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ग्राहकों की रक्षा के लिए नया कानून

नये कानून में निर्माता, सेवा प्रदाता और विक्रेता तीनों की कानूनी जवाबदेही तय की गयी है. भ्रामक शिकायत करने पर 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.

By संपादकीय | July 23, 2020 1:01 AM

विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट के वकील

viraggupta@hotmail.com

लंबी कवायद के बाद उपभोक्ता संरक्षण के नये कानून के अधिकांश हिस्से को लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी. नये नियम बहुत असरदार दिख रहे हैं. लेकिन पुराने नियमों का ही जब सही ढंग से पालन नहीं हुआ, तो फिर नये नियमों से ग्राहकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी? नये कानून पर आम जनता में जानकारी बढ़ाने और इसके लागू होने में विलंब पर सार्थक चर्चा हो, तो ग्राहकों के साथ भारत की संसदीय व्यवस्था भी सशक्त हो सकेगी.

वर्ष 2006 में विधि आयोग की 199वीं रिपोर्ट से इस नये कानून की नींव पड़ गयी थी. उसके बाद यूपीए सरकार ने 2011 में नये कानून का बिल संसद में पेश किया. लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद वह बिल निरस्त हो गया. उसके बाद एनडीए सरकार ने 2015 में एक नये बिल को पेश किया. इस पर स्टैंडिंग कमेटी ने अगले साल रिपोर्ट भी दे दी. उसके बाद फिर से 2018 में एक नया बिल पेश करके 2019 में नया कानून बनाया गया. इस कानून को जनवरी, 2020 से ही लागू किया जाना था. लेकिन, अब सात महीने बाद भी पूरा कानून और सभी नियम लागू नहीं हो रहे हैं.

इस कानून को पारित होने और लागू करने के लंबे समय में चार लोकसभाओं के साथ कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों का दौर रहा. संसद और सरकार कानून बनाने और उसे लागू करने में जब इतना विलंब करते हैं, तो फिर निचले स्तर पर भी लालफीताशाही हावी हो जाती है. इस वजह से अच्छे नियमों का भी सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता. पुराने कानून के अनुसार, उपभोक्ता अदालतों में तीन महीने के भीतर मामलों का निपटारा होना चाहिए था. जबकि सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, उपभोक्ता अदालतों में मुकदमों के निस्तारण में औसतन एक वर्ष का समय लगता है.

राजधानी दिल्ली की उपभोक्ता अदालतों में पांच वर्षों से ज्यादा समय से कई मामले लंबित हैं, तो फिर दूरदराज के इलाकों में क्या हालत होगी? जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालतों में लगभग 4.88 लाख मामले लंबित हैं. जिला उपभोक्ता अदालतों में पहले 20 लाख रुपये तक के मामले आते थे. अब वहां एक करोड़ तक के मामलों की सुनवाई हो सकेगी. इससे बोझ और ज्यादा बढ़ेगा, जिसके लिए उन्हें और ज्यादा सुविधाएं और संसाधन देने होंगे. भारत में ग्राहकों की कुछ सौ या हजार रुपये की छोटी समस्याएं और शिकायतें होती हैं. छोटे मामलों में किसी उपभोक्ता को यदि कई साल तक मुकदमेबाजी में उलझना पड़े, तो अधिकांश लोगों का कानून और सिस्टम से भरोसा खत्म हो जाता है.

ग्राहकों का भरोसा जगाने और उनके हितों के संरक्षण के लिए नये कानून में अनेक अच्छे प्रावधान हैं. पांच लाख रुपये से कम कीमत के मामले में कोई कोर्ट फीस नहीं, मामलों की ऑनलाइन फाइलिंग और इलेक्ट्रॉनिक सुनवाई का प्रावधान, घटिया सामान बेचने और गुमराह करनेवाले विज्ञापन पर भारी जुर्माना और जेल की सजा, प्रोडक्ट्स की फर्जी रेटिंग और रिव्यू पर लगाम, खराब सर्विस पर कमीशन में कटौती, ग्राहक के घर के पास की अदालत में मामलों की फाइलिंग और सुनवाई, निर्माता की जवाबदेही जैसे अनेक क्रांतिकारी प्रावधान इस नये कानून में हैं.

साथ ही निर्माता, सेवा प्रदाता और विक्रेता तीनों की कानूनी जवाबदेही तय की गयी है. भ्रामक शिकायत करने पर 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. नये कानून से अब इ-कॉमर्स और इंटरनेट से सर्विस और सामान लेनेवाले करोड़ों ग्राहकों को भी सही लाभ मिल सकेगा. इ-कॉमर्स कंपनियों को 48 घंटे के भीतर शिकायत को स्वीकार करने के बाद एक महीने के अंदर इसका निराकरण करना पड़ेगा.

सात वर्ष पहले दिल्ली हाइकोर्ट ने मेरी बहस के बाद फेसबुक, गूगल और अन्य इंटरनेट कंपनियों को शिकायत अधिकारी नियुक्त करने का आदेश दिया था. लेकिन कानून में स्पष्ट प्रावधान नहीं होने की वजह से इन कंपनियों ने यूरोप और अमेरिका में अपने शिकायत अधिकारी नियुक्त कर दिये थे. नये कानून के बाद इ-कॉमर्स कंपनियों और विक्रेताओं दोनों को भारत में अपने शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करने के साथ उनके इ-मेल और मोबाइल नंबर का विवरण देना होगा.

नये कानून में अभी कई अड़चनें भी आ सकती हैं. पुराने कानून के अनुसार जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में नियुक्ति के लिए चयन समिति में सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जज को रखने का प्रावधान था. परंतु नये कानून के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा चयन समिति का गठन किया जायेगा. कुछ लोगों के अनुसार इससे न्यायिक स्वायत्तता की अनदेखी हो सकती है. ऐसे पहलुओं पर इस कानून को यदि चुनौती दी गयी, तो इसके क्रियान्वयन में और भी विलंब हो सकता है.

अन्ना आंदोलन के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल को हर मर्ज की दवा माना गया था. लोकपाल गठन और ऑफिस व्यवस्था में करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद, अभी तक शिकायतों पर सुनवाई और कार्रवाई की व्यवस्था नहीं बन पायी. नये कानून को लागू करने की सही व्यवस्था नहीं बनी, तो फिर ग्राहकों की स्थिति जस की तस बनी रहेगी. भ्रामक विज्ञापन कर रहे बड़े सेलिब्रिटी और इंटरनेट की बड़ी कंपनियों के खिलाफ नया कानून कैसे और कितना प्रभावी होगा? इसके लिए सही व्यवस्था बने, तभी आम लोगों को इस कानून का लाभ मिल सकेगा.

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