कई दिनों से संसद में हंगामे की वजह से कामकाज नहीं हो पा रहा है. कभी कभार ऐसी भी खबरें आती रही हैं कि कुछ सांसद सत्र के दौरान विदेश यात्रा पर चले गये या अनुपस्थित रहे. हाल में जापान की संसद ने सदन से अनुपस्थित रहने के कारण योशिकाजू हिगाशितानी नामक एक सांसद की सदस्यता समाप्त कर दी. जापान के संसदीय इतिहास में पहली बार गैरहाजिर रहने वाले किसी सदस्य के खिलाफ ऐसी कार्रवाई हुई है. इसके पहले वहां खराब बर्ताव के कारण एक सांसद को सदस्यता गंवानी पड़ी थी. योशिकाजू हिगाशितानी यूट्यूबर हैं और एक शो को भी होस्ट करते हैं. वे पूरा वक्त अपने यूट्यूब चैनल को देते थे और संसद सत्र से गायब रहते थे. खबरों के अनुसार, योशिकाजू की सदस्यता खत्म करने का फैसला इसलिए लिया गया, ताकि राजनीतिज्ञों को यह संदेश दिया जा सके कि अगर वे सांसद बनते हैं, तो उन्हें अपने काम पर ध्यान देना होगा. संसद लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है. अपने देश में भी संविधान निर्माताओं ने ऐसी परिकल्पना की थी कि संसद और विधानसभा के माध्यम से कानून बनेंगे और उनके द्वारा जनता की अपेक्षाओं को पूरा किया जायेगा. सदन में विभिन्न विचारधाराओं और राजनीतिक दलों के नेताओं का किसी मुद्दे पर नजरिया अलग हो सकता है. इसकी वजह से थोड़े समय के लिए सदन की कार्यवाही बाधित हो सकती है, लेकिन हंगामे के कारण कार्यवाही न चलना उचित नहीं है. सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेवारी जितनी सरकार की है, उतनी ही विपक्ष की भी है. दुर्भाग्य यह है कि यह मान लिया गया है कि किसी बात को रखने का सबसे अच्छा और प्रभावी तरीका हंगामा करना है.
हाल में एक अन्य खबर आयी कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और उनकी पत्नी लंदन के हाइड पार्क में अपने कुत्ते को बिना चेन के टहलाते हुए देखे गये. किसी ने उसकी वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया. इसके बाद स्थानीय पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी है कि यह स्वीकार्य नहीं है. हाइड पार्क के नियमों के अनुसार पार्क में कुत्ता बिना चेन घुमाना जुर्म है, क्योंकि इससे अन्य लोगों को खतरा हो सकता है. पुलिस ने बताया है कि वहां उस समय मौजूद एक पुलिस अधिकारी ने प्रधानमंत्री सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति से बात की और उन्हें नियमों के बारे में जानकारी दी. पश्चिमी देशों में सैकड़ों खामियां हैं. उनकी औपनिवेशिक नीतियों ने सैकड़ों देशों और समाज को तबाह कर दिया था. अनेक ऐसे विषय हैं, जिनको लेकर उनकी कटु आलोचना की जा सकती है, लेकिन नियम-कानून सबके लिए बराबर होता है, यह उनसे सीखा जा सकता है. अगर कानून का पालन नहीं करेंगे, तो आप भले ही कितने खास हों, आपका कोई रियायत नहीं मिलेगी. इसकी तुलना में भारत में किसी सांसद, मंत्री अथवा सेलिब्रिटी को हाथ लगा कर तो देखिए, किस तरह पूरे तंत्र पर हल्ला बोल दिया जाता है. अपने देश में नेता व अधिकारी और उनके परिजनों की दबंगई के मामले रोजाना सामने आते हैं. यह बात कोई छुपी हुई नहीं है कि भारत में प्रशासनिक कामकाज में भारी राजनीतिक हस्तक्षेप होता है. जब भी किसी पहुंच वाले शख्स को पुलिस पकड़ कर ले जाती है, तो उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय रसूखदार नेताओं के फोन आ जाते हैं. नेता-अभिनेता को तो छोड़िए, उनके सगे-संबंधी भी अपने आपको कानून से ऊपर मानते हैं. सैकड़ों में एक मामला सामने आता है, जब कोई अधिकारी उनसे नियम कानून का पालन करवाने की हिम्मत दिखाता है.
