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी सेंटर के 32, कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल के 78, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के 20, प्रजातंत्र पार्टी के 14, जनता समाजवादी पार्टी के 12, जनमत के छह और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के तीन सांसद शामिल हैं.
नेपाली कांग्रेस 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, पर वह बहुमत का गठबंधन नहीं बना सकी. पांच निर्दलीय समेत अन्य सांसद दूसरे दलों से संबद्ध हैं. जहां तक विदेश नीति का प्रश्न है, ऐसा नहीं लगता है कि प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने से उसमें कोई बड़ा बदलाव होगा. यह सर्वविदित तथ्य है कि भारत और नेपाल के संबंध लोगों के स्तर पर बहुत मजबूत हैं. यह एक सभ्यतागत संबंध है, जिसे कई लोग ‘रोटी-बेटी के संबंध’ की भी संज्ञा देते हैं.
मेरा मानना है कि जिस प्रकार से भारत ने नेपाल में व्यापक निवेश किया है तथा हर परिस्थिति में वह नेपाल के साथ खड़ा होता है, उसके महत्व को प्रचंड भी समझते हैं और पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली भी. हालांकि हाल के वर्षों में ब्लॉकेड, सीमा को लेकर कुछ मसलों पर दोनों देशों के बीच तनातनी रही, पर कुल मिला कर हमारे संबंध अभी ठीक हैं.
यह बात भी है कि सत्तारूढ़ गठबंधन का चीन के प्रति एक झुकाव है, इसलिए हमें यह देखने को मिल सकता है कि सरकार चीन को कुछ अधिक महत्व दे. पर भारत के संदर्भ में देखें, तो ओली के शासनकाल में ऐसे कई प्रस्ताव आये थे, जिनमें संबंधों को बेहतर करने तथा दोनों देशों के बीच के विवादित मुद्दों को हल करने के बारे में उल्लेख किया गया था. जो भी मसले हैं, वे कूटनीतिक स्तर पर निपटाने के प्रयास होंगे.
नेपाल सरकार ऐसा कतई नहीं कर सकती है कि वह भारत या चीन में से किसी एक पक्ष को चुने और केवल उसी के निकट अपने को खड़ा करे. यह नेपाल के हित में है कि वह भारत और चीन दोनों के साथ ही मित्रता बनाये रखे. जहां तक भारत की बात है, तो हम एक प्रतिबद्ध पड़ोसी की भूमिका में हमेशा से रहे हैं और जब भी नेपाल को आवश्यकता पड़ी है, भारत हमेशा उसके साथ खड़ा रहा है.
जब वहां भयावह भूकंप आया था, तब भारत ने हर संभव मदद मुहैया करायी थी. कोरोना महामारी के दौरान भी हमारे यहां से आवश्यक वस्तुओं को उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया था. यह पूरी दुनिया को दिखता है. इसके अलावा चीन के कर्ज और अन्य कारकों की वजह से श्रीलंका की जो हालत हुई, वह भी नेपाल के सामने है.
इन तथ्यों को देखते हुए नेपाल की सरकार तय करेगी कि चीन की ओर उसे किस हद तक बढ़ना है. यह भी उल्लेखनीय है कि इस समय चीन भी अपनी अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है. भारत में जो प्रचंड और ओली को लेकर आशंकाएं जतायी जा रही हैं, उनके संदर्भ में हमें देखना चाहिए कि उनके अच्छे संबंध हैं और वामपंथी होने के नाते वैचारिक निकटता भी है, पर उसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि भारत के साथ उनके संबंध टूट जायेंगे या कम हो जायेंगे.
अगर हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समर्थन करते हैं, तो कौन सत्ता में आता है, इस बारे में हम कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं. यह तो वहां के लोगों को तय करना है. भारत को सहयोग देने की प्रक्रिया और लोगों के आपसी संबंधों को बरकरार रखना चाहिए तथा उसे और गति देने का प्रयास करना चाहिए. हमारे जितने भी पड़ोसी देश हैं, वे स्वाभाविक रूप से पहले अपना हित देखते हैं और यह गलत भी नहीं है. हम उन्हें यह बता सकते हैं कि क्या उनके हित में है और हम अपनी ओर से क्या सहयोग कर सकते हैं. भारत और चीन दोनों ही नेपाल के पड़ोसी हैं, तो प्रचंड दोनों ही देशों से सहयोग लेना चाहेंगे.
रही बात चीन की, तो उसका अपना तरीका है. वह जिन देशों की मदद करता है, उन्हें वह अपने प्रभाव में रखना चाहता है. अगर नेपाल वैसी स्थिति को स्वीकार करता है, तो हम इसमें कुछ भी नहीं कर सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने ‘पड़ोसी पहले’ की नीति अपनायी है, जिसके तहत सभी पड़ोसी देशों के साथ सहकार बढ़ाने का उद्देश्य है. श्रीलंका में जब भयानक आर्थिक संकट आया, तो भारत ही वह पहला देश था, जिसने हर तरह की तात्कालिक मदद श्रीलंका को दी.
अभी भी सहयोग की प्रक्रिया चल रही है. नेपाल के साथ तो सहयोग का सुदीर्घ इतिहास ही है. हमारी सेना में वहां के लोग हैं. नेपाल में बहुत से पूर्व भारतीय सैनिक हैं, जिन्हें भारत सरकार से पेंशन आदि मिलती है. वहां के लाखों लोग भारत में कार्यरत हैं. आवाजाही पर किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं है. नेपाल एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ हमारे ऐसे संबंध हैं.
हम पड़ोसी नहीं चुन सकते हैं. यह तो भूगोल का उपहार है. भारत एक बड़ा देश है, तो हमारे पड़ोसी देश भी हमारी ओर उम्मीद से देखते हैं. उनकी आशाओं और आकांक्षाओं को हम किस तरह और किस हद तक पूरा कर सकते हैं, यह हमें देखना होगा. हमारा आग्रह यही रहता है कि नेपाल हो या और कोई अन्य पड़ोसी देश हमारी चिंताओं पर ध्यान दे. हमें ‘पड़ोसी पहले’ की नीति को मजबूत करना चाहिए. भारत ने नेपाल में कई परियोजनाएं बनायी हैं. कुछ में देरी भी होती है. उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों में हमारी सक्रियता बढ़नी चाहिए, जिससे नेपाल को भी लाभ हो तथा भारत के प्रति भरोसा भी मजबूत हो. प्रधानमंत्री मोदी दोनों देशों के बीच विकास कार्यों के साथ सांस्कृतिक और पर्यटन संबंधी गतिविधियों को बढ़ाने में भी रुचि लेते हैं. उन्होंने नेपाल की अनेक यात्राएं की हैं. दोनों देशों के बीच आवागमन बेहतर करने की दिशा में भी कार्य हो रहे हैं. बिमस्टेक समेत अनेक बहुपक्षीय पहलों में भारत और नेपाल साथ हैं. भारत का इतना ही आग्रह रहता है कि नेपाल और अन्य पड़ोसी देश भारत विरोधी गतिविधियों को रोकें तथा हमारे भू-राजनीतिक हितों के प्रति संवेदनशील हों.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)