अशोक मेहता , मेजर जनरल (रिटा.) रक्षा विशेषज्ञ
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गलवान घाटी में चीन की तरफ से किया गया हमला उकसावे वाली कार्रवाई है. पहले भी चीन इस तरह की हरकतें करता रहा है, लेकिन इस बार उसने हदें पार कर दी हैं. दोनों सेनाओं के बीच पहले भी झड़पें हुई हैं, लेकिन इस तरह हत्या नहीं की गयी थी. इससे स्पष्ट है कि सीमा पर उनके विवाद का तरीका अब बदल गया है. भारत और चीन के बीच 1996 में एक सीबीएम (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मीजर्स) समझौता हुआ था, उसके मुताबिक बातचीत के दौरान सिपाही को दूसरे पक्ष के सिपाही की तरफ हथियार नहीं करना है. इसके अलावा किसी प्रकार की घेरेबंदी और रुकावट डालने पर पाबंदी जैसे नियम तय किये गये थे. केवल बैनर निकालने की बात तय की गयी थी.
वर्ष 1996 से लेकर 2013 तक इसे लागू करने की कोशिशें की गयीं. लेकिन, चीन की तरफ से कई बार नियमों का उल्लंघन किया गया. हालांकि, इस तरह की रवैये की वजह से ये नियम-कायदे कामयाब नहीं हुए. चीनी सेना द्वारा अतिक्रमण और उकसावे की वजह से वर्षों से दोनों सेनाओं के बीच तनातनी होती रही है. अब भारत को भी अपने रुख में बदलाव लाना पड़ेगा. आमने-सामने होने पर उत्पन्न स्थिति से निबटने के लिए जो नियम बने थे, उन्हें अब बदलना पड़ेगा.
जब दो दुश्मन देशों के सैनिक आमने-सामने होते हैं, तो गुस्सा भी होता है और मारपीट होने की संभावना बनी ही रहती है. गनीमत है कि इस हिंसा में गोली और बम व तोप नहीं चले. लेकिन, बाकी सब कुछ तो हो रहा है. दो बड़े देशों के बीच तीन हजार किलोमीटर से भी अधिक की सीमा लगती है. चीन के साथ विवाद बढ़ने की स्थिति में भारत को कई पहलुओं पर विचार करना है और समझ-बूझकर अपना फैसला लेना है.
हमारा उनके साथ बहुत बड़ा व्यापारिक रिश्ता है या कहें हम कई वस्तुओं के लिए उनके ऊपर निर्भर हैं. वहां से बड़ी मात्रा कच्चा माल भी लेते हैं और उसी के आधार पर हमारा निर्यात भी टिका हुआ है. खासकर इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, मोबाइल, लैपटॉप आदि और फार्मास्युटिकल्स के मामले में हम बहुत अधिक उन पर निर्भर हो चुके हैं. हमारी भारतीय कंपनियों में भी उनका बड़ा निवेश है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध बहुत बड़ा मुद्दा है.
अगर दोनों देशों के बीच संबंध खत्म होते हैं, तो आर्थिक रिश्ते भी कुछ दिन बाद खत्म हो जायेंगे. उससे भारत को भी बहुत नुकसान होगा. चीन की अर्थव्यवस्था हमसे काफी बड़ी है और उनका अमेरिका, जापान, ताइवान और दुनिया के अन्य देशों के साथ भी बड़ा व्यापारिक संबंध है. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और यूरोपीय समूह के साथ चीन की बड़ी आर्थिक साझेदारी है. इस मामले में हमारी उनके साथ कोई तुलना नहीं हो सकती. यह बिल्कुल सच है कि भारत-चीन संबंधों को लेकर हम आगे जो भी फैसला करेंगे, उससे पहले काफी सोच-विचार करना पड़ेगा. गुस्से में बदला लेने के लिए ऐसा नहीं करना है कि कहीं हमारा ही ज्यादा नुकसान हो जाये.
अभी जो स्थिति है, उसे देखते हुए भारत ने सही तरीके से और समझदारी से कदम उठाया है और मजबूती से अपना पक्ष रखा है. तनाव की स्थिति को देखते हुए लद्दाख में फौजी दस्तों की तैनाती बढ़ायी गयी है. भारत के पास बहुत क्षमता है और देश कठिन परिस्थितियों से आसानी से निपट सकता है. किसी भी संकट की स्थिति में पूरा देश एकजुट हो जाता है. राष्ट्रीय एकता की भावना बहुत मजबूत है. युद्ध को कोई भी देश आगे नहीं बढ़ाना चाहता है, क्योंकि नुकसान दोनों को ही उठाना पड़ता है. चीन ने भी कहा है कि ऐसी घटना दोबारा नहीं होनी चाहिए.
वे सीमा क्षेत्र में तनाव को कम करने की बात बार-बार दोहरा रहे हैं. भारत सरकार अपनी तरफ से काम रही है. यह मामला केवल विदेशमंत्री स्तर तक का ही नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वार्ता से यह मामला सुलझ सकता है. जमीनी स्तर पर सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता चल रही है. उससे सुलझने के आसार कम हैं. उससे थोड़ा और समय मिलेगा. लेकिन, तनाव बढ़ता जायेगा. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए ऊंचे दर्जे का रणनीतिक और दूरदर्शी कदम उठाना पड़ेगा. दोनों देशों के बीच जो फौजी कार्रवाई हुई है. उसमें चीन का रुख अभी स्पष्ट नहीं है. चीन जो भी बोलता है, उसका आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता है. वह भरोसे लायक नहीं है.
अभी सीमा पर जो हादसा हुआ है, सैनिकों के बीच मारपीट हुई है, उसका नुकसान दोनों तरफ हुआ है. इसमें किसी की हार-जीत का मामला नहीं है. कोई जीता नहीं, कोई हारा नहीं. हां, दोनों तरफ की सेनाओं को जरूर नुकसान उठाना पड़ा है. आगे अगर स्थिति को सामान्य बनाये रखना है, तो दोनों देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे ऐसे हादसे न हों और दोनों तरफ से जिम्मेदारी और विशेष सावधानी बरती जाये. हमें उकसावे और गुस्से में आकर बदला लेने की बात नहीं करनी चाहिए. हमें शांत होकर अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए. इसमें मीडिया को विशेष तौर पर सावधानी बरतने की जरूरत है. कई टीवी चैनल पुलवामा, बालाकोट दिखा रहे हैं. उन्हें सावधानी और समझदारी से अपना काम करना चाहिए. चीन और पाकिस्तान में बहुत बड़ा अंतर है.
राजनीतिक दलों को भी कुछ बोलने से पहले शब्दों और मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए. पाकिस्तान से जब बात करते हैं, तो आतंकवाद के मुद्दे पर बात करते हैं, उसकी नीतियों के खिलाफ अपनी बात रखते हैं. यहां आतंकवाद का मसला नहीं है. यहां युद्ध होगा. चीन आतंकवादी युक्ति इस्तेमाल नहीं करता. पाकिस्तान में हम आतंकवाद से लड़ रहे हैं, जो राज्य प्रायोजित है. यहां मामला विपरीत है, इसलिए दोनों को एक ही चश्मे से नहीं देख सकते हैं. कोई भी कदम उठाने से पहले हमें उसके परिणामों का आकलन करने की जरूरत है.
(बातचीत पर आधारित)