इसके पहले भी ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और तत्कालीन वित्त मंत्री ऋषि सुनक पर कोरोना नियमों के उल्लंघन का आरोप में लंदन पुलिस ने जुर्माना लगाया था. दोनों नेताओं ने जुर्माना देने के साथ माफी भी मांगी थी. दरअसल, कोरोना काल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपने जन्मदिन के मौके पर अपने आधिकारिक निवास में एक पार्टी का आयोजन किया था, जिसमें ऋषि सुनक समेत चुनिंदा लोग शामिल हुए थे. उस दौरान ब्रिटेन में लॉक डाउन के नियम लागू थे और पार्टियों के आयोजन पर प्रतिबंध था. ऋषि सुनक कसूर यह था कि वे प्रधानमंत्री की जन्मदिन पार्टी में शामिल हुए थे. मुझे याद है, जब मैं बीबीसी लंदन में कार्यरत था, उस दौरान टोनी ब्लेयर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उनका 16 साल का बेटा इम्तिहान खत्म होने की खुशी में एक पब में दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था. इस दौरान उसे कुछ ज्यादा चढ़ गयी और पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया था. बाद में टोनी ब्लेयर की पत्नी शैरी ब्लेयर को थाने जाकर बेटे को छुड़ाना पड़ा था. टोनी ब्लेयर या फिर किसी अन्य ने उसके बचाव की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से एक बयान जारी कर इस घटना पर खेद प्रकट किया गया था. कोरोना काल की एक और मिसाल हमारे सामने है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच का वीजा रद्द कर दिया था. जोकोविच कोई साधारण खिलाड़ी नहीं हैं. वे नौ बार ऑस्ट्रेलियन ओपेन जीत चुके हैं और 10वीं बार इस ट्रॉफी को जीतना चाहते थे, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ऑस्ट्रेलियन ओपन में सिर्फ उन्हीं खिलाड़ियों, अधिकारियों और दर्शकों को प्रवेश की अनुमति दी थी, जो कोरोना के दोनों टीके लगवा चुके थे. जोकोविच ने कोरोना की वैक्सीन नहीं लगवायी थी, जिसकी वजह से उन्हें वीजा नहीं दिया गया.
Also Read: क्या खुशियां खरीदी जा सकती हैं
इस सबका संदेश साफ है कि भले ही आप आम हों या खास, लेकिन आप कानून से ऊपर नहीं हैं. इसकी तुलना में भारत में नियम और कानून की अनदेखी जैसे हमारी प्रवृत्ति बन गयी है. मैं पहले भी कहता आया हूं कि उत्तर भारत में यह प्रवृत्ति अधिक है. इसकी एक वजह है कि आजादी के 75 वर्षों के दौरान अधिकांश समय सत्ता उत्तर भारतीयों के हाथों रही है. लोगों की सत्ता प्रतिष्ठान तक पहुंच बहुत आसान रही है. ये प्रभावशाली व्यक्ति नियम-कानूनों को तोड़ने में एक मिनट भी नहीं लगाते हैं. इसी वजह से नियम-कानूनों को तोड़ने का चलन बढ़ता गया है. आप गौर करें कि अधिकतर लोग ट्रैफिक रेड लाइट उल्लंघन में फाइन देने के बजाय पैरवी कर छूटने की कोशिश करते नजर आते हैं. हम लोग किसी कार्य के लिए लाइन में खड़े होने को अपनी शान के खिलाफ मानते हैं. हमें यह समझ लेना चाहिए कि नियम-कानूनों की अवहेलना की प्रवृत्ति सारी व्यवस्था को संकट में डाल सकती है.