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पाकिस्तान में स्थिरता की उम्मीद नहीं

ऐसा होने की आशंका न के बराबर है कि सत्ता पर सेना काबिज हो जाए. वह मौजूदा सरकार के जरिये ही इमरान खान को काबू में करने की कोशिश करेगी और बहुत संभव है कि इमरान खान लंबे समय के लिए जेल भेज दिये जाएं.

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद जो हालात बने, उनमें उनकी रिहाई के बाद भी कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद जब से उन्हें रिहा किया गया है, तब से हिंसक घटनाएं जरूर थम गयी हैं, लेकिन स्थिति अब भी नाजुक है. बुधवार को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि नौ मई के बाद दर्ज मामलों में इमरान खान को 31 मई तक हिरासत में नहीं लिया जा सकता है.

यह उनके लिए राहत की बात है, पर अन्य मामलों में तो उन्हें सम्मन दिया ही जा रहा है. जिस तरह से सेना और सरकार ने उनकी घेराबंदी की है, उससे नहीं लगता है कि उनके लिए आजादी के साथ राजनीतिक सक्रियता के लिए गुंजाइश होगी. यह बात इमरान खान भी जानते हैं कि देर-सबेर उन्हें हिरासत में लिया जायेगा और पर्यवेक्षकों का भी मानना है कि सरकार एवं सेना उन्हें लंबे समय तक जेल में रखना चाहेंगी. उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ (पीटीआइ) के कई बड़े नेता और कार्यकर्ता जेल में हैं तथा हिंसक घटनाओं को लेकर आगे भी गिरफ्तारियों का अंदेशा है.

पीटीआइ की ओर से जिस तरह से सेना को निशाना बनाया गया है, ऐसा पाकिस्तान में पहले कभी नहीं देखा गया है. ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दलों और सेना के बीच झड़पों का इतिहास नहीं रहा है. चाहे जुल्फिकार अली भुट्टो का दौर हो या नवाज शरीफ का, दोनों ओर से तनातनी रही थी, लेकिन यह पहली बार हो रहा है, जब सेना के खिलाफ आम लोगों का अच्छा-खासा समर्थन भी पीटीआइ के साथ है. इससे स्थिति की संवेदनशीलता बढ़ जाती है.

बीते दिनों हमने देखा कि सेना के कार्यालयों और बड़े अधिकारियों के घरों पर हमले हुए. इस तरह की घटनाएं, और वह भी बड़े पैमाने पर, पहले कभी नहीं हुईं. उल्लेखनीय है कि इमरान खान भी सेना के सहयोग से ही सत्ता में आये थे. तब पाकिस्तानी सेना सरकार में बहुत अधिक दखल को लेकर आरोपों से घिरी हुई थी.

उससे बचने के लिए सेना ने इमरान खान का चेहरा आगे कर दिया था, लेकिन बाद में इमरान खान और सेना के रिश्ते बिगड़ते गये. अनेक बड़े मसलों, जैसे आइएसआइ प्रमुख की नियुक्ति, पूर्व सेना प्रमुख जनरल बाजवा का सेवा विस्तार, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर इमरान खान के बयान, यूक्रेन पर रूस के हमले के दिन उनका मॉस्को जाना आदि पर इमरान खान और सेना के संबंध तनावपूर्ण होते गये.

ऐसे में सेना ने जिन दलों के विरुद्ध इमरान खान को आगे किया था, उन्हीं दलों को सत्ता में ला दिया गया. तब से इमरान खान लगातार सेना पर निशाना साध रहे हैं. अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले और अपनी गिरफ्तारी के लिए भी वे सीधे-सीधे सेना के शीर्ष नेतृत्व को दोषी ठहरा रहे हैं. उनके बयानों से समझा जा सकता है कि रिश्तों में इतनी तल्खी आ चुकी है कि दोनों ओर से नरमी की कोई उम्मीद नहीं बची है.

अब इमरान खान की पार्टी पीटीआइ ने पाकिस्तानी सेना पर भारत से समझौता करने और भारत के सामने कमजोर पड़ जाने का आरोप लगाना भी शुरू कर दिया है. एक बड़े पत्रकार ने सार्वजनिक रूप से यह कह दिया कि जनरल बाजवा मानते हैं कि पाकिस्तानी सेना भारत की सैन्य क्षमता का सामना करने की स्थिति में नहीं है. यह बात वहां एक बड़ा मुद्दा बन गयी.

स्वाभाविक रूप से पाकिस्तानी सेना ऐसे आरोपों को बर्दाश्त नहीं करेगी, क्योंकि देश बनने से आज तक सत्ता पर उसका दबदबा रहा है तथा वह किसी भी अन्य संस्थान से बहुत मजबूत भी है. उसके लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है, क्योंकि पहले इस स्तर पर उसके खिलाफ हमले भी नहीं हुए हैं.

ऐसी स्थिति में सेना अपना दबदबा बढ़ाने की कवायद जरूर करेगी, बल्कि कर भी रही है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण ऐसा होने की आशंका न के बराबर है कि सत्ता पर वह काबिज हो जाए और देश में तानाशाही स्थापित हो जाए. वह मौजूदा सरकार के जरिये ही इमरान खान को काबू में करने की कोशिश करेगी और बहुत संभव है कि इमरान खान लंबे समय के लिए जेल भेज दिये जाएं. ऐसा करना सेना और अन्य दलों के लिए इसलिए भी जरूरी हो गया है, क्योंकि अगर वे बाहर रहे, तो चुनाव में मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.

तो, पाकिस्तानी राजनीति में कुछ समय के लिए अराजकता का दौर रहेगा और इमरान खान के लिए यह बहुत परेशानी का वक्त होगा. मेरा आकलन है कि भले ही उनके पास बड़ा जन समर्थन है, पर वे परास्त होंगे, क्योंकि सेना अपने वर्चस्व को आसानी से हाथ से नहीं जाने देगी. जहां तक चुनाव की बात है, तो एक संभावना तो यह है कि आपात प्रावधानों का इस्तेमाल कर मौजूदा नेशनल एसेंबली का कार्यकाल बढ़ा दिया जाए और यह सरकार चलती रहे. और, जब चुनाव होंगे, तो वही जीतेगा, जिसे सेना का समर्थन हासिल होगा. वैसी कोई सरकार नहीं आयेगी, जो सेना विरोधी हो.

न्यायपालिका के लिए भी यह इम्तहान का दौर है. उस पर यह दबाव बढ़ेगा कि वह इमरान खान का साथ न दे और सरकार को तरजीह दे. पाकिस्तान के सामने आर्थिक संकट की बड़ी चुनौती भी है, लेकिन पश्चिमी सरकारों और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के सहयोग से स्थिति को नियंत्रण में रखने की कोशिश होगी. सऊदी अरब और चीन से भी मदद मिली ही है. इस मामले में भी पाकिस्तानी सेना की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

हमने पहले भी देखा है कि सेना के शीर्ष अधिकारी वित्तीय सहयोग मांगने के लिए दूसरे देशों और वैश्विक संस्थाओं के पास जाते रहे हैं. चूंकि दुनिया भी चाहती है कि पाकिस्तान में स्थिरता रहे, तो कुछ-कुछ मदद मिलना निश्चित ही है. इस अराजकता का एक असर यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान के अनेक इलाकों में सक्रिय सशस्त्र जातीय आंदोलनों की सक्रियता बढ़े. आतंकी गिरोह भी अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश करेंगे.

अगर ऐसा होता है, तो यह पाकिस्तान की दीर्घकालिक स्थिरता और स्थायित्व के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है. ऐसी ताकतें राजनीतिक उठापटक के खेल में भी विभिन्न खेमों के साथ जुड़ कर अपना वर्चस्व बढ़ाने का प्रयास कर सकती हैं. अगर इमरान खान गिरफ्तार होंगे या उनकी पार्टी पर पाबंदी लगेगी, तो अंदेशा है कि फिर बड़े प्रदर्शन होंगे. वह पाकिस्तान के लिए बहुत कठिन समय होगा.

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